एक और दिल दहला देने वाला वीडियो लाइवलीक डाट काम पर आया है जिसमें पाकिस्तान के स्वात में तालिबानियों ने सुरक्षा-कर्मियों पर छ: बच्चों की हत्या का आरोप लगाते हुये सोलह सुरक्षा-कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया. मारने वाले और मरने वाले दोनों ही मुसलमान हैं. अल्लाह को मानने वाले और अल्लाह के बंदे. बेशक इस्लाम शांति का संदेश देता होगा, किन्तु उसके अनुयायियों की करतूतें तो ऐसी हैं कि मानवता को शर्मसार कर दें. यह कैसा न्याय है कि सामने वाले को अपना पक्ष तक एक निष्पक्ष अदालत के, जज के सामने रखने का मौका तक न दिया जाये और फिर जल्लाद ही जज बनकर फैसला सुना दे. ये तालिबानी तो स्वयं ही ख़ुदा बन बैठे. अगर इन्हें ही बिना किसी सुनवाई के फैसला देने का अधिकार है तो निश्चित रूप से फिर किसी कानून-किसी पुस्तक की आवश्यकता रही ही नहीं. तब फिर अल्लाह के बन्दे होने का दिखावा क्यों. भयावह बात यह है कि भारत में भी इस प्रकार की मानसिकता वाले तत्वों की कमी नहीं, जो गाहे-बगाहे यहां पर शरीयत के अनुसार सभी फैसले कराने की मांग करते हैं और कई बार तो इन फैसलों और अदालतों को कानूनी जामा पहनाने की बात करते हैं. ऊपर से हमारे यहां के राजनीतिबाज वोटों की राजनीति के चलते इस मानसिकता को दबाने के स्थान पर उभारने में लगे रहते हैं. ऐसे में अल्लाह ही इन्हें सद्बुद्धि दे.
दूषित विचारधारा स्वर्ग को नर्क बना कर रख देती है।
ReplyDeleteतालिबान ने छ: बच्चों की हत्या की सजा सुरक्षाकर्मियों का दी है, लेकिन क्या स्वयं तालिबान हजारों मासूम लोगों का हत्यारा नहीं है? यह कौन सा स्वर्ग है भाई जिसका ख्वाब कहते हैं इस्लाम धर्म दिखाता है?
ReplyDeleteजिनके अन्दर पशुता का समावेश हो जाए उनसे कोई अपेक्षा नहीं रह जाती.
ReplyDeleteआपका आभार शास्त्री जी...
ReplyDeleteyes one should follow the laws and accused should get opportunity to defend.
ReplyDeletebut Taliban thinks they are above all.
nice article
दरअसल दिक्कत यह है कि इस्लाम धर्म की स्थापना ही यूरोप के इसाई हमलावरो का जवाब देने केलिये हुयी थी । उस समय अरब का समाज हिंदू धर्म की कुरीतियो मे उलझा हुआ था सभी अलग अलग कुल देवताओं की पूजा करते थे और कबीले आपस मे लड़ते थे । इसीलिये पैगम्बर साहब ने मूर्ती पूजा को कड़ाई से रोका और सभी लोगो को इश्वर को निराकार रूप मे पूजने का संदेश दिया इस पूरे घटना क्रम के दौरान कुछ आयते ऐसी भी लिखी गयीं जो तत्कालीन रूप मे तो एकदम जरूरी थी लेकिन आज के परिपेक्ष्य मे उनका पालन करना संभव नही । आप की जानकारी के लिये अगर एक पूरे तरीके से इस्लाम का पालन करना हो तो शेरो शायरी , संगीत का कोई भी स्वरूप भी प्रतिबंधित है । सिवाय अल्लाह की प्रार्थना के ।
ReplyDeleteखुद उनके अंदर से ही कोई उठ कर इसको ठीक कर सकता है ...
ReplyDeletegalt vichar dhara hai
ReplyDeleteआतंक का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उसका एक ही उसूल है- अधर्म।
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