खबर पढ़ रहा था कि सिलीगुड़ी में एक तेंदुआ जंगलों से भटककर आ गया. इसी प्रकार मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री के निवास के पास भी एक तेंदुआ पकड़ा गया. महाराष्ट्र में भी ऐसी कई घटनायें हुई हैं. कारण है कि भारत में मनुष्यों की आबादी तेजी से बढ़वाई जा रही है, जिन्हें रहने के लिये घर चाहिये तो उसके लिये खेतों का नाश किया जाता है और जब खाना चाहिये तो जंगल काटकर खेत बनाये जाते हैं. अब ऐसे पशु-पक्षी कहां जायें जिनका गुजारा ही जंगलों से होना है, नतीजा होता है कि वे कभी-कभी शहरों की तरफ आ जाते हैं और फिर जो सौभाग्यशाली होते हैं, वे पकड़ लिये जाते हैं जीवित. तथा जिनका भाग्य अच्छा नहीं होता वे सिलीगुड़ी वाले तेंदुये की तरह मारे जाते हैं. इतने बड़े देश में आजादी के चौंसठ साल बाद भी हमारे पास ऐसे प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं जो एक तेंदुये पर उचित मात्रा में ट्रैक्वलाइजर का प्रयोग कर उसे बेहोश कर पकड़ सकें. मैं अभी चित्र देख रहा था जहां उस पर बंदूकों से ऐसे हमला किया जा रहा था वैसा तो किसी आतंकवादी पर भी नहीं किया जाता होगा. मैं तो उन लोगों को धन्य कहता हूं जो विदेशी हैं किन्तु मानवीय जानों के साथ, अन्य प्राणियों की जानों की रक्षा के लिये भी उसी तत्परता से आतुर रहते हैं. डिस्कवरी पर एक प्रोग्राम देख रहा था व्हेल मछलियों को बचाने वाले लोगों के ऊपर, जो लगातार कई वर्षों से व्हेल के शिकारियों को रोकने के लिये स्वत: आगे आकर कार्य कर रहे हैं. लेकिन जिस देश में आदमी की जान का कोई मोल नहीं, वहां एक जानवर की जान का मोल क्या होगा. चीते की तरह ही सारे जानवर भारत से विलुप्त हो जायेंगे और उस दिन बचेगा तो सिर्फ मानवीय अस्तित्व धारी एक प्राणी जिसे इंसान कहना शायद ही मुमकिन होगा.
जिस डिस्कवरी प्रोग्राम का आपने जिक्र किया है, वह श्रृंखला मैनें भी देखी थी। लेकिन अंत में उसमें भी व्हेल रक्षकों पर ही मुदमा चला दिया गया। हमारे देश में तो अभी ऐसी जागरुकता आनी बाकी है।
ReplyDeleteसच कह रहे हैं आप ..हमारे यहाँ आतंकवादियों को संरक्षण दिया जाता है और निरीह प्राणियों को मार दिया जाता है.
ReplyDeleteजब हर तरफ से भगा दिया है तो अर्जी लेकर मुख्यमंत्री के पास आया होगा।
ReplyDeletetendue to indore ke aaspas ke gaon me bhi ghus jate hai...sach hai hame in nireeh janvaron se unka khana aashiyana chhen liya hai...vicharniy post..
ReplyDeleteजंगल काटकर कंकरीट के पेड़ उगाए जा रहे हैं तो ऐसा तो होगा ही!
ReplyDeleteआपने मानव के ऐसे गुण को छेड़ा है जो एक दिन मानव जाती की बर्बादी का कारण बनेगा..
ReplyDeleteपहले हम जानवरों की जगह हड़पते हैं और फिर शहर में घुसने पर उन निहत्थों को गोलियों से मारते हैं पर कोई आतंकवादी हमें हमारे घर में घुसकर ही मारे तो हमारी घिग्गी बांध जाती है.. क्या विडम्बना है..
वन-कटाई के दुर्भाव दिख रहे हैं... सचेत होने की आवश्यकता है..
परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
अभी इन मामलों में हम भारतीय इतने जागरूक नहीं हुए। ज़रूरत होने पर वेद-पुराणों का हवाला देते नहीं थकते कि हम तो सकल ब्रह्मांड के कल्याण की कामना करते हैं,पर व्यावहारिक धरातल पर अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
ReplyDeleteवाकई आपकी चिन्ता विचारणीय है। जानवरोँ की तुलना मेँ आदमी ज्यादा ही जानवर बनता जा रहा है।
ReplyDeleteजानवरों की संख्या कम और आदमियों की ज्यादा य़ह तो होगा ही । संवेदना के बारे में तो जो कहें वह थोडा है ।
ReplyDeleteकम से कम इस समय तो उन्हें याद कर ही लूं जिनके कारण आजाद हुआ देश और देश के माथे पर स्वतन्त्रता का तिलक लगा...
ReplyDeleteधीरे धीरे ऐसे हालात आने वाले हैं ... कहीं और भी जल्दी न आ जाएं ...
ReplyDeleteवन्य प्राणियों के प्रति संवेदना भरी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी. भोपाल में तो तीन जगह तेंदुए दिखे थे. एक पकड़ा गया.
ReplyDeleteजब मनुष्यों में पशुता आ जाएगी तो निरीह पशु इस मनुष्य नामक प्रजाति से कहाँ तक बचेंगे ?
ReplyDeleteसही कहा आपने इस दिशा में सरकार द्वारा सख्त कदम उठाए जाने चाहिए
ReplyDeleteरोचक पोस्ट। उस बेचारे को भी घोटाले की खुश्बू आयी होगी तो अपना हिस्सा माँगने चला आया होगा। आखिर उनका भी तो देश पर कुछ हक बनता है कि नही?
ReplyDeleteसंरक्षण देना तो दूर इनसे इनका घर ही छीन लिए है हम इंसानों ने....
ReplyDeleteजिस देश में आदमी की जान का कोई मोल नहीं, वहां एक जानवर की जान का मोल क्या होगा.
ReplyDeletenice article
यह एक गंभीर विषय है टकराव का अंत अमूमन वन्य प्राणियों की मौत से ही होता है । आपको जानकारी के लिये एक बात बता दूं कि भारत मे प्राक्रृतिक वन उजाड़ दिये गये हैं और आज जिन्हे हम जंगल कहते हैं वास्तव मे वे इमारत्ती लकड़ियों के बागान हैं जिनमे वन्यप्राणियों के लिये भोजन नही होता और अमूमन इसी कारण मनुष्य़ से टकराव होता है । भारत मे बाघ संरंक्षण की चलाई जा रही समस्त योजनायें करीब करीब बेवकूफ़ी की श्रेणी मे आती हैं बाघो की अल्प संख्या उनके पर्यावास के बदल जाने का परिणाम हैं ।
ReplyDeleteभाई साहब ,बात तो यह है कि आदमी रूपी तेंदुआ किसी भी चौपाए को जिन्दा नहीं छोड़ेगा । वह जहां रहेगा ,जंगलराज रहेगा और अपने जंगल में किसी को रहने नहीं देगा। कृपया उसके जंगलीपने को चुनौती न दें!
ReplyDeleteएक भारतीय नागरिक के रूप में आपके विचारों की हर पोस्ट गंभीर और चिन्तनीय है। आपका कार्य प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।
ReplyDeleteयह एक बहुत संजीदा विषय है। मनुष्य उसी की रक्षा कर सकता है,जिसे वह जानता हो। वन्य प्राणियों की दुर्दशा उसके प्रति हमारी अज्ञानता की गाथा है।
ReplyDeleteआपने बहुत हइ अच्छी पोस्ट लिखी है .. हमारे देश में जहाँ इंसानी जान कि कदर नहीं है , वह जानवरों के प्रति क्या जागरूकता होंगी .. बहुत ही सार्थक पोस्ट और अंतिम पंक्ति तो बस एक तरह से punch line है ..
ReplyDeleteबधाई आपको इस सार्थक पोस्ट के लिये ..
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
सच बात तो यही है, जहाँ जीवन और प्रकृति का मोल नहीं, समझ नहीं, वह अपने विनाश की तैयारी खुद ही कर रहा है. विकास के नाम पर फैलते शहर, प्रदूषित नदिया, कटते जंगल, वहाँ तैंदुवे भी मरते हैं, गरीब भी.
ReplyDelete