Monday, March 28, 2011

पायलटों के फर्जी लाइसेंस पर इतना हो-हल्ला क्यों ?

पूरे देश में बड़ी हाय-तौबा मची हुई है कि पायलटों के लाइसेंस में गड़बड़ियां हुई हैं. उनके उड़ान के घण्टे बढ़ा दिये गये हैं, थ्रोटल के पीछे बिना पर्याप्त समय बिताये ही. बिना जहाज उड़ाये ही उनके लाइसेंस जारी कर दिये गये हैं. एक असिस्टेन्ट डाइरेक्टर की गिरफ्तारी भी हुई है. इतना हंगामा बरपा दिया है, पूछो मत. आखिर इतना हो-हल्ला क्यों मचा रखा है एक छोटे से घोटाले को लेकर. क्या सिर्फ इसलिये कि हवाई-जहाज में यात्रा करने वाले बड़े लोग होते हैं. अमूमन बड़े लोग ही हवाई-जहाजों से यात्रा करते हैं और यदि कोई दुर्घटना होती है तो बड़े घरों के चश्म-ओ-चिराग, बड़े व्यापारी, नेता, पत्रकार इसके शिकार होते हैं. बिल्कुल यही बात है, अगर यह बात न होती तो इन बड़े लोगों की आंखों पर कौन सी पट्टी बंधी हुई है जिन्हें पायलटों का फर्जीवाड़ा तो दिखाई देता है, लेकिन वह फर्जीवाड़ा नहीं दिखाई देता जो हर जिले में रोज होता है. अगर अभी भी नहीं समझे तो जान जाइये - सड़क पर गाड़ी चलाने के लिये आवश्यक परमिट अर्थात ड्राइविंग लाइसेंस. किसी भी एक कारण से मरने वाले लोगों की संख्या से कई गुना अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इन दुर्घटनाओं के तीन ही मुख्य कारण होते हैं. पहला अपात्रों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना और दूसरा गाड़ियों की फिटनेस, इसके अतिरिक्त तीसरा कारण खराब सड़कें और यातायात के नियमों का पालन न करना है. 
किसी भी जिले के परिवहन विभाग के दफ्तर को देख आइये. आप बिना आक्सीजन के एवरेस्ट शिखर पर तो चढ़ सकते हैं, लेकिन इनके दफ्तर के बाहर बैठे हुये दलालों की मदद के बिना आप न तो ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकते हैं और न ही अपनी गाड़ी से सम्बन्धित अन्य कार्य. हां, यदि आप रसूखदार व्यक्ति हैं तो आप के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है. अव्वल तो आपको अपने कार्य से सम्बन्धित प्रपत्र मिलेंगे ही नहीं और अगर मिल भी जायेंगे तो आप फीस जमा नहीं कर पायेंगे. फीस जमा करने से लेकर लर्निंग/परमानेन्ट ड्राइविंग लाइसेन्स बनवाने के लिये इतने झंझट उठाने पड़ेंगे कि आप अपना सिर ठोक लेंगे कि पहले ही दलाल से क्यों न मिल लिये. सारी चीजें प्रशासन की जानकारी में होती हैं, नेता सब जानते हैं, अफसरों को सब पता होता है कि दफ्तर के बाहर बैठे यह दलाल जो बीमा-मित्र का बोर्ड लगाये रहते हैं, असल में दलाली का काम करते हैं. आप के पास कोई प्रमाणपत्र हो या न हो, इनके पास हर मर्ज का इलाज है. किसी भी व्यक्ति की उम्र, पते के सत्यापन के लिये इनके पास पहले से ही मौजूद कुछ फोटोकापियां होती हैं, जिन पर व्यक्ति का नाम पता कागज चिपकाकर लिख दिया जाता है और फिर उसकी फोटोकापी प्रपत्र के साथ संलग्न कर दी जाती है.
बस एक बार व्यक्ति को जरूर सक्षम प्राधिकारी के आगे प्रस्तुत होना पड़ता है, ऐसी मजबूरी इसलिये है क्योंकि कई दफा कुछ बदमाश व्यक्तियों ने कुछ प्रसिद्ध लोगों के नाम से ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिये या फिर अन्धे, लूले-लंगड़े लोगों के, जो गाड़ी चलाने के लिये किसी कीमत पर पात्र नहीं थे. 
ड्राइविंग लाइसेन्स बनवाने के लिये तमाम औपचारिकतायें होती हैं, एक टेस्ट भी होता है, जिसमें गाड़ी भी चलवाकर देखी जा सकती है और यातायात के नियमों की जानकारी की थाह लेना भी शामिल होता है, तथा लाइसेन्सार्थी की शारीरिक उपयुक्तता भी सम्मिलित है, किन्तु जब आर-बी-आई के गवर्नर द्वारा हस्ताक्षरित वचनपत्र सामने आ जाते हैं तो अन्य किसी भी चीज की वांछनीयता खत्म हो जाती है. न जाने कितने ऐसे लोगों के ड्राइविंग लाइसेन्स जारी कर दिये जाते हैं जो पूरी तरह से अपात्र होते हैं और नतीजा सामने आता है सड़क दुर्घटनाओं के रूप में. घर से निकलते वक्त किसी को भी यह आश्वासन नहीं होता कि वह शाम तक किसी सड़क दुर्घटना का शिकार नहीं होगा. जब आधे-अधूरे-बिना किसी ज्ञान के साथ  अपात्र ड्राइवर सड़क पर वाहन लेकर निकलेगा तो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है. हजारों की संख्या में होने वाली सड़क दुर्घटनायें अपने आप में कहानी बयान करती हैं.
उम्मीद किससे? किसी से नहीं. क्यों? शिकायत किससे करेंगे. इन जगहों से रोज नेताओं-अफसरों का सामना होता है. लेकिन किसी को यह दिखाई नहीं देता, जिसे यह दिखाई ही नहीं देगा, उसे एक कागज पर लिखे हर्फ क्या दिखाई देंगे. शिकायत का नतीजा यहां होता क्या है, सब जानते हैं, पहले आप अपनी शिकायत करने के लिये पच्चीस-पचास रुपये लगायें, फिर उसका नतीजा (जो कभी नहीं आता या आता है तो शिकायत आधारहीन पाई जाती है या फिर शिकायत करने वाले को आदतन शिकायतकर्ता बता दिया जाता है) जानने के लिये फिर तीन-चार महीने और डेढ़-दो सौ रुपये खर्च करें. और हां, काम तो होगा नहीं, क्योंकि शिकायत हो गयी है. कोई अधिक तगड़ा फंस गया तो शिकायतकर्ता का हाल इन्जीनियर सत्येन्द्र की तरह भी हो सकता है. इसलिये नतीजा सिफर. शून्य की खोज का श्रेय भी तो भारत के लिये ही जाता है. क्या इस सबसे यह सिद्ध नहीं होता कि सड़क पर चलने वाले की जान की कीमत, हवाई जहाज में चलने वाले की जान की अपेक्षा नगण्य है, इसीलिये पायलटों के फर्जीवाड़े पर इतना शोर और ड्राइवरों के लाइसेंस जारी करने में धांधली के खिलाफ एक शब्द तक नहीं, कार्रवाई तो बहुत दूर की बात है.

