Monday, July 10, 2017

अमरनाथ यात्रियों पर आतंकवादी हमला, 6 की मौत ..

कश्मीर घाटी में आतंकवादी अब अपने अस्तित्व के आखरी दौर में हैं. उनके ऊपर जो दबाव सेना ने बनाया है उस दबाव से निपटने के लिए उन्होंने अमरनाथ यात्रियों के ऊपर हमला किया है. यह कोई ढंकी छुपी बात नहीं कि इन आतंकियों को न केवल पडोसी देश से सहायता मिल रही है बल्कि कश्मीर के अलगाववादियों की तरफ से भी उनको सहयोग देने में कोई हीलाहवाली नहीं बरती जा रही. इसी क्रम में पिछले दिनों NIA द्वारा कई अलगाववादी नेताओं पर कार्रवाई की गयी है. 
लेकिन यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि केंद्र सरकार किस स्तर तक जाकर इन आतंकियों का उन्मूलन कर पाएगी. पंजाब के आतंकवाद और कश्मीर के आतंकवाद में बड़ा अंतर यह है कि कश्मीर के आतंकियों को अलगाववादी नेताओं के समर्थन के मुकाबले पंजाब के अलगाववादी नेताओं के समर्थन उस स्तर तक नहीं था एवं इस तरह और स्तर की राजनीति भी नहीं थी. निश्चित ही पंजाब में न तो पेड पत्थरबाज थे और पॉलिटिकल विल पॉवर भी काफी दृढ़ थी. 
भारत एक बड़ा देश है और बाहरी शक्तियां इसे अस्थिर करने में लगी रहती हैं. यहाँ भी स्वार्थी तत्व उन शक्तियों के साथ मिलकर भारत को दुश्चक्र में फांस रहे हैं. अब समय की मांग है कि कैसे भी, by hook or by crook, कैसे भी इन साजिशकर्ताओं को कुचला जाए. स्पष्ट है कि इसी बदलाव की अपेक्षा जनता को पहले भी थी और अब भी है.  


Thursday, July 6, 2017

वाहनों में हेडलाईट हमेशा ऑन रहेंगी

सरकार के निर्णय के अनुसार सभी वाहनों में अब हेडलाईट हमेशा ही ऑन रहेंगी. इन वाहनों में हेडलाइट को ऑफ करने का स्विच हटा दिया गया है. सरकार ने ये निर्णय भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को लेकर किया है. लेकिन क्या हर समय जलती रहने वाली ये हेडलाइट सामने से आने वाले वाहन चालक की नजर पर विजिबिल्टी पर बुरा प्रभाव नहीं डालेंगी. नये वाहनों में आने वाली हेडलाइट दिन में भी चकाचौध रोशनी देती हैं जिससे कई बार मैंने खुद नजरों में एकाएक चौंध महसूस की है. ये व्यवस्था उन जगहों के लिए तो सही हो सकती है जहाँ लगातार कुहरा पड़ता हो, लेकिन हमारे जैसे भौगोलिक क्षेत्र के लिए ये व्यवस्था उचित नहीं लगती.

सड़क दुर्घटनाओं के तीन मुख्य कारण हैं, पहला नाकाबिल चालक दूसरा वाहनों की खस्ता हालत तीसरा ओवरलोडिंग. नाकाबिल लोगों को लाइसेंस मिल जाता है, व्यवस्था कैसे काम करती है, सबको पता है. वही व्यवस्था वाहनों को फिटनेस देती है और उसी व्यवस्था में ओवरलोडिंग होती है. हमारे पास एर्रिंग ड्राइवर्स पर त्वरित कार्रवाई का कोई तरीका नहीं, वाहनों की हालत की सही रिपोर्टिंग की कोई व्यवस्था नहीं और ओवरलोडिंग पर काबू पाने का कोई जरिया नहीं. और न ही सरकार इसे लेकर ज्यादा गंभीर नजर आती है.

इसलिये इस एक व्यवस्था से दुर्घटनाओं में कमी आएगी, एक सदेच्छा ही मानी जा सकती है. अच्छा ही लगेगा यदि यह व्यवस्था वाकई कामयाब होती है. 

