Sunday, September 11, 2011

हमारे प्रधान जी एकदम ठीक कर रहे हैं.

एक बम क्या फट गया, मानों आफत आ गयी. जिसे देखो वही कट्टरपंथियों के हाथों खेलने लगा और अपनी भड़ास उतारने लगा. लेकिन मैं प्रधान जी के साथ हूं. वह हमारे देश के गौरवशाली अतीत और परम्पराओं का निर्वहन कर रहे हैं. विश्वास नहीं होता. अब देखिये, हमारे ही बड़े बूढ़े कह गये हैं कि गोली के घाव से भी अधिक तीखा होता है बोली का घाव. इसीलिये आतंक और आतंकवादियों तथा उनके मददगारों के विरुद्ध बोली का प्रयोग कर रहे हैं. बिल्कुल छलनी हो जायेंगे हमारे बयानों से. और हम आतंकवादियों को कोस भी तो रहे हैं. जब मरी खाल की श्वांस से लोहा भी भस्म हो जाता है तो हमारी आहों से ये आतंकवादी कैसे बच जायेंगे. रोज करें ऐसी कायराना हरकत. हम इन कायराना हरकतों से डरते नहीं हैं, देखा दिल्ली कहीं रुकी, मुम्बई कहीं रुकी. ये है हमारी जिन्दादिली.  बयान संप्रेक्षण चालू आहे.

12 comments:

  1. सही बात है, और क्या बच्चे की जान लेंगे?

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  2. @संजय जी - आप कहां हैं आजकल, बहुत दिनों से कुछ नया नहीं पढ़ा आपके ब्लाग पर.

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  3. जिस तरह से बम धमाके हमारे देश में होते हैं और महामहिम को वे दिवाली के पटाखे नज़र आते हैं वह अत्यंत खेदजनक है। मरने वाले मासूम हमारी तरह आम हैं इसलिए हम उनका दर्द महसूस करते। महलों में रहने वाले अनाथ होने वालों का दर्द क्या समझेंगे। सत्ता के लालची अपनी बयानबाजियों से आत्मा तक छलनी कर देते हैं। झूठी सहानुभूति जले पर नमक के समान लगती है। उनके लिए तो उनकी प्रजा मात्र कीड़े-मकौड़े के समान है।

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  4. गोली न निकले न भी निकले, यहाँ तो बोली भी ठीक से नहीं निकलती। इस करेंसी के पीछे किसी गोल्ड रिज़र्व की बैकिंग नहीं दिखती।

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  5. अरे छोडिये आप भी छीटे मोटे धमाको पर एक पोस्ट ही लिखा डाली कितने मरे मात्र १२ , सवा अरब की आबादी में १२ की गिनती भी कोई गिनती होती है और क्या इन १२ और उनके परिवारों के वोट ना देने से सरकारों को कई फर्क पड़ेगा छोडिये भी, हमारी सरकारों ने तो इन्हें कफ़न भी देने के लायक नहीं समझा |

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  6. अरे अब एक आधा धमाका तो बनता ही है..कितने तो रोक लिए और क्या करें.

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  7. समय प्रधानमंत्री जी के साथ नहीं रहा।

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  8. याद रखने के लिये आभार, सर।
    पहले लिखने में आनंद आ रहा था, अब पढ़ने का आनंद ले रहे हैं जी।
    संतुलन बनाने की कोशिश में हैं,देखिये सध जाये तो:)

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  9. @संजय जी - यह भी नशा ही है. मुझे भी बिना पढ़े रहा नहीं जाता. दो घंटे तो कम से कम चले ही जाते हैं और अच्छा भी लगता है.

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  10. संयम तो बनाये रखना होगा।

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.