पहले अमेरिकी दबाव में मन्त्री बदले जाते हैं, फिर न्यूक्लियर डील के चलते सरकार बचाने के लिये चालीस करोड़ की रकम दी जाती है सांसदों को मैनेज करने के लिये. विकीलीक्स के खुलासे के बाद अब Lame Excuses ही शेष बचते हैं. अब कुछ भी कहने को शेष नहीं. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि जिन्हें इस सब का पता है और जो इन बातों पर मगजमारी करते हैं, उनमें से अधिकतर न तो वोट देते हैं और न ही उनके वोटों में इस सब को बदलने की ताकत होती है; और जो वोट देते हैं उन्हें न तो इस सब का पता होता और न ही इस सब से कुछ लेना-देना.
गिद्ध तो देखे ही होंगे. प्रकृति के स्वच्छकार. मृत जानवरों को खाकर अपना पेट पाल लेते हैं और सफाई भी कर देते हैं. लेकिन उन्हें क्या कहेंगे जो कफनखसोट हैं. जीवित के साथ मुर्दे को भी नहीं बख्शते. अगर मानवीय गिद्ध न देखे हों तो पोस्ट-मार्टम हाउस पर देख लीजिये. पहले आठ सौ से हजार रुपये पोस्ट-मार्टम के लिये, फिर सिपाही जी की सेवा. मृत शरीर के लिये स्ट्रेचर भी नसीब नहीं होता. उल्टे-सीधे ढ़ंग से सिला हुआ शरीर, रखने की जगह न तो पोस्ट-मार्टम से पहले नसीब होती है और न ही बाद में. दो लोग एक डण्डा नीचे से लगाकर पटक देते हैं. स्वच्छकार और सिलाई करने वाले को पैसे देना तो इसलिये समझ में आ सकता है क्योंकि यह बाहर से लाये गये लोग होते हैं, जिनके लिये नगण्य वेतन दिया जाता है. लेकिन बाकी लोग? वो वर्दीधारी जो शव को ले जाने के लिये सौ रुपये लेता है. वो व्यक्ति जो पोस्टमार्टम कराने के लिये आठ सौ-हजार रुपये ले जाता है. शायद गिद्ध भी इनसे लाख गुना अच्छे होते हैं..
क्या कहा जाये ... :(
ReplyDeleteबहुत वेदना होती यह बातें जानकर
विकीलीक्स की ऑठेंटिसिटी के बारे में तो खैर कुछ नहीं कह सकते, लेकिन शर्म के बारे में कह सकते हैं - शर्म नहीं आएगी।
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteमैंने कहा न की खून में ही खराबी है, ऐसा न होता तो तीन-चार गुलामियाँ झेलते !
ReplyDeleteभजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
ReplyDeleteमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
१०० ने से १०० बेईमान, मेरा भारत महान !
ReplyDeleteकबीरदास निशचय ही रो पड़ते यदि यह रूप देखते। चलिये हम ही कह देते हैं उनकी जगह।
ReplyDeleteकबिरा इस संसार में भाँति भाँति के लोग,
कुछ तो --- हैं, कुछ बहुतै ---- ।
यहां सब कुछ अमेरीकी बाबा की कृपा से चलता है, चाहे कोई माने या माने.
ReplyDeleteहोली पर्व की घणी रामराम.
वाकई गिद्ध इनसे अच्छे होते हैं ...शुभकामनायें होली की !
ReplyDeleteआपको होली की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteप्रहलाद की भावना अपनाएँ
एक मालिक के गुण गाएँ
उसी को अपना शीश नवाएँ
मौसम बदलने पर होली की ख़शियों की मुबारकबाद
सभी को .
आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteउफ़ अति दर्दनाक और खौफनाक है.
ReplyDeleteहोली के पावन रंगमय पर्व पर आपको और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ .
'मनसा वाचा कर्मणा' को न भुलाइये प्लीज .
गिद्ध तो प्रकृति के मित्र हें , लेकिन इंसान तो १००-१०० रूपए में आत्मा बेच चुके हें।
ReplyDeleteदुर्भाग्य की बात यह है कि जिन्हें इस सब का पता है और जो इन बातों पर मगजमारी करते हैं, उनमें से अधिकतर न तो वोट देते हैं और न ही उनके वोटों में इस सब को बदलने की ताकत होती है; और जो वोट देते हैं उन्हें न तो इस सब का पता होता और न ही इस सब से कुछ लेना-देना.
ReplyDeleteयहीं पर जनजागरण की आवश्यकता है.
फिलहाल अमानवीय गिद्धों पर क्या कहें.
वैसे मैंने अपने स्तर से जनजागरण करता रहता हूँ. सभी युवाओं को जागने की जरुरत है.
कितना काड़ुवा सच है ... पर फिर भी भारत देश महान ..
ReplyDeleteआपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
शेम, शेम! नगर व्यवस्था बनाने और देखने के लिये आइ. ए. ऐस./आइ पी ऐस अधिकारियों का जो बडा सा कुनबा होता है, उसके पास अपने शहर की कुव्यवस्था देकने की फुर्सत कब होगी?
ReplyDeleteकाश, इस स्थिति का सामना किसी को कभी न करना पड़े.
ReplyDeleteअति दर्दनाक और खौफनाक है|
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