जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
हमारे यहां यह पुलिस थोडे हे गुंडे हे साले, इन्हे नाक पोछना नही आता उन्हे गालिया सीखा कर ओर मार पीट सिखा कर जनता को मारने के लिये तेयार करते हे, ओर नेताओ के जुते साफ़ करने की ट्रेनिंग ब्झी इन को दी जाती हे.. लानत हे इन पर
और उम्मीद ही क्या की जा सकती है.खुले आम यह हाल है तो शालाखो के अंदर तो न जाने क्या हाल करते होंगे.
ReplyDeleteशर्मनाक चेहरा..
ReplyDeleteइसीलिए इनके मरने पर कुछ खास दुःख नहीं होता
अमर्यादित और दुर्भाग्यपूर्ण।
ReplyDeleteबेहद अफसोसजनक ..... ऐसा व्यवहार बहुत दुखद है....
ReplyDeleteतभी तो लोग इन्हें खाकी वाले गुंडे कहते है
ReplyDeleteहमारे यहां यह पुलिस थोडे हे गुंडे हे साले, इन्हे नाक पोछना नही आता उन्हे गालिया सीखा कर ओर मार पीट सिखा कर जनता को मारने के लिये तेयार करते हे, ओर नेताओ के जुते साफ़ करने की ट्रेनिंग ब्झी इन को दी जाती हे.. लानत हे इन पर
ReplyDeleteHuman Rights ki paribhasha yehi hai
ReplyDeleteभारतीय पुलिस नही भारतीय जनता का प्यार है भाई इतना अत्याचार सहने के बाद भी इन्का प्यार कम नही होता
ReplyDeleteमन क्षोभ से भर जाता है।
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