जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
Sunday, June 19, 2011
"हत्यारे पाक वैज्ञानिक की रिहाई के लिए ......... " इस खबर को जरूर पढ़िये...
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने...ऐसी ख़बरों के बारे में पता ही नहीं चलता...इसे तो आज़ाद इन्हें कराना ही था...मुसलमान जो है...
ReplyDeleteउधर भी देखी है
ReplyDeleteसही आयटम चस्पा किये देवराज वाह
तुष्टिकरण का घातक प्रयोग इस देश और व्यवस्था को ले डूबेगा..
ReplyDeleteक्या दर्शाना चाहते हैं यह लोग? तुष्टिकरण की सीमा क्या है, कहाँ तक है, इसका अहसास है इन्हें? और तुष्टिकरण ही क्यों? विवेक क्यों नहीं?
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