अल्पसंख्यकों से भेदभाव करने वाले जाएंगे जेल - जागरण के ई-पेपर का लिंक
राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली अल्पसंख्यकों की ओर बड़ी हसरत से निहार रही सरकार उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जमीन तैयार कर रही है। कोशिशें मुकाम तक पहुंची तो कम से कम नौकरी, पढ़ाई और आवासीय योजनाओं के मामले में उनके साथ भेदभाव करने वाले को तीन माह की जेल तो होगी ही, पांच लाख रुपए का जुर्माना भी लगेगा। यदि सरकार ने अपनी योजना को अमली जामा पहनाया तो वैसा ही विवाद खड़ा हो सकता है, जैसा सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएससी) द्वारा सुझाए गए सांप्रदायिक हिंसा निषेध कानून के मसौदे के वक्त हुआ था। वैसे तो अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की योजना प्रस्तावित समान अवसर आयोग के जरिए यह सुविधा समाज के सभी वर्गो के वंचित समूहों को दिलाने की थी, लेकिन खुद सरकार के भीतर उभरे मतभेदों के चलते अब यह सिर्फ अल्पसंख्यकों तक ही सीमित रहेगी। सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित आयोग के लिए तैयार मसौदे में नौकरी, शिक्षा और आवासीय योजनाओं में अल्पसंख्यकों संग भेदभाव रोकने का कड़ा प्रावधान किया गया है। इन मामलों के दोषियों को एक बार में तीन माह तक की सजा का प्रावधान है, जिसे बढ़ाया भी जा सकता है। पांच लाख तक का जुर्माना भी हो सकता है। उसके बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी रहने पर संबंधित विभाग, संस्था या दोषी व्यक्ति पर एक लाख रोजाना के हिसाब से अतिरिक्त जुर्माना किया जायेगा। सूत्र बताते हैं कि सभी वर्गों के वंचित समूहों के लिए प्रस्तावित इस आयोग के गठन पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, मानव संसाधन, वाणिज्य, शहरी गरीबी उन्मूलन, जनजातीय कार्य, गृह, कानून व श्रम मंत्रालय के कड़े विरोध के बाद अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय अब सिर्फ अल्पसंख्यक वर्ग के वंचित समूहों के लिए इस आयोग के गठन की तैयारी में फिर से जुट गया है। उसका मसौदा तैयार है, दर्जन भर संबंधित मंत्रालयों से उनकी राय मांगी गयी है। उनकी टिप्पणी आने के बाद मसौदे को अंतिम रूप देकर कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जायेगा। यह आयोग व्यक्तिगत मामलों की सुनवाई करने के बजाय समूह की शिकायतों पर गौर करेगा। उसे सिविल कोर्ट के अधिकार होंगे। सच्चर कमेटी ने मुसलमानों की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में वंचित समूहों के लिए समान अवसर आयोग बनाने की सिफारिश की थी। गत लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी इसका वादा किया था। संप्रग की दोबारा सरकार बनने के बाद से ही यह उसके एजेंडे पर तो रहा, लेकिन सरकार के भीतर उभरे मतभेद उसकी राह में रोड़ा बने रहे। खुद प्रधानमंत्री को उसके लिए मंत्रियों का समूह गठन करना पड़ा। उसकी तीन बैठकें हुईं। उसमें भी मंत्रियों ने सभी वर्गों के साथ भेदभाव रोकने के लिए समान अवसर आयोग का विरोध किया। कुछ मंत्री तो अपने-अपने मंत्रालयों के अधीन आयोगों का कद कम होने के डर से इसे सिर्फ अल्पसंख्यकों तक ही सीमित रखना चाहते थे।