Saturday, October 13, 2012

आटा मंहगो हो रह्यो, फेरी खायगो कब..

कुछ महीनों पहले किसान ने गेहूँ बेचा था ११०० रुपये कुंतल. इस समय यही गेहूँ बिक रहा है १५०० रुपये को और आटा पहुँच गया है २५ रुपये किलो. तस्वीर बिलकुल साफ है, किसान का सब गेहूँ पहले ही बिक चुका है, बल्कि कहिये कि किसान को तो हर हाल में अपनी फसल को बेचना ही है, क्योंकि उसपर कर्ज है, उसके पास स्टोरेज नहीं है. सारा गेहूँ बिचौलियों ने खरीद लिया और अब वही गेहूँ पैंतीस प्रतिशत मुनाफे पर बाजार में बिक्री हेतु उपलब्ध है. आटे की शक्ल में पहुँचते पहुँचते दुगुने से ऊपर. इस भ्रष्टाचार पर कौन नकेल लगायेगा. तिस पर मंत्री जी कहते हैं कि महंगाई अच्छी है, किसान को फायदेमन्द है. पता नहीं वह कौन सा फार्मूला है जिससे किसानों को लाभ मिल रहा है और वे कौन से किसान हैं जिन्हें लाभ मिल रहा है. 

15 comments:

  1. पीसने में इतना वसूल लेते हैं कि पिस जाते हैं।

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  2. किसानो को उनकी फसलो का उचित दाम तभी मिलेगा जब वो खुद बाजार में आ कर अपनी फसल सीधे लोगो को बेचे और कुछ जगहों पर ये होना शुरू भी हो गया है , वैसे किसान से बाजार में फसल के आने तक में ट्रांसपोर्ट , मजदूरी, और ठोका फुटकर विक्रेता का अपना मुनाफा भी है सब बिचौलिया ही ले गए ऐसा नहीं है ।

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  3. वास्तविकता तो यही है कि किसान ही पिस रहा है.

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  4. उत्‍तर प्रदेश में मायावती सरकार के समय रिलायन्‍स व अन्‍य कंपनियों के फ्रूट व सब्‍जी स्‍टोर खुलने का विरोध करने वाले किसान नहीं, बल्कि ये बिचौलिये ही थे, क्‍योंकि ये कंपनियों सीधे किसानों से फल और सब्जियां खरीद रही थीं। यह रोग केवल कृषि क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में है।

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  5. Welcome !
    हेडिंग पढ़कर अपने हिन्दी के श्रीवास्तव गुरूजी याद आ गए कबीर के दोहे पर वे कहते थे ;
    कल मरे तो आज मर , आज मरे तो अब ,
    लकड़ी महगी हो रही, फिर मरेगा कब !

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  6. मंत्री जी का फार्मूला तो समझ से बाहर ही दिख रहा है.

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  7. वाह...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  8. सर
    आपकी जानकारी सही नहीं है, मेरे यहाँ (हैदराबाद में) 10 किलो आटे का पैकेट 300/310/320 में बिक रहा है और ठीक-ठा्क गेहूँ 28-32 प्रति किलो। पिसाई करवाने के 3/- अलग, 20 किलो पर चक्की वाला एकाद किलो की डंडी मारता है वह बोनस।

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  9. सब मिलीभगत है..आम जन को तो लूटना ही है चाहे ये विचौलिये हो या फिर FDI आये

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  10. वैसे ये खेल आसान है नहीं - किसान को अपने अनाज की कीमत ज्यादा से ज्यादा चाहिये जोकि वाजिब भी है, उपभोक्ता को खाद्य पदार्थ सस्ते से सस्ता चाहिये जोकि वाजिब भी है, सरकार को सब्सिडी खत्म करनी है ताकि उसका राजकोषीय घाटा कम हो वो भी वाजिब है, किसान से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक उत्पाद की पहुंच सुनिश्चित करने के लिये बहुत से लोगों\एजेन्सीज़ की जरूरत होती है जैसाकि अंशुमाला जी ने भी कहा, उन्हें भी उनकी मेहनत का फ़ल चाहिये ताकि वो अपना परिवार पाल सकें। इस कोढ़ में खाज तब होती है जब पहले लेवल पर माल की कीमत बहुत कम मिलती है और बाकी सब अपने हिस्से के अलावा दूसरे के हिस्से को भी दबाते हैं। भुगतते अंतत: दो ही हैं, किसान और उपभोक्ता जोकि इस कड़ी में सबसे अहम हिस्सेदार हैं और मौज लेते हैं बीच के लोग, यही इस खेल की सबसे बड़ी विडम्बना है।

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  11. खूब एक्स्पोर्ट हो लिया गेहूं!

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  12. सवाल यह है कि फायदा किसे है, छोटा किसान तो अपनी हड्डियां गला दे रहा है और तब भी नरेगा (अब के मनरेगा) का मजदूर बनता जा रहा है. मैंने अपने गाँव के लोगों/रिश्तेदारों को मजदूर बनते देखा है. आखिर ये नीतियाँ कहाँ ले जा रही हैं और किसके फायदे के लिये हैं, संविधान में जो दुनिया भर की चीजें दे रखी हैं, वे कहाँ हैं. समाजवादी कहाँ हैं.

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  13. बिचौलिये हों या सरकार किसान को कब मिलता है उसकी मेहनत का मोल ।

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.