प्राचीन समय की बात है, एक बार विश्व के कई देशों के गृहरक्षकों के कौशल और चातुर्य की परीक्षा लेने के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इस प्रतियोगिता में एक परीक्षा आयोजित की गयी. इन देशों में युआश्व, आपान, स्क्वात और महार्य जैसे देश सम्मिलित थे.
परीक्षा हेतु युआश्व देश के गणाध्यक्ष श्रीमान दार्द जी की एक बकरी को घने जंगल में ले जाकर छोड़ दिया गया और चुनौती थी इस बकरी को कम से कम समय में खोज कर लाने की.
आपान देश के गृहरक्षकों ने जंगल की तरफ प्रस्थान किया और पन्द्रह घण्टे के परिश्रम के बाद बकरी बरामद की.
स्क्वात देश के गृहरक्षक इस कार्य को दस घण्टे में अंजाम दे सके.
युआश्व देश की तकनीकें बड़ी उम्दा थीं, वहां के गृहरक्षकों ने तकनीकी का प्रयोग किया और पांच घण्टे मे ही बकरी को खोज लिया.
अब बारी थी महान महार्य देश के गृहरक्षकों की. वे इधर गये और उधर से एक भालू जैसा जीव पकड़ लाये. महाराज दार्द जी उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गये, उन्होंने कहा ये तो मेरी बकरी नहीं है. इस पर मगृसे के एक अधिकारी ने अपने नगरपाल को कुछ समझाया. नगरपाल उस जीव को लेकर कारागार के एक कमरे की तरफ ले गया और आधे घण्टे बाद लेकर आया.
अब वह जीव जोर-जोर से कह रहा था, मैं भालू नहीं बकरी हूं, महाराज दार्द की ही बकरी हूं, बकरी हूं.
बात यहीं पर खत्म नहीं हुई.
इस घटना के बाद पशुप्रेमियों की संस्थाओं ने बड़ी आपत्ति की, कि इस प्रकार का रवैया तो पशुओं के अधिकारों का उल्लंघन है और एक नोटिस जारी कर दिया. .फिर इस प्रकरण पर जांच बैठी. इस जांच में मगृसे के एक वरिष्ठ अधिकारी को पूरा दायित्व सौंपा गया. उनके दल में मआसे के एक अधिकारी थे और स्थानीय प्रशासन के भी कुछ अधिकारी शामिल थे.
आठ साल अठारह महीने में अठहत्तर मीटिंगों में तकरीबन चार सौ बयालीस लोगों के बयान दर्ज किये गये. कुछ वृद्ध व्यक्ति थे जो जांच पूरी होते होते अगला जन्म लेने हेतु स्वर्ग सिधार गये. बच्चे भी थे जो युवा हो गये और जांच पूरी होते होते भूल गये कि उन्होंने क्या देखा था. जिन पर आक्षेप लगे थे वे सेवानिवृत्त हो गये. महार्य देश की मात्र दो सौ अठ्ठावन करोड़ मुद्रायें इस जांच में व्यय हुई. प्रतिपक्ष ने इस आयोग की जांच पर प्रश्न चिन्ह उठाये और विधान-पंच-समिति को नहीं चलने दिया.
इस पर महार्य देश के गणाध्यक्ष ने एक और समिति बना दी आयोग के निष्कर्षों की जांच के लिये, जिसमें चार उनके अपने दल के, दो अ०अ०ब०द० के, एक ज०ब०स०द० के, दो क०ख०ग०पा० के पंच-समिति सदस्य सम्मिलित किये गये. समिति ने कुछ संशोधन और कुछ सुझाव दिये.
इस पर महार्य देश के गणाध्यक्ष ने एक और समिति बना दी आयोग के निष्कर्षों की जांच के लिये, जिसमें चार उनके अपने दल के, दो अ०अ०ब०द० के, एक ज०ब०स०द० के, दो क०ख०ग०पा० के पंच-समिति सदस्य सम्मिलित किये गये. समिति ने कुछ संशोधन और कुछ सुझाव दिये.
जानवरों के हितों की रक्षा के लिये दिये गये सुझावों को मान लिया गया और मगृसे और मआसे के दर्जन भर अधिकारियों को प्रति वर्ष ट्रेनिंग लेने और मानव तथा पशु संसाधनों के डवलपमेंट हेतु युआश्व जाने का प्रस्ताव रखा गया जिसे एक संशोधन के बाद सहर्ष स्वीकार कर लिया गया. इस संशोधन में यह किया गया कि विधान-पंच-समिति के भी आठ सदस्यों को प्रतिवर्ष प्रशिक्षण हेतु इसमें सम्मिलित कर लिया गया.यह सदस्य अकेले रहने के अभ्यस्त नहीं थे इसलिये उन्हें सपरिवार जाने की अनुमति दी गयी.
