जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
Thursday, March 10, 2011
एक बेहद शानदार फोटो जिसे देखकर आप रोमांचित हो जायेंगे....
@सक्सेना साहब- मैंने जानबूझ कर नहीं लिखा. ये समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता हैं जो सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे. दर-असल मैंने लिखा इसलिये नहीं क्योंकि सरकार कोई भी हो, प्रदर्शन कोई भी पार्टी कर रही हो, हर बार यही होता है, पीटती है वर्दी और पिटता है आदमी. शायद अंग्रेजों ने इसी पुलिस व्यवस्था को हमें दिया है. मैं नहीं कह सकता कि जो व्यक्ति जूते के तले है, वह नादान है या गुनाहगार. लेकिन क्या कोई पुलिसवाला इस स्वतन्त्र देश में किसी अपराधी को भी इस तरह पीट सकता है. कैसी व्यवस्था है.
laanat hai
ReplyDeleteकिन लोगों को मारा जा रहा है, कहाँ मारा जा रहा है और क्यों मारा जा रहा है?
ReplyDeleteये भी बता देते तो राय बनाने में आसानी होती।
चिक्ष देखकर मन प्रसन्न तो नहीं हुआ!
ReplyDeleteयह तो क्रूरता की पराकाष्टा है!
यह राज्य पुलिस का क्रूरता शिक्षण केन्द्र है क्या?
ReplyDeleteमेरा भारत महान ! जिन्हें वाकई इस दरिंगी संग पिटना चाहिए था, वो संसद और विधान सभाओं की कैंटीनो में फ्री का खा रहे है !
ReplyDeletedarinde hain ye log.
ReplyDeleteऐसे पौरुष पर शर्म आये इन्हे।
ReplyDelete@सक्सेना साहब- मैंने जानबूझ कर नहीं लिखा. ये समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता हैं जो सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे.
ReplyDeleteदर-असल मैंने लिखा इसलिये नहीं क्योंकि सरकार कोई भी हो, प्रदर्शन कोई भी पार्टी कर रही हो, हर बार यही होता है, पीटती है वर्दी और पिटता है आदमी.
शायद अंग्रेजों ने इसी पुलिस व्यवस्था को हमें दिया है. मैं नहीं कह सकता कि जो व्यक्ति जूते के तले है, वह नादान है या गुनाहगार. लेकिन क्या कोई पुलिसवाला इस स्वतन्त्र देश में किसी अपराधी को भी इस तरह पीट सकता है.
कैसी व्यवस्था है.
ये है हमारी पुलीस ।
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