नैनों से
नैनों तक पहुंची
कितनी सुन्दर
भाषा प्रेम
दिल से
दिल के तार
जोड़ती
बस इतनी
परिभाषा प्रेम
लैला-मजनूं, मीरा-नटवर
सबके मन
की आशा प्रेम
चाँद-चकोरी, शमां-पतंगा
हर एक
की प्रत्याशा प्रेम
पत्थर के
दिल मोम बना
दे
कुछ ऐसी
ही भाषा प्रेम
चार दिनों
के इस जीवन
में
आँसू कभी
दिलासा प्रेम
जवां दिलों
के मीठे सपने
सबकी यह
अभिलाषा प्रेम
मन से
मन का है
ये नाता
न तन
की जिज्ञासा प्रेम
धर्म का
बंधन देश की
सीमा
सबसे है निरबासा प्रेम...
सच हर मन की भाषा, हर मन की आशा है प्रेम..... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रेम के सारे कोण आपने प्रस्तुत कर दिये... परमात्मा की सबसे बड़ी देन!!
ReplyDeleteप्रेम धुरी है, विश्व घूमता है।
ReplyDeleteबदले बदले से सरकार नज़र आते हैं :)
ReplyDeleteपते की बात है प्रभु!!
सुन्दर ।
ReplyDeleteमन से मन का है ये नाता
ReplyDeleteन तन की जिज्ञासा प्रेम
धर्म का बंधन देश की सीमा
सबसे है निरबासा प्रेम
… बहुत सही कहा आपने... …
सुन्दर रचना !
प्रेम के विषय में जितना कहा जाय उतना कम..सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDeletebahut khoob .......
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDelete