"सत्यार्थ प्रकाश" एक बहुत अच्छा ग्रन्थ है. मैंने पूरा तो नहीं पढ़ा लेकिन इसके कुछ पृष्ठ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. स्वामी दयानन्द द्वारा लिखित यह ग्रन्थ मन को झकझोरने वाला है. इसे प्रकाशित हुये लगभग सौ वर्ष से ऊपर हो गये हैं. अभी आई०टी०एक्ट में सम्भावित संशोधन के बारे में काफी चर्चा है. आई०टी० एक्ट में प्रस्तावित संशोधनों के ऊपर चर्चाओं को पढ़ने के बाद मेरे मन में यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि स्वामी दयानन्द क्या आज की तारीख में सत्यार्थ प्रकाश प्रकाशित कराने में कामयाब हो सकते? और यदि येन-केन-प्रकरेण प्रकाशित हो भी जाता तो क्या होता ???
बड़े बड़े मुकदमें चल जाते उन पर उस समय, राजद्रोह के।
ReplyDeleteकिसी और ही फेर में फंसा कर गलत साबित करने की कोशिश होती ...
ReplyDeleteहम तो प्रतिदिन सत्यार्थ प्रकाश का एक पृष्ठ पढ़ते हैं!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
चेप्टर १३ एवं १४ बिना पढ़े ही "साप्रदायिक दंगे भड़कने की आशंका" के तहत छाप भी जाता तो प्रतिबंधित हो जाता!
ReplyDeleteaapne acchi baat likhi hai sir. maine kayi saal pahle aarya samaaj me sathyaarth prakaash ko padha tha , aapka bahut dhanywaad.
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
एक तो सभी मानव जाती को सत्यार्थ प्रकाश को पढना चाहिए, इस समय में तो सत्य बोलने पर सेकुलर सरकार द्वारा प्रतिबन्ध है ,इन्द्रा गाधी के हत्यारों को तुरंत फासी क्यों कि वे सिख थे लेकिन अफजल और कशाव को फासी नहीं. इस समय देश गुलामी की तरफ बढ़ रहा है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा सामयिक प्रश्न है.
मैंने अपनी पिछली पोस्ट में इस तरह जिक्र किया था- ''यही कारण है कि 'सत्यार्थ प्रकाश', अपने प्रकाशन काल में धर्मों के तार्किक विश्लेषण का महत्वपूर्ण ग्रंथ, आज कथित उदारता और विकास के दौर में खतरनाक विस्फोटक सामग्री जैसा माना जा सकता है।''
ReplyDelete(काफी दिनों बाद आपका यह पृष्ठ बिना 'माल वेयर' की चेतावनी के खुला.)