अन्ना हजारे जन-लोकपाल को लेकर अनशन पर बैठ चुके हैं. अब हमारे यहां के बुद्धिजीवी उन्हें अकल सिखा रहे हैं. एक प्रवक्ता कह रहे हैं कि अन्ना को यह नहीं करना चाहिये, लोकतन्त्र के अन्दर ऐसी जिद ठीक नहीं. अन्ना को बताना चाहिये वे क्या चाहते हैं, बात करना चाहिये. एक अखबार वाले कह रहे हैं कि लोकतन्त्र है, ठीक है, लेकिन अन्ना को ऐसा नहीं करना चाहिये. ठीक है आप सबकी राय मान ली जायेगी, आप लोग खुद ही बताओ कि आप की पार्टी और आप के अखबार ने क्या किया है भ्रष्टाचार के विरुद्ध. कौन सा ठोस कदम इतने सालों में उठाया है भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये. क्या प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट काफी है. इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्या किया जिसमें चालीस रुपये की दाल सौ रुपये में बिकवा दी, पच्चीस रुपये की चीनी सत्तर रुपये में बिकवा दी. निजी स्कूल, निजी अस्पताल अपनी मनमर्जी से फीस में दो सौ प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी कर देते हैं. विशेष स्कूल की विशेष किताबें विशेष दुकान पर विशेष मूल्य में. विशेष चिकित्सक की लिखी विशेष दवाई विशेष दुकान पर विशेष मूल्य में. एक सड़क जो बनना चाहिये थी, नहीं बनी. जो सात साल चलना चाहिये थी, सात महीने में उखड़ गयी. प्रधान जी-विधायक जी-सांसद जी जो कभी साइकिल पर चलते थे, पद पाते ही स्कूलों-कालेजों के संचालक बन गये और करोड़ों में खेलने लगे. हर चौराहे पर मची लूट किसी को नहीं दिखाई देती. प्रवक्ता जी और सम्पादक जी आपने इस सबके विरुद्ध क्या किया है, जरा हिसाब दें...
Aristocracy was a lot better than this form of democracy, you can revolt there without being labelled 'Deshdrohi' .
ReplyDeleteToday, one newspaper is pro-govenment, another newspaper is pro-opposition. But no newspaper is pro-truth. As such, media can't be expected to do something substantial in this regard.
ReplyDeleteपीड़ा को सहना और उसे व्यक्त करना, दोनों में ही स्वतंत्रता है।
ReplyDeleteसच है कल कांगेस के एक प्रवक्ता को मैने भी सुना अन्ना को समझाते हुवे ....
ReplyDeleteइस गिरी हुई राजनीति से और क्या उम्मीद करी जा सकती है ...
ऐसी जिद लोकतंत्र में नहीं तो क्या राजतंत्र में की जाएगी.. आखिर किस बात का लोकतंत्र है कि जब जनता की मांग ही नहीं मानी जाएगी..
ReplyDeleteअन्याय के खिलाफ अनशन!
ReplyDelete....को कब रास आयेगी?
अखबारों ने कई मायने में खुद को मनोरंजन का साधन बना लिया है, उन्हें इतनी गंभीरता से मत लीजिए. एक जिम्मेदार संपादक ने मुझसे कहा था- कल सुबह नया अखबार आ जाएगा, आप बेवजह परेशान हो रहे हैं और कर रहे हैं.
ReplyDeleteअब तो हिसाब देना ही पडेगा, हजारे जी ने लठ्ठ जो उठा लिया है। (गांधी जी वाला)
ReplyDeleteयह हिसाब ही तो नहीं देना चाहते ये लोग......
ReplyDeleteइतना बडा देश एक नायक के सहारे खडा है?
ReplyDeleteगतिस्त्वम् गतिस्तम् त्वमेका भवानी ...
हिमालय से कोई गंगा बहे तभी कल्याण संभव। मगर इस गंगा के लिए भगीरथ प्रयास तो करना ही होगा।
ReplyDeleteनिठल्ले कुछ करते नहीं , और जो करते हैं उन को प्रवचन देने वाले बहुत आ जाते हैं ।
ReplyDeleteअन्ना हज़ारे की यह कवायद क्या गुल खिलायेगी यह तो समय बतायेगा . लेकिन एक कानून बनने से भ्रष्टाचार रुक पायेगा मुझे तो इसमे संदेह है .
ReplyDelete@dhiru singh {धीरू सिंह} ;
ReplyDeleteअगर ऐसे ही "इफ्स और बट्स" अगर वो लोग जिन्होंने देश की आजादी के लिए सच्ची कुर्बानी दी सोचने लगते तो .... १८५७ से शुरू हुआ संग्राम ९० साल बाद १९४७ में मुकाम पर पहुंचा और आप है की अभी से हथियार डाल रहे है ?
@ गोदियाल जी:
ReplyDeleteजो कानून पहले से बने हैं, उनका क्या सही से पालन हो रहा है? सिर्फ़ कानून बन जाने से ही तो लड़ाई नहीं जीत ली मानी जायेगी।
आज तो रामदेव का वक्तव्य सुनने वाला था .....):
ReplyDeleteभ्रष्टाचारियों को फांसी देकर जलाओ या दफनाओ मत ...ममी बना आसमान में लटका दो ......):):
और कर भी क्या सकते हैं ये लोग...उपद्देश ही दे सकते हैं.
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