इसके ऊपर तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम भी लागू नहीं हो सकता, न ही इसकी कहीं शिकायत हो सकती और अगर हो भी सकती होगी तो शायद ही कोई कार्रवाई सम्भव होगी.
मामला यूँ है कि एक मशीन खराब हो गयी. मशीन वारन्टी में थी. जो गडबड़ी आई थी वह अज्ञानतावश कम लुब्रिकेटिंग ऑइल के चलते आयी. मामला यूँ ही कुछ दिनों खिंचा. बाद में स्टीमेट आया जो लगभग पचास हजार रुपये का था. देखा तो यह पाया कि सोलह-सत्रह हजार लेबर चार्ज और बाकी के कल-पुर्जे. अब यह निर्णय हुआ कि वारन्टी में चलते कम से कम लेबर चार्ज तो न लिये जायें. मालिक से बात करने के लिये मशीन के स्वामी ने अपने एक कर्मचारी को दुकान पर भेजा. उन सज्जन ने वहाँ मौजूद इन्चार्ज से बात- चीत की लेकिन कोई नतीजा न निकला. वारन्टी के चलते इनकी माँग थी कि सबकुछ हटाया जाये या कम से कम लेबर चार्ज तो हटा ही लिया जाये. वहाँ का इन्चार्ज एक पैसा कम करने को तैयार न हो.
जब बात नहीं बनी तो दुकान के मालिक को बुलाया गया. अब ये संयोग हुआ कि मालिक उन भेजे गये कर्मचारी का पूर्व परिचित निकल आया. पूरी बात बतायी गयी. मालिक ने वहाँ के इन्चार्ज से बात की. यह सम्भावना देखी कि कौन सी चीज कम हो सकती है. नतीजा हुआ कि वही बिल मात्र चौदह हजार का रह गया. अर्थात पूरे छत्तीस हजार की कमी. स्पष्ट है कि जितनी चीजें पहले स्टीमेट में दिखाई गई थीं, वह लगनी ही नहीं थीं. वास्तविक व्यय तो चौदह हजार ही का था किन्तु उसे इन्फ्लेट कर पचास हजार का कर दिया था, जिसमें मालिक-नौकर सब शामिल थे.
अब अगर वह जान-पहचान का संयोग न होता तो दो-चार हजार या फिर अधिकतम लेबर चार्ज कम हो जाते लेकिन फिर भी सही राशि से ढाई गुना पैसा अधिक देना पड़ता. प्रश्न यह उठता है कि क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है और इस भ्रष्टाचार की पहचान कैसे हो. इस भ्रष्टाचार के ऊपर कौन सा क़ानून लागू होता है और कौन सी धारा. उपभोक्ताओं के हो रहे, इस प्रकार के शोषण के विरुद्ध, इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई भी उपाय उपलब्ध ही नहीं.
चारो ओर भ्रष्टाचार है ..
ReplyDeleteअर्थतंत्र क्या न करे ??
अंधेर नगरी में न्याय की उम्मीद एक सपना बनकर रह गया है ! मौक़ा मिला है तो बस लूट लो ..... यही धारणा हर एक भ्रष्ट ( हमारा देशवासी) के मन में है ! कहीं न्याय मांगने जाओगे भी तो इतनी आसानी से मिल जाएगा ... कभी नहीं ! बीबी के टॉप मोस्ट होने के बाब्व्जूद राजीव गांधी को नहीं मिला ..... सब भगवान भरोसे चल रहा है पता नहीं कब तक चलेगा ! हाँ , आप ऊपर अपने लेख में चवालीस की जगह छत्तीस लिख दे तो शायद भ्रष्टाचार में थोड़ी कमी आ जाए :) (jokes apart)
ReplyDeleteआज आपकी टिप्पणी स्पैम में थी. छत्तीस कर दिया है... धन्यवाद...बड़ी गलती थी, ध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद...
Deleteआपने सही कहा. हरतरफ यही सब गोरखधंदा है. कैसे बचें.
ReplyDeleteकोई इलाज नहीं।
ReplyDeleteव्यवस्था परिवर्तन और संविधान में बदलाव लाना जरूरी है!
सही बात है, सरकार होती तो गरिया भी लेते और चार चपत भी लगा लेते अब पूंजीवाद का क्या करें
ReplyDeleteऔर यहाँ के समाजवादियों का हाल भी सबको पता है.
Deleteसही नेतृत्व होगा तभी तस्वीर बदलेगी , अन्यथा भ्रष्टाचार के दलदल में घुटन भरी सांस लेनी ही होगी!
ReplyDeleteचारो ओर लूट मची है।
ReplyDeleteमनमानी है । कंझ्यूमर फोरम मदद कर सकता है पर इसमें ढेर सारा वक्त लगता है ।
ReplyDeleteloot bhi aisi ki pata bhi na chale...............hitech loot hai.
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