एक अधिकारी के ऊपर FIR दर्ज होती है छेड़छाड़ के जुर्म में. थाने में पैरवी करने वाले आ जाते हैं. मुख्यमन्त्री जी का आदेश होता है कि पैरवी करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई होगी. लेकिन थाने के कैमरों से कुछ नहीं निकलता. अब रिपोर्ट कराने वाली महिला कोर्ट में अपने बयान से मुकर गयी. नतीजा मामला खत्म.एक पूर्व सांसद के विरुद्ध तहरीर दी जाती है. छेड़छाड़ की. वे सज्जन अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं. चौबीस घण्टे के अन्दर उनके खिलाफ दी गयी तहरीर वापस ले ली जाती है. नतीजा मामला खत्म.
ऊपर वाले मामले में एक आर्टिकल पढ़ा था जिसमें लिखा था कि एफ०आई०आर० कराने वाली महिला के विरुद्ध झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिये कार्रवाई होना चाहिये. बात बिल्कुल न्यायसंगत है कि यदि कोई व्यक्ति जान-बूझ कर झूठी रिपोर्ट दर्ज करा रहा है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई होना चाहिये.किन्तु रसूखदार व्यक्तियों के विरुद्ध मामले को चलाते रहना क्या इतना ही आसान है. जो व्यक्ति रसूख वाले हैं, उनके साथ समाज के न जाने कितने ही लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद करते हैं और करने को तैयार रहते हैं. जिनके पास इतने साधन मौजूद होते हैं कि वे सामने वाले व्यक्ति को ये केन प्रकरेण अपनी खिलाफत से हटा ही देते हैं. ऐसे भी मामले हैं जहाँ रसूखदार लोग सार्वजनिक रूप से गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त पाये गये किन्तु पुलिस की जाँच में बरी हो गये या फिर उनके विरुद्ध मामला ठहरा ही नहीं.
इन दोनों मामलों में अब जबकि कानूनी तौर पर दोनों वादियों ने मामला वापस ले लिया तो निश्चित रूप से झूठी रिपोर्ट लिखाने पर कार्रवाई होना ही चाहिये, क्योंकि यह बहुत गंभीर मामला है, लोगों के विश्वास को तोड़ने का. सामाजिक विश्वास को तोड़ने का. कानून के राज के विश्वास को तोड़ने का.यदि रसूख से डर कर मामला वापस लिया तो जरूरत क्या थी रिपोर्ट दर्ज कराने की और यदि बाद में रसूख का पता चला तो फिर कानून में बदलाव की हिमायत हो कि रसूख वालों पर यह कानून लागू नहीं होता. अगर किसी प्रकार की पेशबन्दी में या फिर इन व्यक्तियों को परेशान करने के लिये तहरीर दी गयी तो न केवल तहरीर देने वाले लोगों के विरुद्ध, बल्कि चार्जशीट तैयार करने वाले के विरुद्ध भी कार्रवाई होना चाहिये.
एक और विडंबना यह है कि झूटी ऍफ़आईआर(चाहे जिस भी से ) तो दर्ज हो जाती है किन्तु जो सही मामले है उनमे एफ आई आर दर्ज कराने हेतु पापड बेलने पड़ते है। जहां तक ऊपर आपके द्वारा उठाये गए मुद्दे है, उसमे निश्चित तौर पर vested interest होता है, जिसका दुरुपयोग वही लोग करते है जो क़ानून बनाते है।
ReplyDeleteबड़ी आसानी से लोग छूट जाते हैं, कोई तो लगाम लगे इन पर। शुरुआत आपकी सलाह से ही सही।
ReplyDeleteअक्सर ऐसे मामलों की शुरूआत इस उम्मीद के साथ होती है कि व्यवस्था की भ्रष्ट कड़ियों के बीच कोई ईमानदार व्यक्ति अवश्य निकालकर आयेगा। शिकायतकर्ता को व्यवस्था की जटिलता का अंदाज़ भी नहीं होता है और न ही उसके झुकाव का। "सत्यमेव जयते" के देश में जब यह लड़ाई घाटे का सौदा बनने लगती है तो पहले से ही लुटा व्यक्ति क्या करेगा - जान बची और लाखों पाये, लौट के बुद्धू घर को आए। जब तक व्यवस्था मे पीड़ित को अतिरिक्त सहारा देने का प्रावधान नहीं होगा, काम नहीं चलेगा।
ReplyDeleteइस व्यवस्था के आगे मुझे तो सिवाये सर पीटने के और कोई उपाय नही सूझता.:(
ReplyDeleteरामराम.
विचारणीय बात .... ज़रूरी है कार्यवाही.....
ReplyDeleteEither it is a false complaint which was withdrawn or an honest one: BOTH sides of possibilities are dreadful....
ReplyDeleteIt MUST BE COMPULSORY for the system to go into the truth of such matters and punish WHICHEVER side is guilty of falsification.
problem is - we can't even complete the cases which are actually pending in courts, let alone pursue those cases which have been withdrawn :(
हमारी जानकारी के अनुसार तो फर्जी FIR के लिए क़ानून में प्रावधान है। कई बार अखबारों में पढ़ा भी है की फलाने व्यक्ति पर झूठी FIR के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया ..औरतों पर अलग नियम लागू होतें हो,तो पता नहीं ...
ReplyDeleteलिखते रहिये…
कार्यवाही ज़रूरी है
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