एक बार फिर वही प्रतियोगिता आयोजित हुई. यह प्रतियोगिता हर चार वर्ष में आयोजित की जाती थी.
पुन: बकरी छोड़ी गयी.
आपान देश के गृहरक्षकों ने उसे आठ घण्टों में खोज लिया.
स्क्वात देश के गृहरक्षक पांच घण्टे में खोज लाये.
युआश्व देश के गृहरक्षकों को मात्र तीन घण्टे लगे महाराज की बकरी खोजने में.
अब मौका मिला महार्य देश के गृहरक्षकों को. वे घण्टे भर के अन्दर लौट आये. मगर यह क्या! पुन: भालू जैसा जीव. लोगों में खुसर-पुसर प्रारम्भ हो गयी. इन लोगों ने कुछ भी नहीं सीखा, लगता है फिर इस जीव को अन्दर ले जाया जायेगा.
मगृसे के अधिकारी ने गर्व से चारों तरफ देखा, उसकी समझ में आ चुका था कि लोग क्या कह रहे हैं. उसने एक संकेत दिया. नगरपाल आ गये. इस बार उन्होंने भालू की रस्सी को नहीं पकड़ा. मगृसे के अधिकारी माइक सम्भाल चुके थे. उन्होंने कहना प्रारम्भ कर दिया. "आप लोगों को लग रहा होगा कि हम लोग फिर जीवों के अधिकारों का उल्लंघन करेंगे, किन्तु ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, हम युआश्व देश में ट्रेंड होकर लौटे हैं, कोई इस जीव को छुयेगा तक नहीं."
लोग आश्चर्यचकित थे. नगरपाल महाराज दार्द के पास पहुंचे और उन्हें अपने साथ ले गये. थोड़ी देर बाद महाराज दार्द वापस आ गये. अब महाराज कह रहे थे "यही तो मेरी बकरी है".
टिप्पणी 1: जब आग़ाज़ ऐसा था तो अंजाम यही होना था।
ReplyDeleteटिप्पणी 2: बकरी की बकरी
टिप्पणी 3: हमसे का भूल हुई जो ये सज़ा हमका मिली
सम्यक और सार्थक बोध कथा।
ReplyDeleteGreat lesson !
हा हा हा। बहुत अच्छी और प्रेरक बोधकथा। आजकल हमारे नेतागण भी तो आम को इमली बनाने में महारत हासिल किए हुए हैं।
ReplyDeleteहा हा हा, देश तो अभी भी वही भाग ले रहे हैं।
ReplyDeleteha ha ha ....bahut hi uchit samay par pracheen samay ki katha ...
ReplyDeleteक्या उपमएं दी है गजब बेहतरीन ताना बाना :)
ReplyDeleteha ha ha आजकल भी सही प्रतीत होती प्रेरक बोध कथा.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बोधकथा प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteमुझे लगता है की शीर्षक होना चाहिए था "एक आधुनिक कथा"
ReplyDeleteभाई भारतीय नागरिक "हिन्दुस्तान की आत्म कथा "ताज्जुब है अर्वाचीन काल में ही लिखी जा चुकी थी .
ReplyDelete"एक सर्वकालिक कथा"
ReplyDeleteबोध कथाए तो पुरानी कथाएँ मानी जाती हैं ... अगर पहले भी ऐसा होता था तो अब क्यों न हो ...
ReplyDeleteभाई सरकार भी तो यही सब कर रही है ...
प्रासंगिक विचार लिए बोधकथा..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक कथा। , बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDelete- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ha..ha..ha..
ReplyDeleteमज़ा आ गया....
ऐसी रचना भारतीय नागरिक ही कर सकता है...
और हाँ एक बात जान कर और प्रसन्नता हुई की आप कविताओं के पुराने पाठक हैं. मेरी पिछली पोस्ट के शीर्षक को पढ़ कर स्वर्गीय गोपाल प्रसाद व्यास जी को स्मरण करना, मुझे विशिष्ट सी अनुभूति दे गया....सादर
बहुत मजा आया. ज्ञानवर्धक. एक बेरोजगार जो हिंदी में एमए था, उसे शहर में लगी सर्कस में नौकरी मिली. शर्त बठी की बकरी की खाल ओढ़े शेर के पिंजड़े में जाना होगा. पूरी ट्रेनिंग का आश्वासन दिया गया. पिंजरे का दरवाज़ा खोल बकरी को लात मार अन्दर कर दिया. अन्दर शेर ने हाथ बढाया और कहा दरो मत मै भी एमए हूँ.
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग जो मन कड़वा कर देता है, पर सच किसी भी व्यंग से बढ़ कर है. उदय प्रकाश की "मोहन दास" याद आ गयी.
ReplyDeleteसार्थक बोध कथा ...
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