Thursday, January 26, 2012

मल्लिका जी, क्यों उदास हैं!


मल्लिका जी, क्यों उदास हैं,
पुरुस्कार न मिलने का गम या अन्य कारण खास हैं,
आपने अपनी प्रोफाइल क्यों छुपाई है,
पहले की ही है या अभी अभी बनाई है,
यूं तो आपका नाम ही पारदर्शिता का सिनोनिमस है,
लेकिन यूं छुपकर आप खुद क्यों अनोनिमस हैं
जरा सामने तो आईये
रुख से पर्दा तो हटाईये
यह माना कि पुरुस्कार न मिल पाने से आपको कष्ट हुआ होगा
कोई बन्दा खुश तो कोई रुष्ट हुआ होगा
अरे यह तो दुनिया का दस्तूर है
हमारे हक में होने वाला फैसला ही हमें मंजूर है
यदि आपको खराब लगा हो तो हमारी सलाह अपनाइये
एक सम्मेलन अपने यहां करवाईये
सभी ब्लागर्स को ससम्मान बुलाइये
और उसमें हमें मुख्य अतिथि बनवाईये
अगर सभी बिलागरान को प्रेम से बुलायेंगी
उनके आतिथ्य का जिम्मा उठायेंगी
तो सच मानिये आपको भी आनन्द आयेगा
और पुरुस्कृत न होने का मलाल भी मिट जायेगा..

भूमिका - पुरूस्कारों को लेकर एक ब्लॉग पर जोरदार बहस छिड़ी थी, जिसमें एक बड़ी अच्छी टिप्पणी मल्लिका नामी प्रोफाइल से की गयी थी, बस फिर ऐसे ही चार-पाँच लाइनें लिख दीं, बतौर हास्य.

12 comments:

  1. बात कौन से पुरूस्कारों की हो रही है

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  2. लिंक मांगता है जी अपुन को:)

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  3. @काजल जी और संजय जी - अब न तो लिंक ध्यान है और न ही पुरुस्कार के बारे में. सम्भवतः पिछले वर्ष या २०१० में किसी ब्लॉग पर पुरूस्कारों को लेकर बहस छिड़ी थी और उसी समय इसे लिखा था. ड्राफ्ट बनकर ही रह गयी थी, आज देखा तो छाप दिया.

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  4. आजकल कई तुकबन्दियाँ फूट रही हैं. दो तीन तो अंदर से फूटकर नोटपैड तक पहुँच गई हैं, सोच रहा हूँ कि उन्हें पब्लिश कर ही दूं. वैसे आपको नहीं लगता कि कुछ तो असर संगत का होता ही है और आजकल मेरी संगति के तो क्या कहने.

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  5. तुकबन्दियाँ पब्लिश कर डालिए जी, हमारी तो देखी जायेगी:) संगति को लेकर खासे उत्साहित हैं आप सो हमारी तरफ से शुभ कामनाएं|

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  6. आपकी पंक्तियां मल्लिका जी तक पहुंची कि नहीं?

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  7. सबको सबकी चाह लगी है,
    दुनिया सारी रात जगी है..

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  8. झन्नाट लिखते हैं आप तो। मल्लिका का दुःख समझा और आपका उपाय बेहतरीन लगा। आजकल पुरस्कारों की अहमियत क्या रह गयी है भला? चापलूसी की जाती है एक दुसरे की और कुछ नहीं। आजकल के पुरस्कार मात्र पाखण्ड बनकर रह गए हैं।

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.