Monday, June 20, 2011

अल्पसंख्यकों को भेदभाव से मुक्ति मिलेगी ....

राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली अल्पसंख्यकों की ओर बड़ी हसरत से निहार रही सरकार उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जमीन तैयार कर रही है। कोशिशें मुकाम तक पहुंची तो कम से कम नौकरी, पढ़ाई और आवासीय योजनाओं के मामले में उनके साथ भेदभाव करने वाले को तीन माह की जेल तो होगी ही, पांच लाख रुपए का जुर्माना भी लगेगा। यदि सरकार ने अपनी योजना को अमली जामा पहनाया तो वैसा ही विवाद खड़ा हो सकता है, जैसा सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएससी) द्वारा सुझाए गए सांप्रदायिक हिंसा निषेध कानून के मसौदे के वक्त हुआ था। वैसे तो अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की योजना प्रस्तावित समान अवसर आयोग के जरिए यह सुविधा समाज के सभी वर्गो के वंचित समूहों को दिलाने की थी, लेकिन खुद सरकार के भीतर उभरे मतभेदों के चलते अब यह सिर्फ अल्पसंख्यकों तक ही सीमित रहेगी। सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित आयोग के लिए तैयार मसौदे में नौकरी, शिक्षा और आवासीय योजनाओं में अल्पसंख्यकों संग भेदभाव रोकने का कड़ा प्रावधान किया गया है। इन मामलों के दोषियों को एक बार में तीन माह तक की सजा का प्रावधान है, जिसे बढ़ाया भी जा सकता है। पांच लाख तक का जुर्माना भी हो सकता है। उसके बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी रहने पर संबंधित विभाग, संस्था या दोषी व्यक्ति पर एक लाख रोजाना के हिसाब से अतिरिक्त जुर्माना किया जायेगा। सूत्र बताते हैं कि सभी वर्गों के वंचित समूहों के लिए प्रस्तावित इस आयोग के गठन पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, मानव संसाधन, वाणिज्य, शहरी गरीबी उन्मूलन, जनजातीय कार्य, गृह, कानून व श्रम मंत्रालय के कड़े विरोध के बाद अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय अब सिर्फ अल्पसंख्यक वर्ग के वंचित समूहों के लिए इस आयोग के गठन की तैयारी में फिर से जुट गया है। उसका मसौदा तैयार है, दर्जन भर संबंधित मंत्रालयों से उनकी राय मांगी गयी है। उनकी टिप्पणी आने के बाद मसौदे को अंतिम रूप देकर कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जायेगा। यह आयोग व्यक्तिगत मामलों की सुनवाई करने के बजाय समूह की शिकायतों पर गौर करेगा। उसे सिविल कोर्ट के अधिकार होंगे। सच्चर कमेटी ने मुसलमानों की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में वंचित समूहों के लिए समान अवसर आयोग बनाने की सिफारिश की थी। गत लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी इसका वादा किया था। संप्रग की दोबारा सरकार बनने के बाद से ही यह उसके एजेंडे पर तो रहा, लेकिन सरकार के भीतर उभरे मतभेद उसकी राह में रोड़ा बने रहे। खुद प्रधानमंत्री को उसके लिए मंत्रियों का समूह गठन करना पड़ा। उसकी तीन बैठकें हुईं। उसमें भी मंत्रियों ने सभी वर्गों के साथ भेदभाव रोकने के लिए समान अवसर आयोग का विरोध किया। कुछ मंत्री तो अपने-अपने मंत्रालयों के अधीन आयोगों का कद कम होने के डर से इसे सिर्फ अल्पसंख्यकों तक ही सीमित रखना चाहते थे।
 

Sunday, June 19, 2011

Sunday, June 12, 2011

एक प्राचीन कथा..

प्राचीन समय की बात है, एक बार विश्व के कई देशों के गृहरक्षकों के कौशल और चातुर्य की परीक्षा लेने के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इस प्रतियोगिता में एक परीक्षा आयोजित की गयी. इन देशों में युआश्व, आपान, स्क्वात और महार्य जैसे देश सम्मिलित थे.

परीक्षा हेतु युआश्व देश के गणाध्यक्ष श्रीमान दार्द जी की एक बकरी को घने जंगल में ले जाकर छोड़ दिया गया और चुनौती थी इस बकरी को कम से कम समय में खोज कर लाने की.
आपान देश के गृहरक्षकों ने जंगल की तरफ प्रस्थान किया और पन्द्रह घण्टे के परिश्रम के बाद बकरी बरामद की.
स्क्वात देश के गृहरक्षक इस कार्य को दस घण्टे में अंजाम दे सके.
युआश्व देश की तकनीकें बड़ी उम्दा थीं, वहां के गृहरक्षकों ने तकनीकी का प्रयोग किया और पांच घण्टे मे ही बकरी को खोज लिया.
अब बारी थी महान महार्य देश के गृहरक्षकों की. वे इधर गये और उधर से एक भालू जैसा जीव पकड़ लाये. महाराज दार्द जी उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गये, उन्होंने कहा ये तो मेरी बकरी नहीं है. इस पर मगृसे के एक अधिकारी ने अपने नगरपाल को कुछ समझाया. नगरपाल उस जीव को लेकर कारागार के एक कमरे की तरफ ले गया और आधे घण्टे बाद लेकर आया.
अब वह जीव जोर-जोर से कह रहा था, मैं भालू नहीं बकरी हूं, महाराज दार्द की ही बकरी हूं, बकरी हूं.
बात यहीं पर खत्म नहीं हुई. 

