Saturday, April 20, 2013

पुलिस का रवैया


दिल्ली में पाँच वर्षीया बच्ची के साथ हुये अमानुषिक कृत्य के बाद प्रदर्शन कर रही एक युवती के ऊपर थप्पड़ मारकर पौरुष दिखाने का कृत्य पुलिस के एक अधिकारी ने किया. यद्यपि उस अधिकारी को सस्पैंड कर दिया गया है, लेकिन पुलिस में लाइन-हाजिर होना, सस्पैंड होना आम बात है. अधिकारियों को थाने से हटा दिया जाता है बाद में दूसरी जगह तैनाती दे दी जाती है. लखनऊ में एक युवक की मौत थाने में हो गयी. कुछ अधिकारियों को सस्पैंड कर मामले की इतिश्री कर दी गयी. अलीगढ़ में एक बलात्कार की घटना के बाद वहाँ भी पुलिस अधिकारी प्रदर्शन कर रहे लोगों को लात-जूतों से निपटाते नजर आये. जाहिर है कि पुलिस वाले अपने लिये इस कारण कानून से ऊपर समझते हैं कि किसी भी प्रकार की त्वरित और कठोर कार्रवाई उन पर नहीं की जाती. उत्तर प्रदेश के ही एक अधिकारी को सीबीआई ने फर्जी मुठभेड़ का आरोपी बनाया है, लेकिन कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गयी. पिछले दिनों ही एक डीएसपी और बारह ग्रामीणों की हत्या में पुलिस वालों को सजा सुनाई गयी, लेकिन उसमें भी ढ़ाई दशक लग गया.

मौजूदा ढ़ाँचा राजनीतिज्ञों ने अपने लाभ हेतु बना रखा है. इसीलिये वे किसी भी तरह का सुधार नहीं चाहते. वही हाल इन अधिकारियों का है, इन्हें यह लगता है कि वे खास हैं और उनके यहाँ आम हो ही नहीं सकता. उनके दिमाग में यह बैठ गया है कि वह सबको लठिया सकते हैं और उनके साथ यह नौबत कभी नहीं आ सकती. मुझे इन लोगों के मानसिक स्तर पर कभी संदेह नहीं हुआ, आखिर मानसिक रूप से विचलित कोई व्यक्ति शांति से प्रदर्शन कर रहे लोगों के ऊपर कैसे लाठी चला सकता है, और दूसरी तरफ मुंबई में उपद्रवियों के सामने कोई कैसे निरीह प्राणी बनकर खड़ा रह सकता है. दर-असल ये लोग भी समाज के ही एक अंग हैं और यह समाज की सही स्थिति दर्शाते हैं. सही स्थिति यह है कि आज अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु हर व्यक्ति (अपवादों को छोड़कर) किसी भी हद तक जा सकता है और वही परिस्थिति अपने सामने होने पर चिल्लाता है. 

इस पीड़िता के मामले में जो लोग सौदा करवाने पर उतारू थे, जो अधिकारी कार्रवाई करने में हीला-हवाली कर रहे थे, जो प्रदर्शन करने वालों के दमन पर अड़े हुये थे, अगर उनके विरुद्ध तुरन्त कठोर कार्रवाई की जाती तो कुछ अच्छा संदेश जाता. लेकिन जब नीचे कार्रवाई होने लगेगी तो फिर नीचे वाले ऊपर वालों को भी जद में लेने लगेंगे, और जब ऊपर वालों पर कार्रवाई होगी तो फिर कानून का राज चलने लगेगा, लेकिन कानून का राज इस देश में कौन चाहता है, उसके अलावा जो कानून की व्याख्या अपने हिसाब से नहीं करवा पाता.

Thursday, April 18, 2013

विस्फोटों से फायदा..

