एक बम क्या फट गया, मानों आफत आ गयी. जिसे देखो वही कट्टरपंथियों के हाथों खेलने लगा और अपनी भड़ास उतारने लगा. लेकिन मैं प्रधान जी के साथ हूं. वह हमारे देश के गौरवशाली अतीत और परम्पराओं का निर्वहन कर रहे हैं. विश्वास नहीं होता. अब देखिये, हमारे ही बड़े बूढ़े कह गये हैं कि गोली के घाव से भी अधिक तीखा होता है बोली का घाव. इसीलिये आतंक और आतंकवादियों तथा उनके मददगारों के विरुद्ध बोली का प्रयोग कर रहे हैं. बिल्कुल छलनी हो जायेंगे हमारे बयानों से. और हम आतंकवादियों को कोस भी तो रहे हैं. जब मरी खाल की श्वांस से लोहा भी भस्म हो जाता है तो हमारी आहों से ये आतंकवादी कैसे बच जायेंगे. रोज करें ऐसी कायराना हरकत. हम इन कायराना हरकतों से डरते नहीं हैं, देखा दिल्ली कहीं रुकी, मुम्बई कहीं रुकी. ये है हमारी जिन्दादिली. बयान संप्रेक्षण चालू आहे.
सही बात है, और क्या बच्चे की जान लेंगे?
ReplyDelete@संजय जी - आप कहां हैं आजकल, बहुत दिनों से कुछ नया नहीं पढ़ा आपके ब्लाग पर.
ReplyDeleteजिस तरह से बम धमाके हमारे देश में होते हैं और महामहिम को वे दिवाली के पटाखे नज़र आते हैं वह अत्यंत खेदजनक है। मरने वाले मासूम हमारी तरह आम हैं इसलिए हम उनका दर्द महसूस करते। महलों में रहने वाले अनाथ होने वालों का दर्द क्या समझेंगे। सत्ता के लालची अपनी बयानबाजियों से आत्मा तक छलनी कर देते हैं। झूठी सहानुभूति जले पर नमक के समान लगती है। उनके लिए तो उनकी प्रजा मात्र कीड़े-मकौड़े के समान है।
ReplyDeleteगोली न निकले न भी निकले, यहाँ तो बोली भी ठीक से नहीं निकलती। इस करेंसी के पीछे किसी गोल्ड रिज़र्व की बैकिंग नहीं दिखती।
ReplyDeleteअरे छोडिये आप भी छीटे मोटे धमाको पर एक पोस्ट ही लिखा डाली कितने मरे मात्र १२ , सवा अरब की आबादी में १२ की गिनती भी कोई गिनती होती है और क्या इन १२ और उनके परिवारों के वोट ना देने से सरकारों को कई फर्क पड़ेगा छोडिये भी, हमारी सरकारों ने तो इन्हें कफ़न भी देने के लायक नहीं समझा |
ReplyDeleteवचने किं दरिद्रता!
ReplyDeletekah to theek rahe hai pradhaan jee
ReplyDeleteअरे अब एक आधा धमाका तो बनता ही है..कितने तो रोक लिए और क्या करें.
ReplyDeleteसमय प्रधानमंत्री जी के साथ नहीं रहा।
ReplyDeleteयाद रखने के लिये आभार, सर।
ReplyDeleteपहले लिखने में आनंद आ रहा था, अब पढ़ने का आनंद ले रहे हैं जी।
संतुलन बनाने की कोशिश में हैं,देखिये सध जाये तो:)
@संजय जी - यह भी नशा ही है. मुझे भी बिना पढ़े रहा नहीं जाता. दो घंटे तो कम से कम चले ही जाते हैं और अच्छा भी लगता है.
ReplyDeleteसंयम तो बनाये रखना होगा।
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