१-इस फोटो को देखिये और तथ्यों को पढ़िये. हिन्दी खबरों के प्रकाशन के जिम्मेदार व्यक्ति यह भी देखना पसन्द नहीं करते कि शीर्षक क्या कह रहा है और अन्दर तथ्य क्या लिखे हुये हैं. या फिर वे इतने अधिक व्यस्त हैं कि हिन्दी खबरों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझते.
२-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के पक्षधर कौन होंगे हमारे देश में, जाहिर है कि अखबार और खबरिया चैनल तथा वेबसाइट्स. लेकिन अब इस को क्या कहेंगे जब वे अपने विरोध में आये हुये कमेन्ट को छापने से ही गुरेज करें. आखिर यह कैसी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता कि आप जो भी लिख दो, वह ठीक, आपकी हां में हां मिलाने वाला ठीक और जो आपकी खबर के विरोध में कोई चार लाइनें लिख दे तो उसे छापने से गुरेज.
कई चैनलों पर संजीव भट्ट जी का बयान तो आ रहा है, प्रिन्ट मीडिया में भी इसकी खूब खबर है, लेकिन यास्मीन ने जो गम्भीर आरोप तीस्ता सीतलवाड़ पर लगाये हैं, उनके बारे में एक-दो जगह छोड़कर कहीं कोई सुध नहीं. आखिर यह किस प्रकार की पत्रकारिता है जो पहले से ही तय कर लेती है कि क्या छापना है और क्या नहीं.
जय हो मीडियादेव की।
ReplyDeleteबहुत अच्छे। लगता है पुलिस विभाग में 'डीएम' की नियुक्ति मीडिया ने ही की थी।
ReplyDeleteतीस्ता सीलवाड़ का मामला आज के दैनिक जागरण समाचारपत्र में पढ़ा लेकिन केवल एक कोने में समायी थी खबर। जबकि संजीव भट्ट की खबर पहले पेज पर प्रमुखता से छापी गयी थी।
बलिहारी है अखबार वालों की!
ReplyDeleteइसका खंडन-स्पष्टीकरण छाप कर और बड़ा कमाल हो सकता है.
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