Tuesday, October 30, 2012

घूस माँगी जा रही है-कहने वाला निलम्बित और सिपाही की हत्या का मामला निपटा...

आज सुबह यह खबर पढ़ी कि एक पुलिस उपाधीक्षक वी० के० शर्मा को इसलिये निलम्बित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अनुशासनहीनता की थी और जून में एक मीटिंग में देर से पहुँचने पर यह कहा था कि "सरकार ने हेलीकाप्टर नहीं दिया है."  यह उपाधीक्षक ५८ वर्ष से ऊपर के हैं और पिछले ११ माह में पाँच स्थानान्तरण झेल चुके हैं. ताजा मामले में उन्होंने ट्रान्सफर पोस्टिंग को लेकर डी०जी०पी० समेत कई अफसरों पर रिश्वत माँगने के आरोप लगाये हैं.  

चौकी-थानों से लेकर ऊपर तक न जाने कितनी ही बार अखबारों में पढ़ने को मिलता है कि फलां जगह ऐसे पोस्टिंग हुई, वैसे पोस्टिंग हुई. मलाईदार पोस्टिंग को लेकर भी खूब निकलता रहता है. इस मामले में भी कोई जाँच वगैरह किये बिना ही अनुशासनहीनता मानते हुये निलम्बन की कार्रवाई कर दी गई. और अगर जाँच भी होती तो कौन करता. जब मुखिया के ऊपर ही आरोप हों तो फिर उनकी जाँच कौन करे. मंत्रियों के ऊपर भी आरोप लगे और कुछ को तो जेल भी जाना पड़ा लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात.

दूसरी खबर यह कि लखीमपुर में एक सिपाही को बदमाश ने गोली मार दी और फिर बदमाश को पुलिस ने मार गिराया. चलिये, तुरन्त ही इन्साफ हो गया. क्यों? क्योंकि क़ानून चलाने वाले पुलिस वाले, इसलिये जब क़ानून को चलाने वाले पर हमला होता है तो तुरन्त ही पुलिस को अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आने लगता है. लेकिन यही पुलिस आम आदमी के मामले में क्यों उदासीन रवैया अपनाये रहती है, जिसका साक्षात प्रमाण है लाखों हत्याओं में कातिलों को न खोज पाना या/और उन्हें सजा न हो पाना. आखिर अपराध तो अपराध है, हत्या तो हत्या है, एक आम आदमी की हो या फिर पुलिस वाले की. 

दर-असल इस अपने - पराये रवैये ने ही सारे सिस्टम को खोखला कर दिया है. हर व्यक्ति अपने मामले को अलग नजरिये से देखता है और सामने वाले के मामले को अलग नजरिये से, और यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब यही रवैया पुलिस और प्रशासन में बैठे लोग अपना लेते हैं जो न्याय दिलवाने के लिये प्रथम सीढ़ी होते हैं. कभी कभी तो बड़ा ताज्जुब होता है कि क्या हम वाकई उन लोगों के वंशज हैं जिन्होंने अपनी हड्डियाँ तक दान कर दी थीं, राक्षसों के विनाश हेतु. अथवा यह सब कपोल कल्पित है जो हमने सिर्फ अपनी वाहवाही लूटने के लिये गढ़ लिया है या फिर कोई भयंकर जिनेटिक गडबड हो गई है.

4 comments:

  1. @दर-असल इस अपने - पराये रवैये ने ही सारे सिस्टम को खोखला कर दिया है. हर व्यक्ति अपने मामले को अलग नजरिये से देखता है और सामने वाले के मामले को अलग नजरिये से, और यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब यही रवैया पुलिस और प्रशासन में बैठे लोग अपना लेते हैं जो न्याय दिलवाने के लिये प्रथम सीढ़ी होते हैं. कभी कभी तो बड़ा ताज्जुब होता है कि क्या हम वाकई उन लोगों के वंशज हैं जिन्होंने अपनी हड्डियाँ तक दान कर दी थीं, राक्षसों के विनाश हेतु. अथवा यह सब कपोल कल्पित है जो हमने सिर्फ अपनी वाहवाही लूटने के लिये गढ़ लिया है या फिर कोई भयंकर जिनेटिक गडबड हो गई है.

    - सही कहा आपने! निहित स्वार्थों से ऊपर उठे बिना बदलाव नहीं आ सकेगा! :(

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  2. डाकू ही जब सत्ता पर काबिज है तो हमें तो चोर और सिपाही का खेल एक बेईमानी ही नजर आती है !

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  3. समय पड़ने पर प्राथमिकतायें बदल जाती हैं...यही तो दुख है देश का।

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  4. कुआं ही भांग से भरा हुआ है..जिसकी सफाई जाने कब हो पाएगी.....।

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.