आठ पुलिस वालों को बारह निर्दोष लोगों की हत्या का दोषी करार दिया गया. निश्चित रूप से यह खबर उन लोगों के घरवालों के लिये अच्छी है जो लोग इस झूठी मुठभेड़ में मारे गये और दूसरे उन पुलिस वालों के लिये सबक मिलेगा जो इस तरह के कारोबार में संलिप्त हैं.
लेकिन इसका दूसरा पहलू देखिये - हत्याकाण्ड हुआ 12 मार्च 1982 को, 24 फरवरी 1984 को सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई जांच के आदेश दिये. 28 दिसंबर 1989 को चार्जशीट दाखिल की गई और 28 मार्च 2013 को फैसला हुआ.
यदि डी एस पी के पी सिंह की पत्नी विभा सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका न दायर की होती तो शायद इस मामले की जांच भी न हो पाती क्योंकि मारे गये ग्रामीणों के परिजन इतने सक्षम नहीं कि मामले को आगे बढ़ा पाते.
साढ़े पाँच साल से भी अधिक समय लगा सीबीआई को मामले की जांच कर चार्जशीट दाखिल करने में और चौबीस साल लगे मामले के निर्णय तक पहुंचने में. कोर्ट ने आठ पुलिस वालों को दोषी पाया है, और मुझे नहीं लगता कि इनमें से एक पुलिसकर्मी को भी नौकरी से निकाला गया होगा.
अर्थात यह सम्भावना है कि इस फर्जी मुठभेड़ के साजिशकर्ता इकतीस साल तक नौकरी करते रहे होंगे. हमने पूरा का पूरा ढाँचा अंग्रेजी सिस्टम का ही अपनाया है, मुझे नहीं लगता कि ब्रिटिश राज्य में किसी जाँच और मुकदमे के समापन में इकतीस साल लगते होंगे. चूंकि दोषियों के पास अभी उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपील के विकल्प मौजूद हैं ऐसे में कितना समय अभी और लगता है कहना मुहाल है.
लेकिन इन पूरे इकतीस वर्षों में अपराधी नौकरी करते रहे होंगे, जनता के सेवक बने रहे होंगे, तनख्वाह लेते रहे होंगे. इन इकतीस वर्षों का हिसाब कौन देगा और कौन लेगा. क्या सम्पूर्ण ढांचे में बदलाव अभी भी आवश्यक प्रतीत नहीं होता. आखिर इस सब में दोषी कौन है, वह जनता जो अपने प्रतिनिधियों को चुनती है या फिर वे प्रतिनिधि जो जनता के हितों की तरफ से उदासीन होकर बैठ जाते हैं.
मेरा भारत महान ! ३० साल बाद वर्डिक्ट आया जब उन्नीस में से १० पोलिस वाले तो पहले ही मर चुके। अब मजेदार बात यह देखने की है कि क्या जस्टिस काटजू अपने संजइया थ्योरी यहाँ भी अप्लाई करते है या नहीं क्योंकि दोषी पाए गए पोलिस कर्मियों ने भी तो ३० साल मेंटल दंश झेला है !
ReplyDeleteऔर असल दोष उनका है जो पैंसठ साल से एस देश के क़ानून निर्माता ( law makers ) बने घूम रहे है और अभी तक हमारे क़ानून की खामियों को नहीं सुधार पाए ! दिक्कार है ऐसे निक्कमे Law makers पर !
Deleteपता नहीं क्या लिखा है देश की किस्मत में. न लोग पढ़ाये गये, न पढ़े और न यह सीख पाये कि समाज के लिये क्या अच्छा है, सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही सीख सके.
ReplyDeleteहालत देखते हुये सिवा लाचारी के कुछ नजर नही आता. लाचारी का दंश...क्या यही कानून है?
ReplyDeleteरामराम
आ गया यही क्या कम है, नहीं तो रिटायर हो जाते..
ReplyDeleteकुछ तो स्वर्ग सिधार गये होंगे और सम्भवत: कुछ एक रिटायर भी हो गये होंगे..
Deleteदोष कानून और न्याय व्यवस्था में है और व्यवस्था को बनाने वालों में भी .
ReplyDeleteऐसे तो हालात दिन ब दिन बदतर ही होंगे.
दोष तो अपना ही है कि परतंत्रता की बेड़ियाँ तोड़ने के दशकों बाद भी बंधे हुए हैं अन्याय की कड़ियों से
ReplyDeleteAbay kutty Bhagat Singh ko Mansik Rogi Bol ta hai.... Mansi Rogi ki wajha say tu aaj chain ki need le paraha hai...
ReplyDeleteAbay kutty Bhagat Singh ko Mansik Rogi Bol ta hai.... Mansi Rogi ki wajha say tu aaj chain ki need le paraha hai...
ReplyDeleteभई वाह क्या खूब टिप्पणी की है।
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