कल एक खबर छपी थी जिसके अनुसार विदिशा के गुलाबगंज में पटरी पार करते समय दो बच्चे सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस की चपेट में आ गये. और इसके बाद "गुस्साये लोगों" ने रेलवे स्टेशन फूँक दिया जिसमें दो कर्मचारी जिन्दा जला दिये गये और एक की हालत गम्भीर बताई जाती है.
१.ये बच्चे अपनी मां के साथ थे और मालगाड़ी के नीचे से निकल कर पटरी पार कर रहे थे.
२.क्या मालगाड़ी के नीचे से निकल कर पटरी पार करना सही है?
३.मुझे नहीं पता लेकिन इस खबर से यह लगता है कि ये लोग स्टेशन पर ही रहे होंगे क्योंकि स्टेशन से दूर मालगाड़ी के नीचे से निकल कर पटरी पार करने का कोई औचित्य नहीं समझ में आता.
४.पहले तो पटरी पार करने के लिये स्टेशन पर बने पुल का प्रयोग करना चाहिये और जहाँ कहीं पुल नहीं होते वहाँ चारों तरफ देखकर निकलना चाहिये.
५.क्या सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस का चालक अब पूरे मार्ग भर यह देखता चले कि कहाँ लोग मनमाने ढ़ंग से पटरी पार कर रहे हैं?
६.इसके बाद भीड़ ने स्टेशन पर आग लगा दी जिसमें दो लोगों को जिन्दा फूंक दिया.
७."गुस्साये लोग" या "हिंसक अपराधी"? भीड़ का गुस्सा वहाँ तो एक घड़ी को जायज माना जा सकता है जहाँ व्यक्ति विशेष जान-बूझकर दुर्घटना करे, लेकिन जहाँ पर मालगाड़ी के नीचे से निकलकर पटरी पार की जा रही हो वहाँ!
८.ऊपर से निरपराध कर्मचारियों को जलाकर मारना! क्या कर्मचारियों की यह ड्यूटी है कि वह पटरी पार करते लोगों की निगरानी करे!
९.कई साइटों और अखबारों में गुस्साई भीड़ और गुस्साये लोग जैसे उद्बोधन दिये गये हैं जो मेरी दृष्टि में पूरी अनुचित है.
१०.इसके साथ एक खबर और भी थी जिसमें आरपीएफ के जवानों ने एक महिला को धक्का दे दिया जिससे ट्रेन के नीचे आने से उसकी मौत हो गयी.
११.दोनों ही घटनाओं में पाँच जानें चली गयीं इन पाँच जानों की पूर्ति नहीं हो सकती, उनके परिवारों के लिये यह क्षति कभी नहीं पूरी हो सकती.
१२.यदि गुलाबगंज रेलवे स्टेशन पर ऐसी स्थितियां हैं कि लोगों को इस तरह पटरी पार करना मजबूरी है तो ऐसी परिस्थितियों को अनदेखी करने वाले जिम्मेदार व्यक्तियों के प्रति कड़ी कार्रवाई हो, विभागीय तथा विधिक.
१३.जिन आतताइयों ने आग लगाकर दो कर्मचारियों को जीवित जला दिया उन्हें तत्काल ही पकड़कर साल भर के अन्दर उनके मुकदमे का फैसला होना चाहिये.
१४.आरपीएफ के जिन जवानों ने एक महिला को धक्का दिया उस मामले में जांच किसी बाहरी एजेन्सी से एक सप्ताह के अन्दर कराकर दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई हो तथा उनके मुकदमे का निपटारा भी साल भर के अन्दर होना चाहिये.
क्योंकि यदि इस तरह की घटनाओं पर कड़ी विधि-सम्मत कार्रवाई होकर न्याय नहीं होता तो धीरे-धीरे अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी और बाद में कार्यपालिका और विधायिका को भी इस स्थिति से पार पाना मुमकिन नहीं हो सकेगा.