भोपाल में एक बच्ची की मौत कुपोषण अर्थात भूख के चलते हो गई. खबर के मुताबिक इस दो वर्षीय बच्ची के माँ-बाप श्रमिक थे. बच्ची बीमार हुई, उसे लेकर अस्पताल पहुंचे,जहाँ उसकी मौत हो गयी.जैसे कि हमेशा होता आया है कि इस देश में भूख से कोई नहीं मरता, इसकी मौत के कारण को सुनिश्चित करने के लिए पोस्ट-मार्टम कराया गया और जिसमें यह पाया गया कि उसके सीने और दिल में चोट पाई गयी. और फिर उस बच्ची के माँ-बाप के विरुद्ध मुक़दमा लिख दिया गया-गैर इरादतन हत्या का.
क्या कोई माँ-बाप इतने निष्ठुर हो सकते हैं कि पैदा करने के दो साल बाद तक उसे पालने के बाद अपनी बेटी को मार दें, भले भूखा रखकर ही सही. ऊपर से ताज्जुब यह कि बच्ची की मृत्यु जून में हुई थी और मुक़दमा अब दर्ज हुआ है. हम थोथी नैतिकता की दुहाई देने वाले लोग, धिक्कार है हम पर. सबसे अधिक गुस्सा आता है मुझे उन सरकारी लोगों पर, जो जब तक लाइन के इस पार खड़े होते हैं, उनके अंदर संवेदनाओं का समुद्र हिलोरें लेता रहता है, लेकिन लाइन के उस पार पहुंचते ही उनकी आँखे मुंद जातीं हैं, वह संवेदनाओं का समुद्र सूखकर एक मरुभूमि में बदल जाता है.
लोग चिल्ला रहे हैं कि नई पीढ़ी आ रही है, उससे बहुत उम्मीदें हैं. तो भैया यह भी बताओ कि कौन सी पीढ़ी सीधे बूढी ही पैदा हुई थी. जो आज बूढ़े हैं, वे कल युवा थे, जो आज युवा हैं, वे कल बूढ़े होंगे. ये दौर यूं ही चलेगा. निराश होना अच्छा नहीं, लेकिन रोशनी कहीं नहीं. समाज बदलने के लिए सोच का होना आवश्यक है, लोग समग्र को नहीं देखते, केवल स्व तक सीमित हैं और इसी सोच के चलते सैकड़ों साल गुलाम रहे. सोच आये कहाँ से, जब कि शिक्षित न हों. और ये इंतजाम पहले ही पुख्ता हैं कि आप डिग्री तो ले लें, लेकिन शिक्षित न हो सकें. इतिहास पहले से ही दूसरों के चश्मे से देखकर लिखा हुआ पढाया जा रहा है, तो कहाँ से नींव मिले और खोखले आधारों पर कभी भी मजबूत इमारत नहीं बन सकती.
सकारात्मकता से अगर पेट भरता तो भारत पेट भरा देश होता।
ReplyDeleteसिर्फ बातों से कुछ नहीं होता .....
ReplyDeleteबेचारे बदनसीब! रोज़ की ज़िन्दगी के संघर्ष, बच्चों को रोटी न दे पाने की बेबसी, एक जान की क़ुर्बानी और ऊपर से प्रशासन तंत्र का यह निष्ठुर रवैया! शर्मनाक घटना है!
ReplyDeleteहमारे देश में बहुत संतोषी लोग है.
ReplyDeleteशायद इसका दोषी हमारा तथाकथित प्रजातंत्र और उदारीकरण है जो उन हरामखोरो को पालता है जिनके राज्य में किसान आलू को खेत में सडा देता है या १ रूपये किलो बेचता है..और उस आलू की चिप्स 5०० रूपये किलो बिकती है..
ReplyDeleteउम्मीद करनी चाहिए कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम से हालात बदलेंगे।
ReplyDeleteदेश समाज राजनेता और आस पास के सभी लोग दोषी हैं इस बदनसी हालात के लिए ... संवेदनहीनता सभी जगह घुसती जा रही है ...
ReplyDeleteनिश्चित रूप से इस सब का दोषी प्रशासन ही है| यहाँ लोगों को खाने को रोटी नहीं है और हमारे मनमौनी रूस को २० हज़ार करोड़ व फ्रांस को १० हज़ार करोड़ बाँट रहे हैं|
ReplyDeleteइतिहास भी इन जैसों के चश्मे में से ही झाँक कर देखा जाता है| यही मनमौनी २००४ में प्रधानमन्त्री बनने के बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में जाकर भाषण पेल कर आए थे कि भारत तो सदा से ही गरीब, अज्ञानी और भूखे नंगों का देश रहा है| यह तो भला हो अंग्रेजों का जन्होने हमे ज्ञान दिया, सभ्यता सिखाई|
२०० साल के अत्याचारों को भी भुला दिया गया है|
उस बच्ची की मृत्यु कुपोषण से नहीं अपितु इस
ReplyDeleteसड़ी-गली जर्जर राजनैतिक एवं सामाजिक व्यवस्था
के कारण हुई। इसके उत्तरदायी भ्रष्ट तंत्र के भ्रष्ट
नेता तो हैं ही, हम सब भी हैं जो चुपचाप यह सब
देख रहे हैं।
टिप्पणी देने को विवश करने वाली रचना निश्चित
ही सराहनीय है।
ये सरकार इतनी विषाक्त है की उसके दंश से अनेक मासूमों की जानें यूँ ही जाती रहेंगी !
ReplyDeleteकानून में स्पन्दन नहीं होता। :-(
ReplyDeleteनेताओं और नौकरशाहों की लूट .....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदुखद
ReplyDeleteआपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को नव-वर्ष २०१२ की ढेरों शुभकामनाये !
ReplyDeleteइस सब का दोषी प्रशासन ही है
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