Wednesday, April 6, 2011

अन्ना हजारे को अक्ल सिखाते हमारे बुद्धिजीवी

अन्ना हजारे जन-लोकपाल  को लेकर अनशन पर बैठ चुके हैं. अब हमारे यहां के बुद्धिजीवी उन्हें अकल सिखा रहे हैं. एक प्रवक्ता कह रहे हैं कि अन्ना को यह नहीं करना चाहिये, लोकतन्त्र के अन्दर ऐसी जिद ठीक नहीं. अन्ना को बताना चाहिये वे क्या चाहते हैं, बात करना चाहिये. एक अखबार वाले कह रहे हैं कि लोकतन्त्र है, ठीक है, लेकिन अन्ना को ऐसा नहीं करना चाहिये. ठीक है आप सबकी राय मान ली जायेगी, आप लोग खुद ही बताओ कि आप की पार्टी और आप के अखबार ने क्या किया है भ्रष्टाचार के विरुद्ध. कौन सा ठोस कदम इतने सालों में उठाया है भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये. क्या प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट काफी है. इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्या किया जिसमें चालीस रुपये की दाल सौ रुपये में बिकवा दी, पच्चीस रुपये की चीनी सत्तर रुपये में बिकवा दी. निजी स्कूल, निजी अस्पताल अपनी मनमर्जी से फीस में दो सौ प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी कर देते हैं. विशेष स्कूल की विशेष किताबें विशेष दुकान पर विशेष मूल्य में. विशेष चिकित्सक की लिखी विशेष दवाई विशेष दुकान पर विशेष मूल्य में. एक सड़क जो बनना चाहिये थी, नहीं बनी. जो सात साल चलना चाहिये थी, सात महीने में उखड़ गयी. प्रधान जी-विधायक जी-सांसद जी जो कभी साइकिल पर चलते थे, पद पाते ही स्कूलों-कालेजों के संचालक बन गये और करोड़ों में खेलने लगे. हर चौराहे पर मची लूट किसी को नहीं दिखाई देती. प्रवक्ता जी और सम्पादक जी आपने इस सबके विरुद्ध क्या किया है, जरा हिसाब दें...

17 comments:

  1. Aristocracy was a lot better than this form of democracy, you can revolt there without being labelled 'Deshdrohi' .

    ReplyDelete
  2. Today, one newspaper is pro-govenment, another newspaper is pro-opposition. But no newspaper is pro-truth. As such, media can't be expected to do something substantial in this regard.

    ReplyDelete
  3. पीड़ा को सहना और उसे व्यक्त करना, दोनों में ही स्वतंत्रता है।

    ReplyDelete
  4. सच है कल कांगेस के एक प्रवक्ता को मैने भी सुना अन्ना को समझाते हुवे ....
    इस गिरी हुई राजनीति से और क्या उम्मीद करी जा सकती है ...

    ReplyDelete
  5. ऐसी जिद लोकतंत्र में नहीं तो क्‍या राजतंत्र में की जाएगी.. आखिर किस बात का लोकतंत्र है कि जब जनता की मांग ही नहीं मानी जाएगी..

    ReplyDelete
  6. अन्याय के खिलाफ अनशन!
    ....को कब रास आयेगी?

    ReplyDelete
  7. अखबारों ने कई मायने में खुद को मनोरंजन का साधन बना लिया है, उन्‍हें इतनी गंभीरता से मत लीजिए. एक जिम्‍मेदार संपादक ने मुझसे कहा था- कल सुबह नया अखबार आ जाएगा, आप बेवजह परेशान हो रहे हैं और कर रहे हैं.

    ReplyDelete
  8. अब तो हिसाब देना ही पडेगा, हजारे जी ने लठ्ठ जो उठा लिया है। (गांधी जी वाला)

    ReplyDelete
  9. यह हिसाब ही तो नहीं देना चाहते ये लोग......

    ReplyDelete
  10. इतना बडा देश एक नायक के सहारे खडा है?
    गतिस्त्वम् गतिस्तम् त्वमेका भवानी ...

    ReplyDelete
  11. हिमालय से कोई गंगा बहे तभी कल्याण संभव। मगर इस गंगा के लिए भगीरथ प्रयास तो करना ही होगा।

    ReplyDelete
  12. निठल्ले कुछ करते नहीं , और जो करते हैं उन को प्रवचन देने वाले बहुत आ जाते हैं ।

    ReplyDelete
  13. अन्ना हज़ारे की यह कवायद क्या गुल खिलायेगी यह तो समय बतायेगा . लेकिन एक कानून बनने से भ्रष्टाचार रुक पायेगा मुझे तो इसमे संदेह है .

    ReplyDelete
  14. @dhiru singh {धीरू सिंह} ;
    अगर ऐसे ही "इफ्स और बट्स" अगर वो लोग जिन्होंने देश की आजादी के लिए सच्ची कुर्बानी दी सोचने लगते तो .... १८५७ से शुरू हुआ संग्राम ९० साल बाद १९४७ में मुकाम पर पहुंचा और आप है की अभी से हथियार डाल रहे है ?

    ReplyDelete
  15. @ गोदियाल जी:
    जो कानून पहले से बने हैं, उनका क्या सही से पालन हो रहा है? सिर्फ़ कानून बन जाने से ही तो लड़ाई नहीं जीत ली मानी जायेगी।

    ReplyDelete
  16. आज तो रामदेव का वक्तव्य सुनने वाला था .....):
    भ्रष्टाचारियों को फांसी देकर जलाओ या दफनाओ मत ...ममी बना आसमान में लटका दो ......):):

    ReplyDelete
  17. और कर भी क्या सकते हैं ये लोग...उपद्देश ही दे सकते हैं.

    ReplyDelete

मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.