Friday, March 18, 2011

हमें शर्म कब आयेगी...

पहले अमेरिकी दबाव में मन्त्री बदले जाते हैं, फिर न्यूक्लियर डील के चलते सरकार बचाने के लिये चालीस करोड़ की रकम दी जाती है सांसदों को मैनेज करने के लिये. विकीलीक्स के खुलासे के बाद अब Lame Excuses ही शेष बचते हैं. अब कुछ भी कहने को शेष नहीं. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि जिन्हें इस सब का पता है और जो इन बातों पर मगजमारी करते हैं, उनमें से अधिकतर न तो वोट देते हैं और न ही उनके वोटों में इस सब को बदलने की ताकत होती है; और जो वोट देते हैं उन्हें न तो इस सब का पता होता और न ही इस सब से कुछ लेना-देना.

गिद्ध तो देखे ही होंगे. प्रकृति के स्वच्छकार. मृत जानवरों को खाकर अपना पेट पाल लेते हैं और सफाई भी कर  देते हैं. लेकिन उन्हें क्या कहेंगे जो कफनखसोट हैं. जीवित के साथ मुर्दे को भी नहीं बख्शते. अगर मानवीय गिद्ध न देखे हों तो पोस्ट-मार्टम हाउस पर देख लीजिये. पहले आठ सौ से हजार रुपये पोस्ट-मार्टम के लिये, फिर सिपाही जी की सेवा. मृत शरीर के लिये स्ट्रेचर भी नसीब नहीं होता. उल्टे-सीधे ढ़ंग से सिला हुआ शरीर,  रखने की जगह न तो पोस्ट-मार्टम से पहले नसीब होती है और न ही बाद में. दो लोग एक डण्डा नीचे से लगाकर पटक देते हैं.  स्वच्छकार और सिलाई करने वाले को पैसे देना तो इसलिये समझ में आ सकता है क्योंकि यह बाहर से लाये गये लोग होते हैं, जिनके लिये नगण्य वेतन दिया जाता है. लेकिन बाकी लोग?  वो वर्दीधारी जो शव को ले जाने के लिये सौ रुपये लेता है. वो व्यक्ति जो पोस्टमार्टम कराने के लिये आठ सौ-हजार रुपये ले जाता है. शायद गिद्ध भी इनसे लाख गुना अच्छे होते हैं..


