Wednesday, February 2, 2011

आईटीबीपी भर्ती से लौट रहे लड़कों के साथ शाहजहांपुर में विकराल हादसा.

बरेली में आईटीबीपी में ट्रेड़मैन की भर्ती होना थी. जिसके लिये ग्यारह प्रान्तों से लड़के आये थे. एक लाख संख्या बताई जाती है. पिछले दो दिनों से बरेली में थे. इससे पहले सम्भवत: उनतीस तारीख से आला हजरत का उर्स था जिसके चलते भी पांच लाख जायरीन देश भर से आये थे. इतनी बड़ी भीड़ को नियन्त्रित करने के लिये ठोस और व्यापक इन्तजामों की आवश्यकता थी.
प्रशासन ने जायरीनों के लिये अच्छे इन्तजाम किये. वहीं आईटीबीपी में भर्ती के सिलसिले में प्रशासन ने बताया कि उन्हें कोई अग्रिम सूचना नहीं दी गयी थी, अत: कोई विशेष व्यवस्था नहीं हो सकी. दो दिन से भूखे-प्यासे लड़के, जो कि देश के विभिन्न प्रान्तों से आये थे, यह पता चलने पर कि इस पूरी प्रक्रिया में दो दिन का समय लगेगा, भड़क गये. और इसके बाद तोड़-फोड़, आगजनी की घटनायें घटित हुईं. यह ज्ञात हुआ कि आज वापसी के समय बरेली जंक्शन पर लड़कों की भीड़ ने वापस जाने हेतु रेलगाड़ियों में जगह न होने पर छत पर लटक कर यात्रा प्रारम्भ कर दी. जंक्शन पर भी लड़कों की झड़पें हुईं. पूरब की तरफ जाने वाली हिमगिरी एक्सप्रेस की छत पर यात्रा कर रहे लड़कों के साथ उस समय एक बड़ी हृदयविदारक दुर्घटना हुई, जब शाहजहांपुर जिले के रोजा से आगे एक पुल पर लड़के पुल से टकरा गये. कुछ लोगों का कहना यह भी है कि लड़के हाई टेंशन इलेक्ट्रिक वायर की चपेट में आने से मौत के शिकार बने. कोई दस लड़कों की मौत होने की बात कर रहा है तो कोई इसकी संख्या पैंतीस बता रहा है.
पहली बात यह कि आईटीबीपी अधिकारियों को अपने विज्ञापन में पूरी बात बताना चाहिये थी कि किस प्रकार भरती होगी और कितने दिन तक रुकना पड़ सकता है.
दूसरी बात यह कि आईटीबीपी को स्थानीय प्रशासन को इस पूरी प्रक्रिया के बारे में पहले से सूचित करना चाहिये था जिससे कि स्थानीय प्रशासन समुचित उपाय कर पाता.
तीसरी बात यह कि जब प्रशासन के संज्ञान में यह आ ही गया था कि इतनी बड़ी तादाद में लड़के आये हुये हैं तो प्रशासन को स्वयं पहल कर उनके आने-जाने की सुचारू व्यवस्था कराना चाहिये थी.
चौथी बात यह कि जब बरेली जंक्शन पर हालात बेकाबू हो चले थे तो स्थानीय प्रशासन को बरेली से उनकी रवानगी के लिये समुचित व्यवस्था कराना चाहिये थी.
पांचवी बात यह कि रेलवे अधिकारियों को भी इस घटना तथा परिस्थितियों का स्वत: संज्ञान लेते हुये कम से कम दो विशेष पैसेन्जर गाड़ियों की व्यवस्था करना चाहिये थी जिससे कि ये लड़के अपने गंतव्य को जा पाते तथा नियमित यात्रियों को भी असुविधा न होती.
छटी बात यह कि इन लड़कों को भी थोड़ा सा संयम बरतना चाहिये था, यदि दो दिन रुक सकते थे तो एक दिन और भी उसी तरह काटा जा सकता था.
सातवीं बात यह कि मारे गये लड़कों में से पता नहीं कौन कहां से आया था, किस आशा से आया था, उसकी पारिवारिक परिस्थितियां कैसी रही होंगी, कितनी जिम्मेदारियां रही होंगी उस के ऊपर, और अब उस के न रहने पर उसके घर पर क्या आलम होगा. यह क्षति एक निजी क्षति तो है ही, साथ ही में राष्ट्रीय क्षति भी है, इन नौजवानों की प्रोडक्टिविटी देश की अर्थव्यवस्था में कुछ न कुछ योगदान करती ही.
आठवीं बात यह कि भविष्य में इस प्रकार की घटनायें न हों इसके लिये केवल जुबानी लफ्फाजी से ही काम न लिया जाये बल्कि एक ठोस योजना बनाई जाये जिससे कि ऐसे हालातों को बनने से पहले ही रोका जा सके.
डिब्बों पर बिखरे हुये खून को देखकर दिल दहल रहा है. मांस के लोथड़े छितरे पड़े हैं. खून फैला हुआ है. सरकारी घोषणायें होने लगी हैं. मरने वालों की संख्या पर सरकारी आंकड़ेबाजी चालू है. पता नहीं व्यवस्थापक और शासक-प्रशासक कब संवेदनशील हो पायेंगे. ईश्वर मृतकों के परिवारी जनों को इस विपदा की घड़ी में इस भीषण हृदयाघात को झेलने की शक्ति दे.

