Monday, March 28, 2011

पायलटों के फर्जी लाइसेंस पर इतना हो-हल्ला क्यों ?

पूरे देश में बड़ी हाय-तौबा मची हुई है कि पायलटों के लाइसेंस में गड़बड़ियां हुई हैं. उनके उड़ान के घण्टे बढ़ा दिये गये हैं, थ्रोटल के पीछे बिना पर्याप्त समय बिताये ही. बिना जहाज उड़ाये ही उनके लाइसेंस जारी कर दिये गये हैं. एक असिस्टेन्ट डाइरेक्टर की गिरफ्तारी भी हुई है. इतना हंगामा बरपा दिया है, पूछो मत. आखिर इतना हो-हल्ला क्यों मचा रखा है एक छोटे से घोटाले को लेकर. क्या सिर्फ इसलिये कि हवाई-जहाज में यात्रा करने वाले बड़े लोग होते हैं. अमूमन बड़े लोग ही हवाई-जहाजों से यात्रा करते हैं और यदि कोई दुर्घटना होती है तो बड़े घरों के चश्म-ओ-चिराग, बड़े व्यापारी, नेता, पत्रकार इसके शिकार होते हैं. बिल्कुल यही बात है, अगर यह बात न होती तो इन बड़े लोगों की आंखों पर कौन सी पट्टी बंधी हुई है जिन्हें पायलटों का फर्जीवाड़ा तो दिखाई देता है, लेकिन वह फर्जीवाड़ा नहीं दिखाई देता जो हर जिले में रोज होता है. अगर अभी भी नहीं समझे तो जान जाइये - सड़क पर गाड़ी चलाने के लिये आवश्यक परमिट अर्थात ड्राइविंग लाइसेंस. किसी भी एक कारण से मरने वाले लोगों की संख्या से कई गुना अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इन दुर्घटनाओं के तीन ही मुख्य कारण होते हैं. पहला अपात्रों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना और दूसरा गाड़ियों की फिटनेस, इसके अतिरिक्त तीसरा कारण खराब सड़कें और यातायात के नियमों का पालन न करना है. 
किसी भी जिले के परिवहन विभाग के दफ्तर को देख आइये. आप बिना आक्सीजन के एवरेस्ट शिखर पर तो चढ़ सकते हैं, लेकिन इनके दफ्तर के बाहर बैठे हुये दलालों की मदद के बिना आप न तो ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकते हैं और न ही अपनी गाड़ी से सम्बन्धित अन्य कार्य. हां, यदि आप रसूखदार व्यक्ति हैं तो आप के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है. अव्वल तो आपको अपने कार्य से सम्बन्धित प्रपत्र मिलेंगे ही नहीं और अगर मिल भी जायेंगे तो आप फीस जमा नहीं कर पायेंगे. फीस जमा करने से लेकर लर्निंग/परमानेन्ट ड्राइविंग लाइसेन्स बनवाने के लिये इतने झंझट उठाने पड़ेंगे कि आप अपना सिर ठोक लेंगे कि पहले ही दलाल से क्यों न मिल लिये. सारी चीजें प्रशासन की जानकारी में होती हैं, नेता सब जानते हैं, अफसरों को सब पता होता है कि दफ्तर के बाहर बैठे यह दलाल जो बीमा-मित्र का बोर्ड लगाये रहते हैं, असल में दलाली का काम करते हैं. आप के पास कोई प्रमाणपत्र हो या न हो, इनके पास हर मर्ज का इलाज है. किसी भी व्यक्ति की उम्र, पते के सत्यापन के लिये इनके पास पहले से ही मौजूद कुछ फोटोकापियां होती हैं, जिन पर व्यक्ति का नाम पता कागज चिपकाकर लिख दिया जाता है और फिर उसकी फोटोकापी प्रपत्र के साथ संलग्न कर दी जाती है.
