Tuesday, February 28, 2012

नदियों में विसर्जित प्रदूषण .



धार्मिक कार्यक्रमों के नाम पर नदियों में कचरा फैलाना भी अनुचित है और उद्योगों द्वारा जो नदियों में जहरीला अपशिष्ट मिलाया जाता है वह भी अक्षम्य अपराध है. मेरे एक सम्बन्धी ने बताया है कि अमेरिकी समुद्र में "एक बूंद" जी हां आप एक बूंद भी तेल की नहीं गिरा सकते. ऐसा नहीं है कि हमारे देश में कानूनों की कमी है, कोई न कोई नियम-कानून तो हर किसी मामले पर होगा, लेकिन लागू करवाने वाले कैसे हैं, यह मुद्दे की बात है. वह भी शीर्ष पर. अब यह मत कहियेगा कि जिम्मेदारी तो जनता की भी है, स्वयं ही रेग्युलेट होना चाहिये. अगर सभी लोग स्वयं ही रेग्युलेट हो जाते तो फिर किसी भी सरकारी गैर-सरकारी नियमन/विधेयन की आवश्यकता ही नहीं होती. फिर यदि लोग स्वत: अनुशासित हो जायें तब भी उद्योग जो प्रदूषण फैला रहे हैं तथा सीवेज की गन्दगी जो हमारी नदियों में मिलाई जा रही है, उसका क्या? 

35 comments:

  1. अंधविश्वास ने मार दिया इन्हें, ये लोग नहीं समझ पायेंगे कि एक- पाप को धोने की जुगत में ये दूसरा पाप कमा रहे हैं! पता नहीं कब समझ पायेंगे !

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    1. जी, वही तो. लोग न जाने क्यों यह नहीं समझते कि वह गंगा को दूषित कर रहे हैं.

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  2. इस विषय में तो नागरिकों की सोच ही काम कर सकती है..... ऐसी बातें हमें पश्चिमी देशों से सीखनी चाहिए.....

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    1. जी, आपने ठीक कहा, लेकिन उनकी जिम्मेदारी अधिक है जो सिर्फ इसी काम के लिये नियुक्त किये गये हैं.

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  3. हम स्वयं अनुशासित नहीं हो सकते यह मेरा अनुभव है. देखिये हम लोग जब सिंगापूर जाते हैं, मजाल है कि हम कागज़ का एक टुकड़ा भी सड़क पे फेंक दें. कारण? वहां का प्रशासन तंत्र इन मामलों में असहिष्णु है. इसलिए हम नियमों का पालन करते हैं. परन्तु अपने देश में? वास्तव में हम इतने अधिक स्वतंत्र हो गए हैं कि किसी का डर नहीं रहा. हमें अनुशासित करने वाला कोई है ही नहीं और है भी तो उसे ठेंगा बता देते हैं.

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    1. वही कि अनुशासन आये कैसे, जब तक ज़ीरो टालरेन्स नहीं होगा, यही सब कुछ होता रहेगा. और ज़ीरो टालरेन्स तभी आयेगा जब ऊपर से प्रारम्भ होगा.

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    2. सच है, प्रशासन लगभग हर फ़्रन्ट पर फ़ेल सा हो गया है।

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  4. सब मिलकर गंगा में गन्दगी ढो ढो डाल रहे हैं..

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    1. वही गंगा जो देश की लाइफलाइन और गंगा मैया कहलाती है, में गन्दगी का प्रवाह. सुनते हैं कि गंगोत्री से थोड़ा सा आगे बढ़ने से ही इसकी शुरुआत हो जाती है.

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  5. धर्म को पर्यावरण\नदियों के साथ जोड़ना ही है तो संत सींचेवाल जी से प्रेरणा ली जा सकती है। एकाधिक जगह पर इनके बारे में पहले भी कमेंट किया है। एक लिंक आप भी संभालिये :)

    http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%88-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%88

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    1. बिल्कुल सही फरमाया आपने, लिंक के लिये आभार.

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  6. उफ़ ...पश्चिम की होड काश इस मामले में भी कर लेते हम.

