दिल्ली में पाँच वर्षीया बच्ची के साथ हुये अमानुषिक कृत्य के बाद प्रदर्शन कर रही एक युवती के ऊपर थप्पड़ मारकर पौरुष दिखाने का कृत्य पुलिस के एक अधिकारी ने किया. यद्यपि उस अधिकारी को सस्पैंड कर दिया गया है, लेकिन पुलिस में लाइन-हाजिर होना, सस्पैंड होना आम बात है. अधिकारियों को थाने से हटा दिया जाता है बाद में दूसरी जगह तैनाती दे दी जाती है. लखनऊ में एक युवक की मौत थाने में हो गयी. कुछ अधिकारियों को सस्पैंड कर मामले की इतिश्री कर दी गयी. अलीगढ़ में एक बलात्कार की घटना के बाद वहाँ भी पुलिस अधिकारी प्रदर्शन कर रहे लोगों को लात-जूतों से निपटाते नजर आये. जाहिर है कि पुलिस वाले अपने लिये इस कारण कानून से ऊपर समझते हैं कि किसी भी प्रकार की त्वरित और कठोर कार्रवाई उन पर नहीं की जाती. उत्तर प्रदेश के ही एक अधिकारी को सीबीआई ने फर्जी मुठभेड़ का आरोपी बनाया है, लेकिन कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गयी. पिछले दिनों ही एक डीएसपी और बारह ग्रामीणों की हत्या में पुलिस वालों को सजा सुनाई गयी, लेकिन उसमें भी ढ़ाई दशक लग गया.
मौजूदा ढ़ाँचा राजनीतिज्ञों ने अपने लाभ हेतु बना रखा है. इसीलिये वे किसी भी तरह का सुधार नहीं चाहते. वही हाल इन अधिकारियों का है, इन्हें यह लगता है कि वे खास हैं और उनके यहाँ आम हो ही नहीं सकता. उनके दिमाग में यह बैठ गया है कि वह सबको लठिया सकते हैं और उनके साथ यह नौबत कभी नहीं आ सकती. मुझे इन लोगों के मानसिक स्तर पर कभी संदेह नहीं हुआ, आखिर मानसिक रूप से विचलित कोई व्यक्ति शांति से प्रदर्शन कर रहे लोगों के ऊपर कैसे लाठी चला सकता है, और दूसरी तरफ मुंबई में उपद्रवियों के सामने कोई कैसे निरीह प्राणी बनकर खड़ा रह सकता है. दर-असल ये लोग भी समाज के ही एक अंग हैं और यह समाज की सही स्थिति दर्शाते हैं. सही स्थिति यह है कि आज अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु हर व्यक्ति (अपवादों को छोड़कर) किसी भी हद तक जा सकता है और वही परिस्थिति अपने सामने होने पर चिल्लाता है.
इस पीड़िता के मामले में जो लोग सौदा करवाने पर उतारू थे, जो अधिकारी कार्रवाई करने में हीला-हवाली कर रहे थे, जो प्रदर्शन करने वालों के दमन पर अड़े हुये थे, अगर उनके विरुद्ध तुरन्त कठोर कार्रवाई की जाती तो कुछ अच्छा संदेश जाता. लेकिन जब नीचे कार्रवाई होने लगेगी तो फिर नीचे वाले ऊपर वालों को भी जद में लेने लगेंगे, और जब ऊपर वालों पर कार्रवाई होगी तो फिर कानून का राज चलने लगेगा, लेकिन कानून का राज इस देश में कौन चाहता है, उसके अलावा जो कानून की व्याख्या अपने हिसाब से नहीं करवा पाता.
कभी कभी लगता है जैसे आम आदमी की पीड़ा से इनका कोई वास्ता ही नहीं ....
ReplyDeleteकभी कभी तो ऐसा लगता है इस राज काज और कानून से कुछ नही होने वाला, लगता है पूरा का पूरा "जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाला समय आगया है.
ReplyDeleteरामराम.
शायद इस मौके पर मुझे यह बात नहीं कहनी चाहिये लेकिन अभी कुछ दिन पहले ही इसी शहर के एक ऐसे ही मामले के बाद पीड़िता के पिता ने अखबार में ऐसी ही बात के लिये पुलिस की तारीफ़ की थी कि पुलिस वालों ने उस गरीब की कुछ पैसों से मदद की। पुलिस, प्रशासन का काम सुशासन और सुव्यवस्था प्रदान करने का ही है लेकिन इसमें जिम्मेदारी जनता की भी है। देखने में यही आता है कि कुछ अनचाहा हो जाने के बाद जनता, मीडिया एकपक्षीय तरीके से देखने सोचने लगते हैं।
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि बद्दुआआें का ही प्रताप है कि कुछ लोग पुलिसिए बन जाते हैं
ReplyDeleteवर्तमान में घटित घटना की
ReplyDeleteसार्थक रपट
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
आपने सही ही आँकलन किया है. "मौजूदा ढ़ाँचा राजनीतिज्ञों ने अपने लाभ हेतु बना रखा है"
ReplyDeleteIt is really very unfortunate to see, the way our cop is behaving with women and downtrodden. Poor girl is getting treatment in AIIMS where she is struggling for her life, but that policeman was offering merely rs-2000/- to her father for ignoring the rape n all issue. How cruel !
ReplyDeleteLekin HUM kab tak chup rahenge sabki aawaj ko dabana to asan nahee hoga. Jaroori hai ki aise apradhee adhikaree aur sarkar ke khilaf awaaj uthe.
ReplyDeleteये अंधा कानून है जिसे दिखाई नहीं देता कि किस पर हाथ उठाना है किस को हाथों से सहारा देना है या राजनीतिज्ञों के डोर बंधी कठपुतली!
ReplyDeleteपुलिस तंत्र का पूरा ढांचा बदलना चाहिए ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सही आँकलन किया है आपने!!
ReplyDeleteसारा तंत्र ही बिगडा हुआ है । हमारे चुने हुए नेता जब तानाशाही करने लगते हैं, तो पुलिस भी करती है । उनके लिये जब जनता को धमकाना होता है तो अपने शक्ति प्रदर्शन के लिये भी करती है ।
ReplyDeleteबहुत दिन बीते ...
ReplyDeleteकहाँ हैं आप !
शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर.सटीक.बधाई!
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