Monday, July 3, 2017

ओवैसी का विवादित बयान, कहा संसद में बनते हैं मुस्लिम विरोधी कानून

इस खबर को पढ़ें और निहितार्थ को पहचाने. ये एक तरह से रिएक्शन मापने को टेस्ट है इस के जरिये सिर्फ यह देखा जा रहा है कि इस तरह के बयानों से किस समाज पर क्या प्रतिक्रिया होगी. इसके साथ ही भारतीय कानून कितने आगे तक जाकर कार्रवाई कर सकते हैं.  ये मात्र अपने आप को मुस्लिमों का हमदर्द दिखाने के लिए या केवल लोकप्रियता हासिल करने भर को नहीं है. जो व्यक्ति खुल्लमखुल्ला  कहे कि संसद और विधान सभाओं में मुस्लिमों के विरुद्ध क़ानून बनते हैं वह निश्चित ही बहुत चालाक व्यक्ति है. इसे केवल एक अनर्गल प्रलाप के रूप में लेना उचित नहीं होगा. भारतीय समाज को खुद तो आत्मावलोकन करना ही पड़ेगा, लेकिन उससे बढ़कर संविधान की जिम्मेदारी निर्वहन करने वाले लोगों को ऐसे प्रलाप करने वालों के विरुद्ध त्वरित और कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. 

Saturday, July 1, 2017

पुस्तक, ब्लॉग, टीवी और फेसबुक

पुस्तकों में लोगों का रुझान लगभग समाप्त होता जा रहा है. पठन पाठन की स्थितियां भी आज से दस पंद्रह पूर्व जैसी थीं, वैसी नहीं रहीं. बच्चों पर उनके स्कूल बैग भारी पड़ गए. गृहिणियों को एक था कपूर के सीरियल और बाकी जो पुरुष थे उनको भी टीवी और इंटरनेट ले डूबा. वैसे ही जैसे सोशल मीडिया के प्रमुख सितारे फेसबुक और व्हाट्सएप्प ने ब्लॉग में सेंध मार दी और इन्हीं मैसेन्जर्स ने मोबाइल कम्पनियों की कॉल और एस एम एस जैसी सुविधाओं को किनारे लगा दिया.
तकनीकी अपग्रेडेशन तो होना ही है, इससे न तो बचा जा सकता है न ही बचा जाना चाहिए, लेकिन ऐसा भी न हो कि ये अपग्रेडेशन व्यक्ति पर भारी पड़ जाए. आने वाला समय कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है. वैसे तो अभी भी यह काम में आ ही रही है. आप दो चार विज्ञापन देखिये, इंटरनेट आपको आपकी रूचि के अनुसार दस विज्ञापन प्रस्तुत कर देता है. आपके द्वारा मोबाईल या लैपटॉप पर ब्राउज किये गये पृष्ठों के आंकड़े एकत्र किये जाते हैं और तदनुसार ही आपकी रूचि के अनुरूप वेब पेज या विज्ञापन सामने आ जाते हैं.
बहरहाल, इन सब तकनीकी विशेषताओं के चलते व्यक्ति का जो समय पत्र पत्रिकाओं और कहानी कविताओं के पठन पाठन में लगता था, वह समय इन सभी अप्लिकेशन ने निगल लिया. इसका एक कारण यह भी रहा कि यह सुगम हैं. व्यक्ति यदि पढ़ नहीं भी सकता या चाहता तो सुन सकता है और देख सकता है. पढ़ने की ज़हमत कौन उठाये. इसलिए सुविधा और सुगमता ने प्रिंट मीडिया, अखबार को छोड़कर, दरकिनार कर दिया.
हिंदी ब्लॉग में कतिपय कारणों से ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत जैसे एग्रीगेटर का बंद होना भी एक बड़ा कारण रहा. खैर जब वरिष्ठों के आह्वान (और आवाहन दोनों में अंतर है, क्या है मुझे इस समय बड़ा भ्रम है, कृपया बताएं) पर जब आज हिंदी ब्लॉग में लेख छापे जा रहे हैं तो यह भी निवेदन है कि ये दोनों या इन जैसे ही कोई अन्य एग्रीगेटर सक्रिय हों, जिससे कि ब्लॉग पर ब्लॉगर भी सक्रिय हो सकें.