"घूस क्यों लेते हो, सैलरी तो मिलती है", एक सज्जन ने अपने मित्र से कहा. सज्जन व्यापारी हैं और उनके मित्र एक स्थानीय निकाय में बाबू.
"आप लोग टैक्स देते हो जिससे सरकार सड़क, पुल इत्यादि बनवाती है" मित्र ने पूछा.
"हाँ" - सज्जन ने उत्तर दिया.
"फिर टोल टैक्स किस लिए देते हो" मित्र ने सवाल दागा.
"अरे भाई, सड़क अच्छी होती है, गड्ढे नहीं होते, जल्दी पहुँच जाते हैं. अच्छी सुविधा रहती है" सज्जन ने उत्तर दिया.
"बिलकुल यही बात लागू होती है, घूस के बारे में. काम जल्दी हो जाता है, बढ़िया हो जाता है, तुम्हें अच्छी सुविधा मिल जाती है. सरकार अच्छी सड़क बनवा देती है तो टोल टैक्स ले लेती है और हम अच्छा काम कर कुछ ले लें तो घूस." मित्र ने जस्टिफाई किया.
उक्त वार्तालाप कुछ दिनों पूर्व एक स्थानीय निकाय में दो अन्तरंग मित्रों के बीच हो रहा था जिसे मैं संयोगवश सुन सका.
क्या अब भी आशा की किरण दिख रही है.
"आप लोग टैक्स देते हो जिससे सरकार सड़क, पुल इत्यादि बनवाती है" मित्र ने पूछा.
"हाँ" - सज्जन ने उत्तर दिया.
"फिर टोल टैक्स किस लिए देते हो" मित्र ने सवाल दागा.
"अरे भाई, सड़क अच्छी होती है, गड्ढे नहीं होते, जल्दी पहुँच जाते हैं. अच्छी सुविधा रहती है" सज्जन ने उत्तर दिया.
"बिलकुल यही बात लागू होती है, घूस के बारे में. काम जल्दी हो जाता है, बढ़िया हो जाता है, तुम्हें अच्छी सुविधा मिल जाती है. सरकार अच्छी सड़क बनवा देती है तो टोल टैक्स ले लेती है और हम अच्छा काम कर कुछ ले लें तो घूस." मित्र ने जस्टिफाई किया.
उक्त वार्तालाप कुछ दिनों पूर्व एक स्थानीय निकाय में दो अन्तरंग मित्रों के बीच हो रहा था जिसे मैं संयोगवश सुन सका.
क्या अब भी आशा की किरण दिख रही है.
जस्टिफिकेशन तो जनाब ने बड़े उच्च कोटि का दिया :) मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती, टोल टैक्स देने के बाद भी बड़े-बड़े गड्डे नजर आते है :)
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट वर्त्तमान पर तीखा कटाक्ष किया है आपने सदा इसी तरह चलते रहें ,मेरे ब्लॉग विविधा पर स्वागत है |
ReplyDeleteजस्टिफाई करने में हम सब माहिर हैं.
ReplyDeleteये सारी बाते वहा होती है जहा पकडे जाने का डर नहीं होता है जिस दिन पकडे जाने का डर हो जायेगा सब बंद हो जायेगा ।
ReplyDeleteतर्क देने में तो हम सब तीसमारखां हैं।
ReplyDeleteऊपर से नीचे तक घुन लगा है
ReplyDeleteअब लगता सूरज शरमायेगा,
ReplyDeleteफिर से यहाँ उग आने में।
जब तक चले चलाओ सिक्के खोटे
ReplyDeleteखुद न मिले बस दिये जाओ चोटे
यही उसूल है इनका - क़ानून कब अपना काम करेगा?
टोल टैक्स भी कोई खुशी से नहीं देता, मजबूरी में देना पड़ता है। अतः यह तर्क सिर्फ कुतर्क है। यदि ऊँचे पदों पर आसीन घूसखोरों को कड़ी सजा दी जाये और उसे सार्वजनिक किया जाये तो इस बीमारी को काफी हद तक काबू किया जा सकता है। लेकिन अफसोस ऐसी कोई उम्मीद फिलहाल तो नज़र नहीं आती।
ReplyDeleteतर्क / कुतर्क वाली बात से सहमत।
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