Wednesday, March 16, 2011

ए०राजा के सहयोगी बाचा की मौत, और हमारे नेता चाहते हैं लोकायुक्त के अधिकारों की समीक्षा

टेलीकाम घोटाले के आरोपी ए०राजा के निकट रहे सादिक बाचा ने आत्महत्या कर ली. सादिक की कम्पनियों में टेलीकाम घोटाले की धनराशि लगाने का संदेह था. सादिक बाचा से कई दौर की पूछताछ की जा चुकी थी और अब जब सादिक बाचा ही नहीं रहा तो एक अहम गवाह की गवाही सिरे से गयी. लिहाजा टेलीकाम घोटाले की भी धीरे-धीरे शान्ति से ठण्डे पड़ने की पूरी सम्भावना है.

शीला दीक्षित जी कह रही हैं कि लोकायुक्त के अधिकारों की समीक्षा होना चाहिये. बसपा के एक विधायक भी कहते हुये दिखाई दिये कि राजनीति में तो झूठी शिकायतें भी बहुत होती हैं और हर शिकायत पर नोटिस, ये-वो होने लगा तो बहुत दिक्कत हो जायेगी. मजे की बात यह है कि यह तय कौन करेगा कि शिकायत सच्ची है या झूठी, इसी के लिये तो लोकायुक्त बनाया गया है. लोकायुक्त जिस मन्त्री को हटाने की सिफारिश करते हैं, उस मन्त्री को अभी तक पद पर रखा गया है. शायद यही तरीका है भ्रष्टाचार से लड़ने का.

आरक्षण, समर्थन और विरोध

पहले एक बिरादरी आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान में सामने आई थी और अब उत्तर प्रदेश में एक और बिरादरी. दलित मुस्लिम और ईसाई नाम की एक नई बिरादरी भी सामने आ रही है, इन्हें भी आरक्षण देने की मांग उठ रही है. यद्यपि इस बिरादरी की मांगों का विरोध भी होना प्रारम्भ हो गया है. विरोध वे कर रहे हैं, जिन्हें लगता है कि यदि इस बिरादरी को आरक्षण दे दिया गया तो उनकी प्रतिशतता कम हो जायेगी. आरक्षण अब नौकरी तक सीमित नहीं रह गया, इसका व्यापक प्रभाव हर क्षेत्र में है, शिक्षा, नौकरी, पदोन्नति, राजनीति, ठेके वगैरह. हर वह बिरादरी जो वोट बैंक बन सकती है या बन जाती है, आरक्षण की मांग कर रही है. आज एक जाति है तो कल दूसरी खड़ी होगी. यह एक अच्छा तरीका हो सकता है यदि जातियों के अनुपात में सभी के लिये आरक्षण दे दिया जाये. इसमें किसी बिरादरी के नाराज होने की भी सम्भावना नहीं. जिस की जितनी जनसंख्या, उसी अनुपात में आरक्षण. इसमें अधिक कठिनाई भी नहीं होना चाहिये क्योंकि जनगणना के बाद सारे आंकड़े उपलब्ध हो जायेंगे. लेकिन फिर वही दिक्कत रहेगी कि यदि इसे लागू कर दिया गया तो फिर यह मुद्दा शायद राजनीति के लिये कारगर नहीं रह जायेगा.

Tuesday, March 15, 2011

सत्यार्थ प्रकाश के बारे में एक छोटा सा सवाल

"सत्यार्थ प्रकाश"  एक बहुत अच्छा ग्रन्थ है. मैंने पूरा तो नहीं पढ़ा लेकिन इसके कुछ पृष्ठ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.  स्वामी दयानन्द द्वारा लिखित यह ग्रन्थ मन को झकझोरने वाला है. इसे प्रकाशित हुये लगभग सौ वर्ष से ऊपर हो गये हैं. अभी आई०टी०एक्ट में सम्भावित संशोधन के बारे में काफी चर्चा है. आई०टी० एक्ट में प्रस्तावित संशोधनों के ऊपर चर्चाओं को पढ़ने के बाद मेरे मन में यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि स्वामी दयानन्द क्या आज की तारीख में सत्यार्थ प्रकाश प्रकाशित कराने में कामयाब हो सकते? और यदि येन-केन-प्रकरेण प्रकाशित हो भी जाता तो क्या होता ???   

