Thursday, July 21, 2011

सिलीगुड़ी में तेंदुआ

खबर पढ़ रहा था कि सिलीगुड़ी में एक तेंदुआ जंगलों से भटककर आ गया. इसी प्रकार मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री के निवास के पास भी एक तेंदुआ पकड़ा गया. महाराष्ट्र में भी ऐसी कई घटनायें हुई हैं. कारण है कि भारत में मनुष्यों की आबादी तेजी से बढ़वाई जा रही है, जिन्हें रहने के लिये घर चाहिये तो उसके लिये खेतों का नाश किया जाता है और जब खाना चाहिये तो जंगल काटकर खेत बनाये जाते हैं.  अब ऐसे पशु-पक्षी कहां जायें जिनका गुजारा ही जंगलों से होना है, नतीजा होता है कि वे कभी-कभी शहरों की तरफ आ जाते हैं और फिर जो सौभाग्यशाली होते हैं, वे पकड़ लिये जाते हैं जीवित. तथा जिनका भाग्य अच्छा नहीं होता वे सिलीगुड़ी वाले तेंदुये की तरह मारे जाते हैं. इतने बड़े देश में आजादी के चौंसठ साल बाद भी हमारे पास ऐसे प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं जो एक तेंदुये पर उचित मात्रा में ट्रैक्वलाइजर का प्रयोग कर उसे बेहोश कर पकड़ सकें. मैं अभी चित्र देख रहा था जहां उस पर बंदूकों से ऐसे हमला किया जा रहा था वैसा तो किसी आतंकवादी पर भी नहीं किया जाता होगा. मैं तो उन लोगों को धन्य कहता हूं जो विदेशी हैं किन्तु मानवीय जानों के साथ, अन्य प्राणियों की जानों की रक्षा के लिये भी उसी तत्परता से आतुर रहते हैं. डिस्कवरी पर एक प्रोग्राम देख रहा था व्हेल मछलियों को बचाने वाले लोगों के ऊपर, जो लगातार कई वर्षों से व्हेल के शिकारियों को रोकने के लिये स्वत: आगे आकर कार्य कर रहे हैं. लेकिन जिस देश में आदमी की जान का कोई मोल नहीं, वहां एक जानवर की जान का मोल क्या होगा. चीते की तरह ही सारे जानवर भारत से विलुप्त हो जायेंगे और उस दिन बचेगा तो सिर्फ मानवीय अस्तित्व धारी एक प्राणी जिसे इंसान कहना शायद ही मुमकिन होगा.

Tuesday, July 19, 2011

इस्लाम तो शांति का उपदेश देता है लेकिन उसके ये तथाकथित अनुयायी!

एक और दिल दहला देने वाला वीडियो लाइवलीक डाट काम पर आया है जिसमें पाकिस्तान के स्वात में तालिबानियों ने सुरक्षा-कर्मियों पर छ: बच्चों की हत्या का आरोप लगाते हुये सोलह सुरक्षा-कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया.  मारने वाले और मरने वाले दोनों ही मुसलमान हैं. अल्लाह को मानने वाले और अल्लाह के बंदे. बेशक इस्लाम शांति का संदेश देता होगा, किन्तु उसके अनुयायियों की करतूतें तो ऐसी हैं कि मानवता को शर्मसार कर दें.  यह कैसा न्याय है कि सामने वाले को अपना पक्ष तक एक निष्पक्ष अदालत के, जज के सामने रखने का मौका तक न दिया जाये और  फिर जल्लाद ही जज बनकर फैसला सुना दे. ये तालिबानी तो स्वयं ही ख़ुदा बन बैठे. अगर इन्हें ही बिना किसी सुनवाई के फैसला देने का अधिकार है तो निश्चित रूप से फिर किसी कानून-किसी पुस्तक की आवश्यकता रही ही नहीं. तब फिर अल्लाह के बन्दे होने का दिखावा क्यों. भयावह बात यह है कि भारत में भी इस प्रकार की मानसिकता वाले तत्वों की कमी नहीं, जो गाहे-बगाहे यहां पर शरीयत के अनुसार सभी फैसले कराने की मांग करते हैं और कई बार तो इन फैसलों और अदालतों को कानूनी जामा पहनाने की बात करते हैं. ऊपर से हमारे यहां के राजनीतिबाज वोटों की राजनीति के चलते इस मानसिकता को दबाने के स्थान पर उभारने में लगे रहते हैं. ऐसे में अल्लाह ही इन्हें सद्बुद्धि दे.

