Wednesday, January 18, 2012

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपनी अपनी परिभाषाएँ .

जब बात होती थी मकबूल फिदा हुसैन की, तो हमारे यहाँ बड़े बड़े नेता, समाजसेवी, पत्रकार  धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए रुदन करने लगते थे कि हुसैन का विरोध करने वाले फासिस्ट हैं, नाजी हैं. ऐसे ही कई स्वनामधन्य पत्रकार, नेता, समाजसेवी और कई बहुत पढ़े लिखे लोग तथा  एकाधिक  विशेष ग्रुप  से सम्बन्धित व्यक्ति, हुसैन द्वारा बनाई गई देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरों का खुला समर्थन करते थे और अभी भी करते हैं तथा हुसैन द्वारा बनाई गई ऐसी पेंटिंगों का विरोध करने वाले लोगों पर हर प्रकार से वार करने पर उतारू रहते थे. उनका कहना होता था कि ये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है, संविधान में दी गई स्वतंत्रता का हनन है. लोगों को कला की समझ नहीं है, वगैरा. 
किन्तु बात जब सलमान रुश्दी या तस्लीमा नसरीन की आती है तब यह लोग सामने नहीं आते. पता नहीं उस समय ये लोग वैसे ही अभिव्यक्त करने में क्यों परहेज करने लगते हैं? क्या सलमान रुश्दी के भारत आने का विरोध और भारत आने से रोकना संविधान में दी गई स्वतंत्रता पर हमला नहीं है. क्या तस्लीमा नसरीन की भारत यात्रा का विरोध और उन पर सैकड़ों लोगों के सामने किया गया हमला, भारतीय संविधान पर सीधा हमला नहीं है? क्या सलमान रुश्दी को अपनी बात कहने से बलात् रोकना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सीधा सीधा हनन नहीं है? क्या तस्लीमा नसरीन को अपने विचार व्यक्त करने से जबरन रोकने वाले फासिस्ट नहीं हैं?  हर चीज के लिए यहाँ अलग पैमाने गढ़ लिए गए हैं, अपनी सुविधानुसार. और यही पैमाने एक दिन सम्पूर्ण विनाश का कारण बनते हैं, देखते है कि कितने दिनों हम इन अलग अलग पैमानों पर चलकर अपने लिए विनाश से बचा सकते हैं. 
    

15 comments:

  1. एकदम सही कहा। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सीधा सीधा हनन करने वाले ही उसके नाम पर नारेबाज़ी करते हैं। अफ़सोसजनक बात है कि रश्दी की पुस्तक पर पहला प्रतिबन्ध भारत सरकार ने ही लगाया था और अब देवबन्दी उनके अपने देश में आने का कड़ा विरोध कर रहे हैं। सच यही है कि देश में सही-ग़लत का विवेक मिटकर मेरा-तेरा की भावना ही बलवती होती जा रही है।

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  2. अपने अपने स्वार्थ

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  3. साधक क्या साध रहें हैं, कौन जाने...

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  4. आपकी बात से असहमति तो इन कुटिलों को भी नहीं होगी लेकिन उनकी मजबूरी है की उन्हें अपना पेट भरना है! इन टुच्चों की बात जितनी न ही करे उतना अच्छा ! भूखे-नंगों को खाना दीखता है और वे सेक्युलारी लवादा ओढ़कर दौड़ पड़ते हैं !
    देश गुलाम क्यों हुआ था, इन्ही जैंसे टुच्चों की वजह से !

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  5. यह सब पहले भी था,आगे भी रहेगा। फ़र्क़ केवल इतना है कि अब मीडिया आ गया है।

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  6. इस देश में पावर मूर्खों और उलटी खोपड़ी वालों के हाथ में हैं अतः इस प्रकार के उलूल-जुलूल प्रकरण सामने आते रहेंगे! दोहरी मानसिकता से ग्रस्त इस बीमार सरकार का इलाज बहुत जरूरी है , इससे पहले की समस्त जनता रुग्ण हो जाए !

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  7. बहोत अच्छे ।

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  8. एम.एफ़.हुसैन गलत था तो रुश्दी भी गलत है, और अगर वो सही था तो ये भी सही होना चाहिये..

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  9. यही तो दुखद है ...सब कुछ अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए ही होता है.......

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  10. Isko vot ki shakti kahte hain ... jiska upyog devband jaise sansthaan baakhoobi karte hain ...

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  11. इस बारे में जैसा अंदाजा था वही हो रहा हैं.अब रश्दी का विरोध करने से न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई आँच आ रही हैं और न कट्टरपंथ हावी हो रहा हैं.जबकि हुसैन के कतर चले जाने पर आज भी हाय तौबा मचाई जाती हैं जबकि उन्होने अपने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि वे टैक्स बचाने के लिए भारत से चले गए थे.

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  12. पक्का मत नहीँ बना पाया हूं। :(

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.