27 comments:

  1. दुखद घटना। किसी सशस्त्र बल में शामिल होने के इच्छुक युवाओं से ज्यादा अनुशासन की अपेक्षा है, वहीं प्रशासन और नियोक्ता के बीच तालमेल रहता तो शायद ये न होता।
    हताहतों के प्रति सम्वेदना।

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  2. दिवंगत नौनिहालों को श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ!

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  3. दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजली. ये तो सरासर प्रशासन की लापरवाही ही है. एक किस्सा है जब में भी जोधपुर में एक परीक्षा देने पहुँचा तो पता चला के परीक्षा एक दिन बाद होगी, मेरे पास पैसे सिर्फ एक ही दिन के थे, एक दिन खाना खाया और रेलवे स्टेशन पर रात गुजारी, दूसरे दिन भूखा ही रहा...!

    बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, छात्रों का आक्रोशित होना लाजमी है.

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  4. दिवंगत आत्माओं को नमन .... अव्यवस्था का यह आलम ना जाने कब तक जानें लेगा
    कभी मंदिरों में और कभी भर्तियों में.....

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  5. ऐसे हादसे का समाचार पढ़ कर मुझे जिज्ञासा होती है कि क्‍या मुसाफिरों को पता नहीं था फुट ओवर ब्रिज या बिजली के तार के होने का. ट्रेन की छत पर सफर जैसी स्थिति पर हर हाल में आवश्‍यक होने पर पूरी सख्‍ती से नियंत्रण जरूरी है. फिलहाल तो हादसा हो चुका, अतः श्रद्धांजलि.

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  6. राजनीति( गंदी ) तारी हो गयी... दोनों जिम्मेदार हैं, लेकिन एक दू्सरे को बता रहे हैं..

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  7. sahi kaha aapne kintu is aur prashasan ki laparvahi aise hadso ko anjam deti hai aur prashasan thode samay jagrookta dikhakar phir shant baith jata hai aur yahi praverti ham logo ki bhi ban chuki hai.varna aise hadse na hote yadi ham is aur laparvah na hote aur udaseenta na baratte...

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  8. बहुत ही दुखद घटना। अब हर कोई अपनी गल्तियाँ दूसरे पर डालने की फिराक मेँ होगा। हर ऐसी घटनाओँ के बाद होनी वाली सरकारी घोषणाओँ के साथ कुछ सबक भी काश! लिये जाते।

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  9. ये कोई पहली घटना नहीं है खास कर जब भी किसी सुरक्षाबल में भर्ती की प्रक्रिया चलती है तो कई बार इस तरह के हालात पैदा हो चुके है और वहा भर्ती के लिए आये युवा ऐसे ही तोड़ फोड़ करते है ऐसे ही अव्यवस्था का आलम होता है किन्तु किसी एक घटना से सबका ले कर हम सुधार जाये तो भारतीय कैसे कहलायेंगे |हताहतों के प्रति सम्वेदना।

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  10. दुखद घटना है लेकिन प्रशासन को इस तरह की जानकारी पहले देनी चाहिये ताकि इसके उच्चित प्रबन्ध किये जा सकें। दिवंगत बच्चों को श्रद्धाँजली।

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  11. किसी मीडिया ने ख़ास तबज्जो नहीं दी इस खबर को जबकि यह इस देश की सरकार के लिए मिस्र से भी घातक खबर थी क्योंकि सारा मिस्मैनेज्मेंट इस सरकार का है !

