जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
Friday, April 1, 2011
पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने के भी तीन सौ रुपये.....
चौकी से पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतिलिपि लेने के लिये पांच चक्कर और तीन सौ रुपये. देश में किसी सुधार, किसी बदलाव, किसी क्रान्ति की गुंजाइश है ?
कुछ समय पहले एक न्यूज चैनल पर स्टिंग देखा था की पोस्मार्टम करने के लिए पैसे मांगे जा रहे थे नहीं तो वो कई दिनी तक उस बॉडी का पोस्मार्टम नहीं करते थे और परिजनों को परेशानी होती थी साथ ही बॉडी को ख़राब होने से बचने के लिए एक लेप लगाया जाता है उसे लगाने के लिए भी हजारो रुपये परिजनों से लिया जाता था |
@अंशुमाला जी-पत्रकारों को भी सब मालूम रहता है, स्टिंग आपरेशन अवश्य पहली बार हुआ है. ये पत्रकार रोज पोस्टमार्टम हाउस जाते हैं और ये सब देखते हैं. यही हाल चिकित्सा अधीक्षक और पुलिस-प्रशासनिक अफसरों का है.
अफ़सोस कि सिर्फ पोस्ट-मोरटम करने वाले ही नहीं, अपितु पूरा देश ही कफ़न चोर है ! और कुछ नहीं होना क्योंकि एक-दो होते तो उन्हें सुधारते , १२५ करोड़ को कौन सुधारेगा ?
गुंजाइश तो नहीं , लेकिन ह्रदय जब व्यथित होता है तो लोग क्रान्ति कि उम्मीद कर बैठते हैं और तत्पर भी रहते हैं
ReplyDeleteकोई मरे कोई जिये,
ReplyDeleteसुथरा घोल बताशे पिये.
कुछ समय पहले एक न्यूज चैनल पर स्टिंग देखा था की पोस्मार्टम करने के लिए पैसे मांगे जा रहे थे नहीं तो वो कई दिनी तक उस बॉडी का पोस्मार्टम नहीं करते थे और परिजनों को परेशानी होती थी साथ ही बॉडी को ख़राब होने से बचने के लिए एक लेप लगाया जाता है उसे लगाने के लिए भी हजारो रुपये परिजनों से लिया जाता था |
ReplyDeleteजख्मों में नमक।
ReplyDeleteकफ़न उतारने वाले केवल शमशानों में ही नहीं होते...
ReplyDeleteलानत है ऐसे कफनचोरों पर।
ReplyDeleteक्या कहें..... शर्म आती है यह सब जानकर .....कैसी क्रांति और कैसा बदलाव .......
ReplyDeleteहलवाई को मीठे की परवाह कम ही होती है.
ReplyDeleteयहाँ, बिने दिये एक साईन नही होते आपको तो फिर भी रिपोर्ट की कापी चाहिए थी।
ReplyDeleteगुंजाईश तो है, जरूरत है बस लठ्ठ उठाने की।
@अंशुमाला जी-पत्रकारों को भी सब मालूम रहता है, स्टिंग आपरेशन अवश्य पहली बार हुआ है. ये पत्रकार रोज पोस्टमार्टम हाउस जाते हैं और ये सब देखते हैं. यही हाल चिकित्सा अधीक्षक और पुलिस-प्रशासनिक अफसरों का है.
ReplyDeleteसबसे महत्वपूर्ण आपकी टिप्पणी लगी , सबको सब पता है , बस जो इन पर कार्यवाही कर सकते हैं , सिर्फ उन्हें ही पता नहीं होता !
ReplyDeleteअफ़सोस कि सिर्फ पोस्ट-मोरटम करने वाले ही नहीं, अपितु पूरा देश ही कफ़न चोर है ! और कुछ नहीं होना क्योंकि एक-दो होते तो उन्हें सुधारते , १२५ करोड़ को कौन सुधारेगा ?
ReplyDeleteगुंजाईश हमें ही पैदा करनी होगी हमें ही इस बारे में प्रयास करना होगा.हम केवल सरकार से उम्मीद लगाकर नहीं रह सकते हमारे एकजुट होने का वक्त आ गया है.
ReplyDeleteयह तो रिपोर्ट लेने के है उससे पहले पोस्टमार्टम के समय भी तो रुपये देने पडते है ........ फ़ैशन के युग मे क्रान्ति की बात बेमानी लगती है
ReplyDeleteSach mein koi gunjaaish nahi hai ...
ReplyDeleteनव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteक्रांति के लिए इससे आदर्श स्थिति भला और क्या होगी!
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