बस एक बार व्यक्ति को जरूर सक्षम प्राधिकारी के आगे प्रस्तुत होना पड़ता है, ऐसी मजबूरी इसलिये है क्योंकि कई दफा कुछ बदमाश व्यक्तियों ने कुछ प्रसिद्ध लोगों के नाम से ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिये या फिर अन्धे, लूले-लंगड़े लोगों के, जो गाड़ी चलाने के लिये किसी कीमत पर पात्र नहीं थे. 
ड्राइविंग लाइसेन्स बनवाने के लिये तमाम औपचारिकतायें होती हैं, एक टेस्ट भी होता है, जिसमें गाड़ी भी चलवाकर देखी जा सकती है और यातायात के नियमों की जानकारी की थाह लेना भी शामिल होता है, तथा लाइसेन्सार्थी की शारीरिक उपयुक्तता भी सम्मिलित है, किन्तु जब आर-बी-आई के गवर्नर द्वारा हस्ताक्षरित वचनपत्र सामने आ जाते हैं तो अन्य किसी भी चीज की वांछनीयता खत्म हो जाती है. न जाने कितने ऐसे लोगों के ड्राइविंग लाइसेन्स जारी कर दिये जाते हैं जो पूरी तरह से अपात्र होते हैं और नतीजा सामने आता है सड़क दुर्घटनाओं के रूप में. घर से निकलते वक्त किसी को भी यह आश्वासन नहीं होता कि वह शाम तक किसी सड़क दुर्घटना का शिकार नहीं होगा. जब आधे-अधूरे-बिना किसी ज्ञान के साथ  अपात्र ड्राइवर सड़क पर वाहन लेकर निकलेगा तो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है. हजारों की संख्या में होने वाली सड़क दुर्घटनायें अपने आप में कहानी बयान करती हैं.
उम्मीद किससे? किसी से नहीं. क्यों? शिकायत किससे करेंगे. इन जगहों से रोज नेताओं-अफसरों का सामना होता है. लेकिन किसी को यह दिखाई नहीं देता, जिसे यह दिखाई ही नहीं देगा, उसे एक कागज पर लिखे हर्फ क्या दिखाई देंगे. शिकायत का नतीजा यहां होता क्या है, सब जानते हैं, पहले आप अपनी शिकायत करने के लिये पच्चीस-पचास रुपये लगायें, फिर उसका नतीजा (जो कभी नहीं आता या आता है तो शिकायत आधारहीन पाई जाती है या फिर शिकायत करने वाले को आदतन शिकायतकर्ता बता दिया जाता है) जानने के लिये फिर तीन-चार महीने और डेढ़-दो सौ रुपये खर्च करें. और हां, काम तो होगा नहीं, क्योंकि शिकायत हो गयी है. कोई अधिक तगड़ा फंस गया तो शिकायतकर्ता का हाल इन्जीनियर सत्येन्द्र की तरह भी हो सकता है. इसलिये नतीजा सिफर. शून्य की खोज का श्रेय भी तो भारत के लिये ही जाता है. क्या इस सबसे यह सिद्ध नहीं होता कि सड़क पर चलने वाले की जान की कीमत, हवाई जहाज में चलने वाले की जान की अपेक्षा नगण्य है, इसीलिये पायलटों के फर्जीवाड़े पर इतना शोर और ड्राइवरों के लाइसेंस जारी करने में धांधली के खिलाफ एक शब्द तक नहीं, कार्रवाई तो बहुत दूर की बात है.