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  12. उन में से शामिल लडको ने तबाही मचा दी थी बरेली में . आई टी बी पी से सटा हुआ मेरा गान्व है और सडक पर ही मेरा फ़ार्म .वह खौफ़नाक मंजर आज भी मै झेल रहा हूं किस तरह मै परसो अपने घर पहुचा . इन लडको ने सिर्फ़ ९ बसे दो ट्रक ,अन्गिनत मोटर साइकिल जलाई . उनमे सवार यात्रियो से मारपीट की महिलाओ और लड्कियो के साथ बालात्कार की हद तक छेडछाड की . सैकडो बीघा खडी फ़सल नष्ट कर दी . पचासो दुकाने लूट कर आग लगा दी .

    हमारे यहा के लोग कह रह है यह ईश्वर का त्वरित न्याय है

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  13. न जाने कितने स्तरों पर विफल होते हम सब।

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  14. A nice post on current hot topic.

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  15. दुःखद घटना। अखबार में पढ़ी थी ये खबर।
    आपकी आठों बातें महत्वपूर्ण हैं।

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  16. यही तो अफ़सोस की बात है हमारे देश में ... पहले इंतेज़ार करते हैं दुर्घटना होने की ...फिर आयोग बैठाते हैं ... नेताओं और प्रशाशण के ढंग ही निराले हैं ...

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  17. मुझे अपना युवावस्था का समय याद है। मैं अगर अकेला होता था तो जिम्मेदार होता था, ग्रूप में होने पर सभी वर्जनायें हवा हो जाती थीं। इन युवाओं के साथ वही हुआ।
    वे बहुत भले इंसान और सधे हुये नागरिक होंगे, पर भीड़ में अनुशासन, अपना और दूसरों की संरक्षा का ख्याल हवा हो जाता है!
    दुखद! :-(
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    और सिस्टम जो हैं, वे तो डिजास्टर के प्रति सदा गफलत में ही रहते हैं! :(

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  18. प्रशासन कों कोई फरक नहीं पड़ता। आम जनता की जान जाए तो जाए। सरकार की अकर्मण्यता की मिसाल ये हादसा ।

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  19. दिवंगत आत्माओं को नमन

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  20. रेलगाड़ियों में जगह न होने पर छत पर लटक कर यात्रा प्रारम्भ कर दी
    कैसे हम ऐसी नादानी कर बैठते हैं।
    हाँ प्रशासन की भूमिका यहाँ होनी चाहिये कि लोगों को रेल की छत पर यात्रा किसी भी सूरत में ना करने देते ।
    मगर क्या पूरा दोष प्रशासन को देना उचित होगा ।
    हमे कठिन परिस्थितियों मे संयम बनाये रखना चाहिये , जो शायद इस दुखद घटना मे शून्य हो गया था ।
    हम सभी को सबक लेना चाहिये ।
    दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि !!!

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  21. आज जनता सिर्फ हादसों के लिए ही बनी है शायद।

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    ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।

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  22. दुखद घटना।
    दिवंगत को श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ

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  23. बहुत दुखद है ...दिवंगत आत्माओं को ईश्वर शांति प्रदान करे ....

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  24. बात तो असीम दुःख की है उनके अभिभावकों के लिए !!

    लेकिन उस भीड़ ने बरेली में जो " तांडव " किया था, उससे जिनके घर और रोजगार उजड़े , दो पंक्तियाँ उनके लिए भी लिखी जाएँ.

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  25. @ अंकल ज्ञानदत्त जी,
    रेल विभाग क्यों नहीं हर माल गाड़ी में सेकंड क्लास के ४ डिब्बे डिब्बे जोड़ देता और उस पर लिख दे " मुफ्त सेवा " कम से कम लोग छत पर चढ़ कर अपनी जान तो नहीं जोखिम में नहीं डालेंगे.

    और वैसे भी इतने व्यस्त रूट पर नयी ट्रेन चलाना रेल विभाग के बस की बात नहीं रही अब !!!

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.