Monday, July 18, 2011

किस प्रकार पाकिस्तान के मुस्लिम संगठन दूसरे धर्मों का सम्मान करते है - एक उदाहरण

कुछ मुस्लिम संगठनों ने लाहौर में सिखों को उनके धार्मिक समारोह करने से रोक दिया और दावत-ए-इस्लामी नामक समूह के प्रयासों से सिखों के वाद्य यन्त्रों को उठाकर फेंक दिया. पूरी खबर यहां है.
"लाहौर में सिखों को नहीं करने दिया धार्मिक समारोह इस्लामाबाद, प्रेट्र : पाकिस्तान में लाहौर के पूर्वी क्षेत्र में सिखों को एक गुरुद्वारे में धार्मिक समारोह आयोजित करने से रोक दिया गया है। यह फैसला प्रशासन ने एक संगठन द्वारा यह यकीन दिलाने के बाद किया कि मुस्लिम त्योहार शब-ए-बरात सिखों के त्योहार से ज्यादा महत्वपूर्ण है। द ट्रिब्यून अखबार के मुताबिक, दावत-ए-इस्लामी समूह के प्रयासों से 13 जुलाई को सिखों के वाद्य यंत्रों को बाहर फेंक दिया गया और गुरुद्वारे में उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया। गुरुद्वारे के बाहर पुलिस को तैनात किया गया, ताकि वह सिखों को अपना धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने से रोके। सोमवार को शब-ए-बरात है। लाहौर के नौलखा बाजार में गुरुद्वारा शहीद भाई तारू सिंह सिख संत की याद में बनवाया गया था। हालांकि विभाजन के बाद गुरुद्वारे पर इवैक्यूइ ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (इटीपीबी) का अधिकार हो गया था और सिखों को कुछ प्रतिबंधों के साथ इसका उपयोग जारी रखने की अनुमति दे दी गई थी। चार साल पहले दावत-ए-इस्लामी ने दावा किया था कि यह गुरुद्वारा 15वीं शताब्दी के मुस्लिम संत पीर शाह काकू की मजार पर बनाया गया है। इसके बाद सिखों ने इटीपीबी से संपर्क किया, जो दोनों समुदायों को अपनी मान्यताओं के अनुसार गुरुद्वारे में धार्मिक उत्सव मनाने की अनुमति देती है।"
अब यदि इस्लाम और कुरान तथा अन्य मुस्लिम धर्म-ग्रन्थ दूसरे धर्मानुयायियों के साथ भेद-भाव की इजाजत नहीं देते, मजहब के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति या मजहब पर अत्याचार की इजाजत नहीं देते तो फिर ये किस प्रकार की गैर-इस्लामी हरकते हैं और कौन लोग इन्हें अंजाम दे रहे हैं. तथा ऐसे संगठनों और इनसे जुड़े लोगों के खिलाफ मजहबी नेता फतवे जारी क्यों नहीं करते. कहीं ऐसा तो नहीं कि इनके पैमाने भी अलग-अलग हों और समानता की, न्याय की, सभी को एक बराबर मानने की बातें मात्र दिखावा करने भर को की जाती हों इन लोगों के द्वारा.

Thursday, July 14, 2011

चलिये एक बार फिर से मोमबत्तियां जलायें.

जी हां, घर से निकलिये हाथ में मोमबत्तियां लेकर. कल चौराहे पर जलाकर विरोध प्रदर्शित कीजिये. अखबार और टीवी में बयान पढ़िये कि फलां-फलां लोग हमारी सहनशक्ति की परीक्षा न ले. आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादियों से सख्ती से निपटा जायेगा. शायद मरने वालों और घायलों को मुआवजे की घोषणा भी हो गयी होगी. और कुछ राजनीतिबाज, कुछ सिकलुरिस्टों के बयान का इन्तजार कीजिये कि इसमें हिन्दू आतंकवादियों का हाथ हो सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं और उसके बाद फिर लोकसभा के भी २०१४ में चुनाव होंगे, इसलिये साम्प्रदायिक ताकतें ऐसा कर रही हैं और इसकी न्यायिक जांच होना चाहिये.
इन राजनीतिबाजों, सोते हुये असहाय लोगों पर डन्डा चलाने के आदेश देने वालों के सगे-सम्बन्धी इन हमलों के दायरे में नहीं आते इसलिये इनके सीने में दर्द नहीं होता और यहां का आम आदमी विलक्षण है. मरता रहेगा लेकिन घर से बाहर नहीं निकलेगा. वह यह भूल जाता है कि जो बम मुम्बई में फट रहा है, वह उसके शहर में, उसकी गली में, उसके घर के बाहर भी फट सकता है और उसके सगे-सम्बन्धी भी ऐसे ही किसी बम का शिकार हो सकते हैं.
तो कीजिये इन्तजार अपने मरने का, अपने किसी सगे के मरने का ऐसे बम-ब्लास्ट में. अमेरिका को कोसने वाले देखें कि अमेरिका में ९/११ के बाद कितनी सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी और भारत में क्या किया गया. राजनीतिबाज तो कुर्सी के लिये हर चीज दांव पर लगाये बैठे हैं, उनके लिये कटघरे में तो हम ही खड़ा कर सकते हैं. बाहर से कोई नहीं आयेगा मदद के लिये. और अगर यूं ही सोये रहने का दिखावा करते रहे तो अपने मां-बाप, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री के नाम की भी मोमबत्ती तैयार रखिये.