इस घटना के बाद पशुप्रेमियों की संस्थाओं ने बड़ी आपत्ति की, कि इस प्रकार का रवैया तो पशुओं के अधिकारों का उल्लंघन है और एक नोटिस जारी कर दिया. .फिर इस प्रकरण पर जांच बैठी. इस जांच में मगृसे के एक वरिष्ठ अधिकारी को पूरा दायित्व सौंपा गया. उनके दल में मआसे के एक अधिकारी थे और स्थानीय प्रशासन के भी कुछ अधिकारी शामिल थे.
आठ साल अठारह महीने में अठहत्तर मीटिंगों में तकरीबन चार सौ बयालीस लोगों के बयान दर्ज किये गये. कुछ वृद्ध व्यक्ति थे जो जांच पूरी होते होते अगला जन्म लेने हेतु स्वर्ग सिधार गये. बच्चे भी थे जो युवा हो गये और जांच पूरी होते होते भूल गये कि उन्होंने क्या देखा था. जिन पर आक्षेप लगे थे वे सेवानिवृत्त हो गये. महार्य देश की मात्र दो सौ अठ्ठावन करोड़ मुद्रायें इस जांच में व्यय हुई. प्रतिपक्ष ने इस आयोग की जांच पर प्रश्न चिन्ह उठाये और विधान-पंच-समिति को नहीं चलने दिया.
इस पर महार्य देश के गणाध्यक्ष ने एक और समिति बना दी आयोग के निष्कर्षों की जांच के लिये, जिसमें चार उनके अपने दल के, दो अ०अ०ब०द० के, एक ज०ब०स०द० के, दो क०ख०ग०पा० के पंच-समिति सदस्य सम्मिलित किये गये. समिति ने कुछ संशोधन और कुछ सुझाव दिये.
जानवरों के हितों की रक्षा के लिये दिये गये सुझावों को मान लिया गया और मगृसे और मआसे के दर्जन भर अधिकारियों  को प्रति वर्ष ट्रेनिंग लेने और मानव तथा पशु संसाधनों के डवलपमेंट हेतु युआश्व जाने का प्रस्ताव रखा गया जिसे एक संशोधन के बाद सहर्ष स्वीकार कर लिया गया. इस संशोधन में यह किया गया कि विधान-पंच-समिति के भी आठ सदस्यों को प्रतिवर्ष प्रशिक्षण हेतु इसमें सम्मिलित कर लिया गया.यह सदस्य अकेले रहने के अभ्यस्त नहीं थे इसलिये उन्हें सपरिवार जाने की अनुमति दी गयी.
एक बार फिर वही प्रतियोगिता आयोजित हुई. यह प्रतियोगिता हर चार वर्ष में आयोजित की जाती थी. 
पुन: बकरी छोड़ी गयी.
आपान देश के गृहरक्षकों ने उसे आठ घण्टों में खोज लिया.
स्क्वात देश के गृहरक्षक पांच घण्टे में खोज लाये.
युआश्व देश के गृहरक्षकों को मात्र तीन घण्टे लगे महाराज की बकरी खोजने में.
अब मौका मिला महार्य देश के गृहरक्षकों को. वे घण्टे भर के अन्दर लौट आये. मगर यह क्या! पुन: भालू जैसा जीव. लोगों में खुसर-पुसर प्रारम्भ हो गयी. इन लोगों ने कुछ भी नहीं सीखा, लगता है फिर इस जीव को अन्दर ले जाया जायेगा.
मगृसे के अधिकारी ने गर्व से चारों तरफ देखा, उसकी समझ में आ चुका था कि लोग क्या कह रहे हैं. उसने एक संकेत दिया. नगरपाल आ गये. इस बार उन्होंने भालू की रस्सी को नहीं पकड़ा. मगृसे के अधिकारी माइक सम्भाल चुके थे. उन्होंने कहना प्रारम्भ कर दिया. "आप लोगों को लग रहा होगा कि हम लोग फिर जीवों के अधिकारों का उल्लंघन करेंगे, किन्तु ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, हम युआश्व देश में ट्रेंड होकर लौटे हैं, कोई इस जीव को छुयेगा तक नहीं."
लोग आश्चर्यचकित थे. नगरपाल महाराज दार्द के पास पहुंचे और उन्हें अपने साथ ले गये. थोड़ी देर बाद महाराज दार्द वापस आ गये. अब महाराज कह रहे थे "यही तो मेरी बकरी है".

