धार्मिक कार्यक्रमों के नाम पर नदियों में कचरा फैलाना भी अनुचित है और उद्योगों द्वारा जो नदियों में जहरीला अपशिष्ट मिलाया जाता है वह भी अक्षम्य अपराध है. मेरे एक सम्बन्धी ने बताया है कि अमेरिकी समुद्र में "एक बूंद" जी हां आप एक बूंद भी तेल की नहीं गिरा सकते. ऐसा नहीं है कि हमारे देश में कानूनों की कमी है, कोई न कोई नियम-कानून तो हर किसी मामले पर होगा, लेकिन लागू करवाने वाले कैसे हैं, यह मुद्दे की बात है. वह भी शीर्ष पर. अब यह मत कहियेगा कि जिम्मेदारी तो जनता की भी है, स्वयं ही रेग्युलेट होना चाहिये. अगर सभी लोग स्वयं ही रेग्युलेट हो जाते तो फिर किसी भी सरकारी गैर-सरकारी नियमन/विधेयन की आवश्यकता ही नहीं होती. फिर यदि लोग स्वत: अनुशासित हो जायें तब भी उद्योग जो प्रदूषण फैला रहे हैं तथा सीवेज की गन्दगी जो हमारी नदियों में मिलाई जा रही है, उसका क्या?
जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
Tuesday, February 28, 2012
Saturday, February 25, 2012
Thursday, February 23, 2012
समस्या पूर्ति
सबसे बड़ा अभिनेता हूँ मैं,
कोई नहीं अब तेरे सिवा
कोई नहीं अब मेरे सिवा
वादे ही वादे देता हूँ मैं
सबसे बड़ा अभिनेता हूँ मैं,
बताओ तुमको क्या चाहिये,
जमीं चाहिये आसमां चाहिये,
अभी के अभी देता हूँ मैं,
सबसे बड़ा अभिनेता हूँ मैं,
तुम दो मेरा साथ यूँ ही सदा,
मैं भी रहूँगा तुम्हारा सदा,
नैया यूँ ही अपनी खेता हूँ मैं
सबसे बड़ा अभिनेता हूँ मैं,
सभी को मिलेगा मौका यहाँ,
नहीं इसमें कोई धोखा यहाँ,
हिस्से को अपने लेता हूँ मैं,
सबसे बड़ा अभिनेता हूँ मैं,
सबके लिये कुछ करूँगा जरूर,
थोड़ा समय दीजिए तो हुजूर,
सपनों का थोक विक्रेता हूँ मैं,
सबसे बड़ा अभिनेता हूँ मैं,
......................................
Tuesday, February 21, 2012
यहाँ न तो लिंग भेद है और न ही गुलाब
पिछली पोस्ट पर जिसमें मैंने गुलाब की एक कली की तस्वीरें लगाई थीं,आशुतोष जी की ह्रदय को छूने वाली एक टिप्पणी ने मुझे गेंहूँ और गुलाब की याद दिला दी. यह निबंध शायद हाईस्कूल में पढ़ा था और उस समय इसकी महत्ता का भान नहीं था. बहरहाल,गेहूँ की तस्वीरें तो नहीं लगा सका,लेकिन राह चलते एक जगह यह दृश्य दिखाई दिया. कई पूरे के पूरे परिवार जिनमें ऐसे बच्चे भी शामिल हैं,जिनकी उम्र स्कूल जाने की है,पढ़ने-लिखने की है,खेलने-कूदने की है,हमारे लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने में लगे हुए हैं. कारण चाहे कुछ भी हों,स्थितियाँ विकराल हैं. हर वय के लोग कार्य में लगे हुए हैं,चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चे भी,जिनसे काम कराना कानूनी अपराध है. लेकिन फिर एक यक्ष प्रश्न सामने उठता है,यदि काम पर नहीं जायेंगे तो खायेंगे क्या,क्या आप दोगे खाने को? यह सवाल मुझसे एक बच्चे ने ही कर मुझे निरुत्तर कर दिया. प्रशासन के एक मध्यम अनुक्रम के अधिकारी के यहाँ ही दस वर्ष का बच्चा कार्य कर रहा था. जब शिकायत हुई तो हमेशा की तरह निष्कर्ष कुछ नहीं निकला. नीतियाँ और योजनायें बनाना एक अलग चीज है और उनका क्रियान्वयन बिलकुल अलग. यहाँ किसी प्रकार का लिंग-भेद भी नहीं और गुलाब भी नहीं,जिन बच्चों को फूलों से खेलना चाहिये,वे हाथों में हँसिया- खुरपी लेकर डटे हुए हैं. छोटी सी सुकोमल बच्चियाँ भी इनमें देखी जा सकती हैं. दोष किसी का भी हो,सजा इन बच्चों को क्यों?
