जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
एकदम दुरूस्त है इनकी बात भी. अच्छा होता कि केवल ढकने के बजाय उनके चारों तरफ स्मारकनुमा चाहरदिवारियां कर उन्हें छुपाने का आदेश दिया जाता. पूरा एक दूसरा उद्योग भी चल निकलता
एकदम दुरूस्त है इनकी बात भी. अच्छा होता कि केवल ढकने के बजाय उनके चारों तरफ स्मारकनुमा चाहरदिवारियां कर उन्हें छुपाने का आदेश दिया जाता. पूरा एक दूसरा उद्योग भी चल निकलता
ReplyDeleteit's nothing but a drama...
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की शुभकामनाएं..
ReplyDeleteजी एकदम!सुन्दर
ReplyDeleteसच है, खूब बिकेगा।
ReplyDeleteचुनाव के दिन है पैसा बनाना चाहिये । जोरदार व्यंग ।
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