जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
हा, हा हा! सारा न्याय दूसरों के लिये!
ReplyDeleteबढ़िया ...
ReplyDeleteआचार संहिता के हिसाब से दुरुस्त राय!!
ReplyDeleteपर्दा है पर्दा ...परदे के पीछे ...हाथी भी ...हाथी-वाली भी.... माया बहन परदे में और सितारे गर्दिश में .....
ReplyDeleteपूरा देश ही पर्दे के पीछे जा रहा है अब तो।
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