Monday, February 20, 2012
Saturday, February 18, 2012
Wednesday, February 15, 2012
सैकड़ों की संख्या में ख़बरें और मंहगाई दर.
हर कोई चैनल सबसे कम समय में सबसे अधिक ख़बरें दिखाने का दावा करता है. कोई मिनट के हिसाब से तो कोई संख्या के हिसाब से. मानो कोई जलजला आ गया हो खबरों का. और एंकर तो बिलकुल किसी युद्ध के मोर्चे पर लाईट मशीनगन लेकर तैनात फौजी की तरह खबरों की गोली दागता रहता है. निरीह दर्शक, जिसके आँखों-कानों में दर्जन और सैकडे के हिसाब से ख़बरें घुसेड़ने का पुरजोर प्रयास किया जाता है, चुपचाप मूकदर्शक बनकर बैठा रहता है. कोई कहता है कि गोली की रफ्तार से ख़बरें देखिये तो कोई एक मिनट में सैकड़ा पूरा करने की बात कहता है. पता नहीं ये खबरें दिखाना चाहते हैं या फिर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्शकों के दिमाग में ख़बरें घुसेड़ने का रिकार्ड बनाना चाहते हैं.
दूसरा तिलिस्म यह समझ में नहीं आता कि दर कम होती है लेकिन मंहगाई बढती जाती है. ये कौन सा अर्थ या अनर्थ शास्त्र है जिसमें सप्लाई बढ़ने पर भी मंहगाई बढती है और घटने पर भी. ये कौन सा चमत्कार है कि मंहगाई की दर तो दूरदर्शन पर कम होती मालूम चलती है, लेकिन दूध-दही, आटा-दाल, शिक्षक-डाक्टर की फीस वैसी की वैसी ही. घर के बजट में बचत का अंश आंशिक मात्रा की तरफ चला जा रहा है. अभी नेताओं की संपत्ति पढ़ रहा था. कुछ के विषय में पढ़कर आंसू आ गए. बेचारे, एक भी कार नहीं, एक भी गाड़ी उनके अपने नाम नहीं. अब पत्नी-बच्चों की बात मत करें. सिद्धांत की बात है, पत्नी भले मर्सिडीज पर चले लेकिन नेताजी तो पैदल ही चलेंगे.
एक फार्मूला था जो बड़ा गोपनीय था, जिसे सिद्ध करने के लिए कई वर्ष घोर तपस्या करनी पड़ती थी, तब जाकर कहीं कोई देवी-देवता प्रसन्न होते थे और सिद्धि प्रदान करते थे. हमारे पाँच पीढियों पूर्व के पुरखे ने एक बार एक को सिद्ध कर लिया और उसके बाद उनका एक रूपया हर वर्ष दस रुपये में बदलता रहा. लेकिन इस सिद्धि की एक लिमिट भी थी. ये आशीर्वाद केवल पाँच साल तक चलता था.
सैकड़ों की संख्या में ख़बरें और मंहगाई दर.