एक नेता जी का ट्वीट है कि बम विस्फोट भाजपा के कार्यालय के बाहर होने से भाजपा को राजनीतिक फायदा होगा. फिर वे यह भी बतायें कि अभी तक हुई आतंकवादी वारदातों से किस किस दल को कितना फायदा हुआ है. उनके दल के लोग भी इस प्रकार की आतंकवादी वारदातों में मारे गये हैं. मुझे तो यही लगता था कि विस्फोटों से नुकसान ही होता है, लेकिन फायदे का पहलू पहली बार पता चला. ऐसे लोग जनता के घावों पर कैसा सुन्दर मरहम लगा रहे हैं!
विडम्बना यह है कि हमारे यहां ९० प्रतिशत जनता इस सब से या तो अंजान है, या अंजान बना रहना चाहती है, या फिर उसे अंजान बनाया गया है. अभी भी बहुत समय है, भारतीय यदि अभी भी न चेते तो आने वाले दिनों में भारतीयता बची रहेगी, इसकी संभावना बहुत ही कम है. और लोगों के अन्दर यदि ऐसी प्रवृति आने लगे तो आसार अच्छे नहीं हैं. जागो.

Monday, April 15, 2013

झूठी एफ आई आर दर्ज कराने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं..


एक अधिकारी के ऊपर FIR दर्ज होती है  छेड़छाड़ के जुर्म में. थाने में पैरवी करने वाले आ जाते हैं. मुख्यमन्त्री जी का आदेश होता है कि पैरवी करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई होगी. लेकिन थाने के कैमरों से कुछ नहीं निकलता. अब रिपोर्ट कराने वाली महिला कोर्ट में अपने बयान से मुकर गयी. नतीजा मामला खत्म.एक पूर्व सांसद के विरुद्ध तहरीर दी जाती है. छेड़छाड़ की. वे सज्जन अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं. चौबीस घण्टे के अन्दर उनके खिलाफ दी गयी तहरीर वापस ले ली जाती है. नतीजा मामला खत्म.

ऊपर वाले मामले में एक आर्टिकल पढ़ा था जिसमें लिखा था कि एफ०आई०आर० कराने वाली महिला के विरुद्ध झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिये कार्रवाई होना चाहिये. बात बिल्कुल न्यायसंगत है कि यदि कोई व्यक्ति जान-बूझ कर झूठी रिपोर्ट दर्ज करा रहा है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई होना चाहिये.किन्तु रसूखदार व्यक्तियों के विरुद्ध मामले को चलाते रहना क्या इतना ही आसान है. जो व्यक्ति रसूख वाले हैं, उनके साथ समाज के न जाने कितने ही लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद करते हैं और करने को तैयार रहते हैं. जिनके पास इतने साधन मौजूद होते हैं कि वे सामने वाले व्यक्ति को ये केन प्रकरेण अपनी खिलाफत से हटा ही देते हैं. ऐसे भी मामले हैं जहाँ रसूखदार लोग सार्वजनिक रूप से गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त पाये गये किन्तु पुलिस की जाँच में बरी हो गये या फिर उनके विरुद्ध मामला ठहरा ही नहीं.

इन दोनों मामलों में अब जबकि कानूनी तौर पर दोनों वादियों ने मामला वापस ले लिया तो निश्चित रूप से झूठी रिपोर्ट लिखाने पर कार्रवाई होना ही चाहिये, क्योंकि यह बहुत गंभीर मामला है, लोगों के विश्वास को तोड़ने का. सामाजिक विश्वास को तोड़ने का. कानून के राज के विश्वास को तोड़ने का.यदि रसूख से डर कर मामला वापस लिया तो जरूरत क्या थी रिपोर्ट दर्ज कराने की और यदि बाद में रसूख का पता चला तो फिर कानून में बदलाव की हिमायत हो कि रसूख वालों पर यह कानून लागू नहीं होता. अगर किसी प्रकार की  पेशबन्दी में या फिर इन व्यक्तियों को परेशान करने के लिये तहरीर दी गयी तो न केवल तहरीर देने वाले लोगों के विरुद्ध, बल्कि चार्जशीट तैयार करने वाले के विरुद्ध भी कार्रवाई होना चाहिये.