13 comments:

  1. मोटर-गाड़ी की ड्राइविंग में, ज़्यादा हुआ तो एक-आध आदमी ही मरता है और गाड़ी भी बहुत मंहगी नहीं होती पर जहाज महंगा होता है और गिरे तो कोई बचता भी नहीं है...सरकार का फंडा बिल्कुल सीधा है.

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  2. सारी बातें सही हैं पर इनके अलावा दो समस्यायें और हैं। एक तो लाइसैंस देने वालों को ड्राइविंग/ट्रैफिक के नियम पता नहीं हैं, दूसरे ट्रैफिक पुलिस वालों की दिलचस्पी भी ट्रैफिक समस्याओं से अधिक चौराहा वसूली में पायी जाती है।

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  3. अब तो जहाज में बैठने में और भी डर लगेगा।

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  4. आपने जो बातें सामने रखी हैं सब विचारणीय हैं..... इसमें भी जनता के लिए विचार कम है ....वजह कुछ और ही होगी....

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  5. आपका लेख निसंदेह एक विचारणीय मुद्दे को उठा रहा है, अंधेर नगरी और चौपट राजा जैसा प्रजातंत्र बनाना ही तो भ्रष्ट नेतावो नौकरशाहों का मुख्य धेय था और जिसमे वो सफल रहे ! लेकिन मेरा नजरिया थोड़ा भिन्न भी है ! इस पूरे फर्जी पायलट काण्ड पर आप गौर फरमाए तो दो चीजे जो साफ़ होती है वो ये है ; नेताओं और नौकरशाहों ( खासकर डी जी सी ए) का नेक्सस ! नेताओं ने धन बटोरा और नौकर शाहों ने अपने बाल-बच्चे पायलट बनवाए ! दूसरा बिंदु ; अगर आप जब कभी हवाई यात्रा की टिकिट बुक करते है तो नेट पर मेक माई ट्रिप जैसी टिकिटिंग एजेंटों के पोर्टल पर जाते है ! वहा आप देखते है की कौन सी ऐयर्लाइन्स का इकोनोमी टिकिट आपको सबसे सस्ता मिल रहा है और मैं आपको दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि आपने १५ दिन आगे की टिकिट बुक करवानी है तो आपको सबसे सस्ती स्पाइस जेट की टिकिट मिलेगी ! यानी ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार जिन्हें किसी कारण बश या नियमित रूप से हवाई जहाज से जाना है तो वह सस्ती वाली टिकिट ही तो बुक कराएगा ! अब अप देखिये इन हमारे हरामखोर नेताओं और अफसर शाहों की घटिया सोच का नमूना ; सारे ही फर्जीवाड़े वाले पायलट उन्होंने शिफारिश लगाकर कहा भर्ती करवा रखे थे ? जिन एयर्लाइन्सो से ये यात्रा करते है उनमे से एक में भी इन्होने किसी फर्जी पायलेट की शिफारिश नहीं की !

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  6. विचारणीय पोस्ट ....
    गोदियाल जी की टिपण्णी ने और खुलासा किया ....

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  7. ॒ अनुराग जी - वसूली तो पुलिस का जन्मसिद्ध अधिकार है, इसलिये सब देखकर भी आंख मूंद लेते हैं, क्या मन्त्री जी और क्या सन्त्री जी.
    ॒ गोदियाल जी - राजनीतिबाज तो सबसे अच्छी एअरलाइन्स का ही प्रयोग करेंगे और करें क्यों न, हमारे माई-बाप-भाग्यविधाता जो हैं. इनका मामूली आपरेशन भी होगा तो भारत का टाप का डाक्टर तलाशा जायेगा बाकी जनता को कौन सा देश चलाना है.

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  8. भगवान् भरोसे है अपना देश । कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रह गया ।

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  9. ये पायलेट जहाज को लेकर गिरेंगे भी तो किसी निर्दोष के घर के ऊपर ! लेकिन जहाज में बैठे व्यक्तियों को शायद ही पता लगे की जहाज उड़ाने वाला फर्जी है.

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  10. आपका सवाल जायज है लेकिन ये तो एक्सेप्टेबल हो चुका है। जहाँ तक मैं समझता हूँ विभिन्न दुर्घटनाओं में हताहत होने वालों के लिये सरकार की तरफ़ से पहले ही मुआवजा राशि अलग अलग हुआ करती है।
    गोदियाल जी की बात भी जायज है।

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  11. विमान दुर्घटना एक अंतर्राष्ट्रीय ख़बर होती है,सड़क दुर्घटना प्रायः स्थानीय। मामला चाहे जिस भी प्रकार की दुर्घटना का हो,मरने वाले मरते रहेंगे,आप न्याय की उम्मीद में अपना समय जाया न करें। जब तक अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकें,ठीक। अन्यथा,व्यवस्था से कोई उम्मीद तभी लगाएं जब कुव्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति स्वयं उसका शिकार हो जाए।

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  12. Chintneey vishay...vicharneey post ...bhagvan bachaye sabon ko...

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  13. लोक तंत्र आज भ्रष्ट तंत्र का पर्याय बन गया है. आपने ठीक कहा की अमीर के लिए कानून और है और गरीब के लिए और ... लाखों लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं मगर मिडिया ताज आतंकी हमले में मारे गए और एयर क्रैश में मारे गए आमिर लोगों पर अधिक मुखर होता है.

    फर्क है बस किरदारों में

    बाकी खेल पुराना है. ..

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.