Saturday, June 11, 2011

एक इस्लामी मुल्क में एक नौजवान की सरेआम हत्या




क्या इन्हें मानव कहा जा सकता है? यह किस धर्म को मानते हैं, कौन सी शिक्षा ग्रहण कर आये हुये लोग हैं जो एक नौजवान को सरेआम गोली दाग कर मौत के घाट उतार देते है ? इतना निर्मम , क्रूर और जघन्य आचरण!

Thursday, June 9, 2011

बाबा रामदेव जी, आप क्यों सोने का दिखावा करने वालों को जगाना चाहते हैं...

किसके लिये आप कर रहे हैं ये सब. जिनके लिये कर रहे हैं उन्हें  कोई मतलब ही नहीं.
जनता के दिमाग में घुसा दिया गया है कि भ्रष्टाचार खत्म हो ही नहीं सकता.
बाबा की सम्पत्ति का ब्यौरा सब मांग रहे हैं, और उसमें भी छेद खोज रहे हैं लेकिन बाकी दागी-बागी किसी से आजतक पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाये कि भैया नेताजी, उद्योगपति जी और अफसर जी आपके पास कितना धन है, कहां कहां कितनी सम्पत्ति है.
बाबा ने ट्रस्टों के बारे में बता दिया वो तो चलो ठीक है लेकिन कम्पनियों के बारे में क्यों नहीं बताया.
किसी राजनीतिक दल का लेखा-जोखा लेने की हिम्मत आजतक नहीं हुई.
बाबा नींबू-पानी-शहद लेने पर तैयार हो गये हैं, इस पर बहुत बड़ी आपत्ति है. चैनल वाले कह रहे हैं कि ऐसा क्यों कर रहे हैं बाबा.
बाबा ने कानून तोड़ा, लेकिन सुनील कुमार की पिटाई करने वालों ने क्या कानून की प्रतिष्ठा में इजाफा किया.
जिस उम्र में युवा सुरा-सुन्दरी की कल्पना करने लगते हैं, उस उम्र में बाबा एक कपड़े को पहन योग सिखाना प्रारम्भ करते हैं. हमारे जैसे बड़बड़ाने वाले कितने लोगों में हिम्मत है ऐसा करने की.
बाबा ने पूरे देश में गांव गांव जाकर जागृति  फैलाने का कार्य किया, कितने लोगों ने ऐसा किया. कितने लोग घूमे हैं गांव-गांव.
बाबा ने क्यों पहन लिया महिलाओं का चोला. अपनी जान बिना मतलब में खतरे में डालना कोई बुद्धिमानी है. यदि पुलिस बाबा की सुरक्षा के लिये आई थी तो क्या सभी नेताओं की सुरक्षा इसी तरह से करती है पुलिस.
और फिर लाख कमियां हों बाबा के अन्दर, हो भी सकती हैं, आखिर रेमण्ड्स मैन होना तो लगभग नामुमकिन है, लेकिन उनके द्वारा उठाये जा रहे मुद्दे क्या कोई मायने नहीं रखते. अरे कानून बने तो सही, बाबा की भी जांच उसी स्कैनर से हो जाये.
हत्या-बलात्कार-डकैती-धोखाधड़ी के आरोपी संसद-विधानसभा में पहुंच कर माननीय हो जाते हैं और एक व्यक्ति जो व्यवस्था की कमी दिखा रहा है उस के लिये पहले ही अपराधी सिद्ध किया जा रहा है.
भ्रष्टाचार की लड़ाई आम आदमी को लड़ना चाहिये बाबा कौन होते हैं. फिर हमें नेताओं और कानूनों की भी जरूरत है क्या. सारी लड़ाई तो आम आदमी खुद ही लड़ सकता है और लड़ता चला भी आ रहा है और यह भी सम्भव है कि हजार-डेढ़ हजार साल में भारत के आम आदमी की यह सारी दिक्कतें दूर हो जायें.
बाबा को योग ही सिखाना चाहिये. वकील, डाक्टर, अध्यापक, व्यापारी फिर राजनीति में क्यों दाखिल हो जाते हैं उन्हें भी इस्तीफा देकर अपना धन्धा ही संभालना चाहिये.
बाबा ने लोगों से मांगकर धन कमाया उससे तमाम अन्य प्रोजेक्ट स्थापित किये, क्यों किये? उनका यह काम नहीं था, उनका काम था, उस धन से मठ बनाकर चुपचाप बैठ जाते और प्रवचन करते रहते. क्या फायदा सैकड़ों हजारों लोगों को रोजगार देने का, क्या लाभ तमाम गांवों में कार्य करने का.
योगी हैं फ्री में सिखायें, बहुत कमा चुके हैं. डाक्टर, अध्यापक, वकील, व्यापारी इन लोगों से भी अपील की जाये कि बहुत कमा लिया , फ्री में काम करें.

Sunday, June 5, 2011

सन्न और निशब्द

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