Friday, March 11, 2011

कई दर्जन ब्लागरों को पुरस्कार दिए जाने का ऐलान

रविन्द्र प्रभात जी के ब्लाग पर खबर है कि :-

प्रकाशन संस्‍थान हिंदी साहित्‍य निकेतन 50 वर्षों की अपनी विकास-यात्रा और गतिविधियों को प्रस्‍तुत करने के लिए एक भव्‍य आयोजन कर रहा है. यह कार्यक्रम आगामी 30 अप्रैल को हिंदी भवन में दोपहर तीन बजे से आयोजित किया जाएगा. इस मौके पर देश विदेश में रहने वाले लगभग 400 ब्‍लॉगरों का सम्‍मेलन भी आयोजित किया जा रहा है. परिकल्‍पना समूह के तत्‍वावधान में आयोजित ब्‍लॉगोत्‍सव 2010 के अंतर्गत चयनित 51 ब्‍लॉगरों को 'सारस्‍वत सम्‍मान' से नवाजा जाएगा.
इस मौके पर लगभग 400 पृष्‍ठों की पुस्‍तक 'हिंदी ब्‍लॉगिंग : अभिव्‍यक्ति की नई क्रांति', हिंदी साहित्‍य निकेतन की द्विमासिक पत्रिका 'शोध दिशा' के विशेष अंक (इसमें ब्‍लॉगोत्‍सव 2010 में प्रकाशित सभी प्रमुख रचनाओं को शामिल किया गया है), हिंदी उपन्‍यास 'ताकि बचा रहे गणतंत्र', रश्मि प्रभा के संपादन में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 'वटवृक्ष' के प्रवेशांक के साथ कई अन्‍य किताबों का भी लोकार्पण होगा. इस कार्यक्रम में विमर्श, परिचर्चाएं एवं सांस्‍कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया जाएगा. पूरे कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण इंटरनेट के माध्‍यम से पूरे विश्‍व में किया जाएगा.
हिंदी ब्‍लॉगिंग में अविस्‍मरणीय योगदान देने वाले 51 ब्‍लॉगरों को मोमेंटो, सम्‍मान पत्र, पुस्‍तकें, शाल एवं एक निश्चित धनराशि प्रदान कर सम्‍मानित किया जाएगा. सम्‍मानित किए जाने वाले ब्‍लॉगरों का विवरण
1.         वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लॉगर - अक्षिता पाखी, पोर्टब्लेयर
2.         वर्ष के श्रेष्ठ कार्टूनिस्ट - श्री काजल कुमार, दिल्ली
3.         वर्ष की श्रेष्ठ कथा लेखिका - श्रीमती निर्मला कपिला, नांगल (पंजाब)
4.         वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक - डॉ. अरविन्द मिश्र, वाराणसी
5.         वर्ष की श्रेष्ठ संस्मरण लेखिका - श्रीमती सरस्वती प्रसाद, पुणे
6.         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक - श्री रवि रतलामी, भोपाल
7.         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (यात्रा वृतान्त) - श्रीमती शिखा वार्ष्णेय, लंदन
8.         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (यात्रा वृतान्त) - श्री मनोज कुमार, कोलकाता
9.         वर्ष के श्रेष्ठ चित्रकार - श्रीमती अल्पना देशपांडे, रायपुर
10.       वर्ष के श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक - श्री शास्त्री जे.सी. फिलिप, त्रिवेन्‍द्रम
11.       वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्री - श्रीमती रश्मि प्रभा, पुणे
12.       वर्ष के श्रेष्ठ कवि - श्री दिवि‍क रमेश, दिल्ली
13.       वर्ष की श्रेष्ठ सह लेखिका - सुश्री शमा कश्यप, पुणे
14.       वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार - श्री अविनाश वाचस्पति, दिल्ली
15.       वर्ष की श्रेष्ठ युवा गायिका - सुश्री मालविका, बैंगलोर
16.       वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय लेखक - श्री संजीव तिवारी, रायपुर
