कल मेरे एक मित्र ने मुझसे संविधान की प्रस्तावना के बारे में पूछा था. उन्हें पूरी याद थी और मैं भूल चुका था. इसमें समाजवादी प्रभुत्व सम्पन्न, बन्धुत्व और गरिमा जैसे बड़े बड़े शब्द थे और आत्मार्पित करने जैसा गुरुतर दायित्व.
आज एक चौराहे पर दो लड़के मोटरसाइकिल से जा रहे थे, दीवान जी और सिपाही जी ने उन्हें रोक लिया. कागजातों में कोई कमी थी. जिस पर उस लड़के को यह मुर्गा बनने का लघुतम दन्ड देकर छोड़ दिया. दूर कई सज्जन(?) हंस रहे थे. बन्धुत्व और गरिमा संविधान की प्रस्तावना में शोभा बढा रहे थे.
शायद सब-इन्स्पेक्टर से नीचे का कोई पुलिस कर्मी कागजात चेक नहीं कर सकता लेकिन दीवान जी चेकिंग कर रहे थे . किस कानून के अन्तर्गत कागजातों में कमी होने पर मुर्गा बनाने का दन्ड आरोपित किया जा सकता है.
और यह सब वही पुलिस कर्मी होते हैं जिनके सामने धड़ल्ले से ओवर लोडिड आटो-बसें सड़कों को रौंदते हुये गुजरते रहते हैं.
संबिधान से कोई मतलब नहीं खाकी की गुंडई हाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (23-03-2014) को इन्द्रधनुषी माहौल: चर्चा मंच-1560 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खाकी की महिमा
ReplyDeleteसरजी, दूसरा पक्ष भी देखने योग्य है। चैकिंग के दौरान रोके जाने पर हर बार बाईक नहीं रुकती, कई बार लड़कों की बंदूक से गोली पुलिसकर्मी के शरीर में जाकर रुकती है वो भी बिना पद या ओहदे का लिहाज किये।
ReplyDeleteसंविधान की प्रस्तावना और कानून की धाराओं का उल्लंघन पुलिसकर्मियों को नहीं ही करना चाहिये लेकिन यह अपेक्षा समाज सिर्फ़ पुलिसकर्मी से ही रखे, यह भी स्वीकार्य नहीं। हम खुद भी कानून का सम्मान करें, अपने बच्चों को भी सिखायें। आने वाले समय में यही बच्चे हमारी जगह लेंगे।
लोकतन्त्र में दुखद दृश्य हैं ये।
ReplyDeleteबहुत खूब :)
ReplyDeleteअफसोसजनक हालात हैं.....
ReplyDeletehhmmm...
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