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  7. हमारे देश में पढ़े लिखे गवारों की संख्या भी कम नहीं है। ये सब उसी का परिणाम है । ऊपर से कांग्रेस जैसी धूर्त सरकार है , जिसके चलते किसी भी विभाग में अनुशासन की अपेक्षा रखना व्यर्थ ही है।

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    1. पढ़े लिखे अनपढ़ों से ही अधिक दिक्कत होती है.

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  8. ऐसा नहीं हैं कि लोग समझते नहीं लेकिन हर कोई ये ही सोचकर लापरवाह हो जाता हैं कि केवल मेरे सुधरने से ही क्या होगा,बाकी लोग भी तो नदियों को दूषित कर रहे हैं.पर आपका कहना सही हैं कि इसमें प्रशासन की जिम्मेदारी ज्यादा महत्तवपूर्ण हैं तभी लोग लाईन पर आएँगे.

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  9. सब मिलकर गंगा में गन्दगी ढो ढो डाल रहे हैं..

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  10. जर्मनी ओर पुरे युरोप मे गंदे नालो ओर मिलो फ़ेकटरी के वेस्ट पानी को पहले फ़िलटर किया जाता हे फ़िर नदी मे डाला जाता हे, ओर हर महीने पानी की उच्चत्मता नापी जाती हे, मजाल हे आप नदी मे एक तिनका भी डाल दो, लेकिन भारत मे आप घर क्या शहर का कुडा डालो गंदे नाले डालो. अस्पताल का वेस्ट पानी बिना फ़िलटर किये डालो... अजी मोजा ही मोजा... लोगो को इतनी समझ नही कि इस पानी को पियेगा कोन?

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    1. यहां के अधिकारी यूरोप तो जा सकते हैं इसे सीखने के लिये, लेकिन लागू नहीं करा सकते.

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  11. हमें खुद तो समझने की ज़रूरत है ही, मगर वह पूरी तस्वीर का एक नन्हा सा पहलू है। प्रशासन की भी अपनी ज़िम्मेदारी है जिस पर गम्भीरता से बहुत काम करने की आवश्यकता है।

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    1. जी, बिलकुल, मैं भी यही कहना चाहता हूँ कि स्व-अनुशासन का महत्त्व तो कम हो ही नहीं सकता, लेकिन जहाँ अनुशासनहीनता चरम पर हो, वहाँ शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.

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  12. मैंने इस पोस्ट पर पहले ही टिप्पणी की थी। स्पैम में गई लगती है।

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    1. स्पैम में नहीं है. शायद सेव ही नहीं हो पाई होगी वह टिपण्णी.

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  13. चित्र काफी है कहने के लिए नदियों की हालत के बारे में......शासन को औऱ ज्यादा कड़ा होना होगा..कुछ काम ऐसे होते हैं जिसके बारे में स्वअनुशासन नहीं आता आसानी से....जरुरी है कि प्रशासन को हर हाल में कड़े कदम उठाने होंगे..वरना हालत नहीं सुधरेंगे

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    1. जहां भी थोड़ा सा लाभ होता है या सुविधा होने की सम्भावना होती है, वहाँ हम लोग नियमों की धज्जियाँ उड़ाने से बाज नहीं आते. धन्यवाद.

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  14. डर है,गंगा की निर्मलता कहीं तस्वीरों में ही सिमट कर न रह जाए।

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    1. कई जगह तो बिलकुल काला हो चुका है पानी.

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  15. गन्दगी फ़ैलाने वालों के लिए कड़े कानून का डर न होना भी इसकी एक बड़ी वजह है. कानून और फाइन का डर हो तो आदमी ऐसा करने से पहले दस बार सोंचेगा. विचारनीय प्रस्तुति.

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    1. बिलकुल, अभी तो हम लोग भय बिनु होय न प्रीत का अनुगमन करते हैं.

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  16. sach mein dukhad baat hai...kanun vyavstha mein sudhar aur uska sakhti se palan ati aavashyak hai.

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    1. अब जब ऊपर से ही व्यवस्था गडबड हो तो कैसे काम चले.

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  17. अपने यहां सच में स्थिति बड़ी भयावह है।

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.