17.       वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय कवि - श्री एम. वर्मा, वाराणसी
18.       वर्ष के श्रेष्ठ गजलकार - श्री दिगम्बर नासवा, दुबई
19.       वर्ष के श्रेष्ठ कवि (वाचन) - श्री अनुराग शर्मा, पिट्सबर्ग अमेरिका
20.       वर्ष की श्रेष्ठ परिचर्चा लेखिका - श्रीमती प्रीति मेहता, सूरत
21.       वर्ष के श्रेष्ठ परिचर्चा लेखक - श्री दीपक मशाल, लंदन
22.       वर्ष की श्रेष्ठ महिला टिप्पणीकार - श्रीमती संगीता स्वरूप, दिल्ली
23.       वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार - श्री हिमांशु पाण्डेय, सकलडीहा (यू.पी.)
24-25-26.  वर्ष की श्रेष्ठ उदीयमान गायिका – खुशबू/अपराजिता/इशिता, पटना (संयुक्त रूप से)
27.       वर्ष के श्रेष्ठ बाल साहित्यकार - श्री जाकिर अली 'रजनीश', लखनऊ
28.       वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार  (आंचलिक) - श्री ललित शर्मा, रायपुर
29.       वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार (गायन) - श्री राजेन्द्र स्वर्णकार, जयपुर
30-31.  वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार - डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक', खटीमा एवं आचार्य संजीव वर्मा सलिल, भोपाल (संयुक्त रूप से)
32.       वर्ष की श्रेष्ठ देशभक्ति पोस्ट - कारगिल के शहीदों के प्रति ( श्री पवन चंदन)
33.       वर्ष की श्रेष्ठ व्यंग्य पोस्ट - झोलाछाप डॉक्टर (श्री राजीव तनेजा)
34.       वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि - श्री ओम आर्य, सीतामढ़ी बिहार
35.       वर्ष के श्रेष्ठ विचारक - श्री जी.के. अवधिया, रायपुर
36.       वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक - श्री गिरीश पंकज, रायपुर
37.       वर्ष की श्रेष्ठ महिला चिन्तक - श्रीमती नीलम प्रभा, पटना
38.       वर्ष के श्रेष्ठ सहयोगी - श्री रणधीर सिंह सुमन, बाराबंकी
39.       वर्ष के श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (पुरूष) – डॉ. सुभाष राय, लखनऊ  (उ0प्र0)
40.       वर्ष की श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (महिला) - श्रीमती संगीता पुरी, धनबाद
41.       वर्ष के श्रेष्ठ तकनीकी ब्लॉगर - श्री विनय प्रजापति, अहमदाबाद
42.       वर्ष के चर्चित उदीयमान ब्लॉगर - श्री खुशदीप सहगल, दिल्ली
43.       वर्ष के श्रेष्ठ नवोदित ब्लॉगर - श्री राम त्यागी, शिकागो अमेरिका
44.       वर्ष के श्रेष्ठ युवा पत्रकार - श्री मुकेश चन्द्र, दिल्ली
45.       वर्ष के श्रेष्ठ आदर्श ब्लॉगर - श्री ज्ञानदत्त पांडेय, इलाहाबाद
46.       वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग शुभचिंतक - श्री सुमन सिन्हा, पटना
47.       वर्ष की श्रेष्ठ महिला ब्लॉगर - श्रीमती स्वप्न मंजूषा 'अदा', अटोरियो कनाडा
48.       वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉगर - श्री समीर लाल 'समीर', टोरंटो कनाडा
49.       वर्ष की श्रेष्ठ विज्ञान पोस्ट - भविष्य का यथार्थ (लेखक - जिशान हैदर जैदी)
50.       वर्ष की श्रेष्ठ प्रस्तुति - कैप्टन मृगांक नंदन एण्ड टीम, पुणे
51.       वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (हिन्दी चिट्ठाकारी विषयक पोस्ट) - श्री प्रमोद ताम्बट, भोपाल


हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान-२०११

इसके अंतर्गत ग्यारह ब्लॉगरों के नाम तय किये गए हैं , जिन्हें हिंदी ब्लॉगिंग में
दिए जा रहे विशेष योगदान के लिए हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान प्रदान किया जायेगा : -

(१)     श्री श्रीश शर्मा (ई-पंडित), तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर  (हरियाणा)
(२)   श्री कनिष्क कश्यप, संचालक ब्लॉगप्रहरी, दिल्ली
(३)   श्री शाहनवाज़ सिद्दिकी, तकनीकी संपादक, हमारीवाणी, दिल्ली
(४)   श्री जय कुमार झा, सामाजिक जन चेतना को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(५)   श्री सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी, महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
(६)   श्री अजय कुमार झा, मीडिया चर्चा से रूबरू कराने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(७)   श्री रविन्द्र पुंज, तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर (हरियाणा)
(८)   श्री रतन सिंह शेखावत, तकनीकी विशेषज्ञ, फरीदाबाद (हरियाणा )
(९)   श्री गिरीश बिल्लौरे 'मुकुल', वेबकास्ट एवं पॉडकास्‍ट विशेषज्ञ, जबलपुर
(१०) श्री पद्म सिंह, तकनीकी विशेषज्ञ, दिल्ली
(११) सुश्री गीताश्री, नारी विषयक लेखिका, दि‍ल्ली

यूंही नजर पड़ गयी और बहुत अच्छा लगा उक्त समाचार पढ़कर. सभी को बधाई.....

Sunday, March 6, 2011

भगवा युद्ध.... भड़ास 4 मीडिया से साभार....

भगवा युद्ध : एक युद्ध राष्ट्र के विरुद्ध

: जेयूसीएस और फुट प्रिंट्स प्रस्तुति की फिल्म : अवधि - 61 मिनट :  इस फिल्म के निर्माण की शुरुआत 2005 में मऊ दंगे के रूप में पूर्वी उत्तर प्रदेश में हिंदुत्ववादियों द्वारा गुजरात दोहराने की कोशिश को समझाने के लिए हुई. इसके कुछ अंशों को अयोध्या फिल्म महोत्सव और इंडिया हैबिटेट सेंटर नई दिल्ली में प्रदर्शित किया जा चुका है. फिल्म के कुछ दृश्यों के आधार पर मानवाधिकार संगठनों ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में मुक़दमा किया है.

गोरखनाथ पीठ सदियों से निचली श्रमिक जातियों की ब्राह्मणवाद विरोधी सांस्कृतिक चेतना का केंद्र रहा है. कालांतर में मुस्लिमों को एक हिस्सा भी इसके प्रभाव में आया और मुस्लिम जोगियों की एक धरा भी यहाँ से बह निकली. लेकिन पिछली एक सदी से यह पीठ सावरकर के हिन्दू राष्ट्र के सपने को साकार करने की प्रयोगस्थली बन गयी है. जिसके तहत 'हिन्दुओं के सैन्यकरण और अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने' का खाका खिंचा जा रहा है. इस विचार की अभियक्ति समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर समेत देश के कई हिस्सों में हुए आतंकिवादी विस्फोटों में हुई है. यह फिल्म समाज में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए की जा रही 'टेरर पोलिटिक्स' को समझाने का एक प्रयास है.
निर्देशक - राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, लक्ष्मण प्रसाद
परिकल्पना - शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव, शरद जयसवाल, विजय प्रताप, शाह आलम
संपादन - राकेश कुमार, संदीप दुबे
सम्पर्क - 623/13 शंकरपुरी, कमता, पोस्ट-चिनहट,लखनऊ (उ.प्र.) 09415254919,09452800752

Wednesday, March 2, 2011

न्याय वही सही होता है जब हमारे पक्ष में होता है और हीरो वही होता है जो जीतता है ...

मेरे हिसाब से हम लोगों का एक जैसा ही मानना है कि न्याय वही सही है जब हमारे पक्ष में हो और नायक वही होता है जो जीतता है. हिटलर जीत जाता तो इतिहास और इतिहासकार उसकी दुहाई दे रहे होते और हेमू जीत जाता तो हेमू की गाथायें दर्ज होतीं. कौरव जीत गये होते तो शायद दुर्योधन के पक्ष में हम लोग तर्कों के बाण लेकर खड़े होते. आजकल बड़ी वितृष्ण सी हो रही है. किसी काम को करने की इच्छा नहीं हो रही है. नेता, अफसर सब एक जैसे. सब भाषण पिलाकर ही जनता को स्वस्थ करने की महती जिम्मेदारी निभा रहे हैं. आश्वासनों का चूर्ण बांटते हैं और कानून अपना काम करेगा, जैसे मधुर वाक्य कान में डालकर गरीबों की क्षुधा को शान्त करने की दिशा में पूर्ण प्रयास कर रहे हैं. गरीब भी उतना ही चालाक बन रहा है, अपना वोट यूं ही नहीं डालता!  कहीं नोट तो कहीं दारू और कहीं कपड़े. नूरा कुश्ती चालू है और यह भी कि कौन किसे बेवकूफ बना ले और कितनी अधिक मात्रा में.