Sunday, March 3, 2013

पड़ोसी के यहाँ आग लगे, हमें क्या!


हम भारतीय बहुल एक विशेष मानसिकता या कहिये कि भ्रम में जीने के आदी हो गये हैं. वह भ्रम है कि हम लोग जिस मकान में रहते हैं वह बिल्कुल बम-गोला-दुर्घटना प्रूफ है. हमारे पड़ोसी के साथ भयंकरतम हादसा हो सकता है लेकिन हमारे साथ नहीं. इसलिये बिल्कुल निश्चिन्तता का जीवन इस तरफ से व्यतीत करते हैं, लेकिन जब वही सबकुछ हमारे ऊपर बीतता है तो हर एक को कोसते नजर आते हैं. समाज को, अन्य व्यक्तियों को, सरकार को, शासन-प्रशासन को.
और यह मानसिकता अभी की नहीं, सदियों पुरानी है. सोमनाथ पर आक्रमण को लेकर लिखी गयी एक पुस्तक को पढ़ते समय ऐसा लग ही नहीं रहा था कि आज से सैकड़ों वर्ष पहले की घटनाओं और परिस्थितियों में किंचित अन्तर है. वही निश्चिन्त लोग, वही सोच कि सोमनाथ में आतताई आ ही नहीं सकते. कितने दर्रे, कितने पहाड़, भीषण रेगिस्तान पार कर के आखिर कौन आयेगा सोमनाथ तक. बीच में कितने ही राज्य पड़ेंगे, कितने ही राजे-महाराजे तैयार होंगे उनसे निपटने के लिये. लेकिन सोमनाथ पर हमला हुआ, कितनी बार हुआ, उन हमलों में आतताइयों ने क्या किया, सब कुछ इतिहास में दर्ज है.
और बिल्कुल वैसा ही अब हो रहा है. बम-विस्फोट होते हैं, एक दिन की सुगबुगाहट के बाद फिर वही चुप्पी. बांग्लादेश में एक आतताई को फांसी के विरोध में निर्दोषों की बलि, लेकिन फिर वही चुप्पी. एक आदमी भला दूसरे के ऊपर क्रूरता कैसे कर सकता है? क्या अधिकार है उसे? लेकिन हम लोग बोलना तो दूर सोचना तक नहीं चाहते. क्यों? इसलिये क्योंकि हमें लगता है कि जो आग पड़ोसी के घर में लगी है वह हमारे घर तक नहीं पहुँचेगी. और अगर उस आग के बारे में सोचेंगे तो कुछ करना पड़ेगा और हम करें क्यों, क्योंकि आग तो पड़ोसी के घर में है. लेकिन जब आग हमारे घर में लग जाती है तो हम सबकी ओर नजर उठाकर अपेक्षा करते हैं कि वे हमारा साथ दें.
इतिहास साक्षी है कि वह अपने लिये दुहराता भी है, फर्क समय, स्थान और व्यक्तियों का हो सकता है. यह बात भी पूरी तौर पर सही है कि जो लोग इतिहास को याद नहीं रखते, इतिहास उन्हें याद रखने लायक नहीं छोड़ता. आज हम भले यह मानकर चुप्पी साध लें कि जो बम हैदराबाद में फटे हैं वे हमारे यहां नहीं फट सकते, जो आग बांग्लादेश में लगी है वह हमारे यहां नहीं आ सकती, लेकिन सही बात यह है कि यदि हम भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति देते रहे तो एक न एक दिन यह परिस्थितियां हम सभी के सामने होंगी और उस समय हमारे पास पछतावे के सिवा कुछ न होगा.

15 comments:

  1. आँख बंद कर सो जाने की प्रता बहुत पुरानी है, जब तक स्वयं का घर नहीं जलता है, जूँ तक नहीं रेंगती इन तथाकथित मानवतावादियों की।

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  2. बिल्कुल सही बात कही आपने!
    यही तो हो रहा है!

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  3. सोचने की बात है कि हम अपनी क्रूर लापरवाही के चलते हम बार बार उन्हीं कुचक्रों मे फँसते जा रहे हैं जिनसे पहले भी कितनी ही बार दो-चार हो चुके हैं

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  4. अपने सर पर नहीं पड़े तब तक कोई सोचना नहीं चाहता !

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  5. इतिहास उन्हें याद रखने लायक नहीं छोड़ता. आज हम भले यह मानकर चुप्पी साध लें कि जो बम हैदराबाद में फटे हैं वे हमारे यहां नहीं फट सकते, जो आग बांग्लादेश में लगी है वह हमारे यहां नहीं आ सकती, लेकिन सही बात यह है कि यदि हम भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति देते रहे तो एक न एक दिन यह परिस्थितियां हम सभी के सामने होंगी और उस समय हमारे पास पछतावे के सिवा कुछ न होगा .

    Bilkul such. Achcha hoga ki samay rahte hum che jayen.

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  6. गजब तो यह कि अब बिना हंगामे के कोई बात सुनी ही नही जाती । स्वार्थ व भ्रष्टाचार हद पर पहुँच रहा है । बहुत ही अच्छा चिन्तन ।

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  7. पिछले हफ़्ते इसी बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने एक ब्लॉगर को जान से मार दिया, उसने फ़ेसबुक पर खुद को नास्तिक घोषित करती पोस्ट्स डाली थीं।

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  8. बिल्कुल सही चिंता है आखिर इसका असर तो आगे पीछे होना ही है, सटीक चिंतन.

    रामराम.

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  9. यही 'पडोसी' वाली मानसिकता ही तो सब ले डूबेगी! अज्ञानता और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा।

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  10. भारतीय नागरिक जी को होली की अनंत शुभकामनाएँ

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  11. बेशक सटीक बात की है आपने

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  12. इस प्रकार की मानसिकता का विकसित होना अहितकारी ही है.
    लेकिन इसके विकसित होने का कारण क्या है?शायद संवेदनहीनता का बढ़ना और संवेदनहीनता का बढ़ना क्यूँ है?सवाल कई हैं ..समाजशास्त्रियों के लिए चिंतन का विषय है.

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