हर कोई चैनल सबसे कम समय में सबसे अधिक ख़बरें दिखाने का दावा करता है. कोई मिनट के हिसाब से तो कोई संख्या के हिसाब से. मानो कोई जलजला आ गया हो खबरों का. और एंकर तो बिलकुल किसी युद्ध के मोर्चे पर लाईट मशीनगन लेकर तैनात फौजी की तरह खबरों की गोली दागता रहता है. निरीह दर्शक, जिसके आँखों-कानों में दर्जन और सैकडे के हिसाब से ख़बरें घुसेड़ने का पुरजोर प्रयास किया जाता है, चुपचाप मूकदर्शक बनकर बैठा रहता है. कोई कहता है कि गोली की रफ्तार से ख़बरें देखिये तो कोई एक मिनट में सैकड़ा पूरा करने की बात कहता है. पता नहीं ये खबरें दिखाना चाहते हैं या फिर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्शकों के दिमाग में ख़बरें घुसेड़ने का रिकार्ड बनाना चाहते हैं.
दूसरा तिलिस्म यह समझ में नहीं आता कि दर कम होती है लेकिन मंहगाई बढती जाती है. ये कौन सा अर्थ या अनर्थ शास्त्र है जिसमें सप्लाई बढ़ने पर भी मंहगाई बढती है और घटने पर भी. ये कौन सा चमत्कार है कि मंहगाई की दर तो दूरदर्शन पर कम होती मालूम चलती है, लेकिन दूध-दही, आटा-दाल, शिक्षक-डाक्टर की फीस वैसी की वैसी ही. घर के बजट में बचत का अंश आंशिक मात्रा की तरफ चला जा रहा है. अभी नेताओं की संपत्ति पढ़ रहा था. कुछ के विषय में पढ़कर आंसू आ गए. बेचारे, एक भी कार नहीं, एक भी गाड़ी उनके अपने नाम नहीं. अब पत्नी-बच्चों की बात मत करें. सिद्धांत की बात है, पत्नी भले मर्सिडीज पर चले लेकिन नेताजी तो पैदल ही चलेंगे.
एक फार्मूला था जो बड़ा गोपनीय था, जिसे सिद्ध करने के लिए कई वर्ष घोर तपस्या करनी पड़ती थी, तब जाकर कहीं कोई देवी-देवता प्रसन्न होते थे और सिद्धि प्रदान करते थे. हमारे पाँच पीढियों पूर्व के पुरखे ने एक बार एक को सिद्ध कर लिया और उसके बाद उनका एक रूपया हर वर्ष दस रुपये में बदलता रहा. लेकिन इस सिद्धि की एक लिमिट भी थी. ये आशीर्वाद केवल पाँच साल तक चलता था.
दूसरा तिलिस्म यह समझ में नहीं आता कि दर कम होती है लेकिन मंहगाई बढती जाती है. ये कौन सा अर्थ या अनर्थ शास्त्र है जिसमें सप्लाई बढ़ने पर भी मंहगाई बढती है और घटने पर भी. ये कौन सा चमत्कार है कि मंहगाई की दर तो दूरदर्शन पर कम होती मालूम चलती है, लेकिन दूध-दही, आटा-दाल, शिक्षक-डाक्टर की फीस वैसी की वैसी ही. घर के बजट में बचत का अंश आंशिक मात्रा की तरफ चला जा रहा है. अभी नेताओं की संपत्ति पढ़ रहा था. कुछ के विषय में पढ़कर आंसू आ गए. बेचारे, एक भी कार नहीं, एक भी गाड़ी उनके अपने नाम नहीं. अब पत्नी-बच्चों की बात मत करें. सिद्धांत की बात है, पत्नी भले मर्सिडीज पर चले लेकिन नेताजी तो पैदल ही चलेंगे.
एक फार्मूला था जो बड़ा गोपनीय था, जिसे सिद्ध करने के लिए कई वर्ष घोर तपस्या करनी पड़ती थी, तब जाकर कहीं कोई देवी-देवता प्रसन्न होते थे और सिद्धि प्रदान करते थे. हमारे पाँच पीढियों पूर्व के पुरखे ने एक बार एक को सिद्ध कर लिया और उसके बाद उनका एक रूपया हर वर्ष दस रुपये में बदलता रहा. लेकिन इस सिद्धि की एक लिमिट भी थी. ये आशीर्वाद केवल पाँच साल तक चलता था.
Sunday, February 12, 2012
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