धार्मिक कार्यक्रमों के नाम पर नदियों में कचरा फैलाना भी अनुचित है और उद्योगों द्वारा जो नदियों में जहरीला अपशिष्ट मिलाया जाता है वह भी अक्षम्य अपराध है. मेरे एक सम्बन्धी ने बताया है कि अमेरिकी समुद्र में "एक बूंद" जी हां आप एक बूंद भी तेल की नहीं गिरा सकते. ऐसा नहीं है कि हमारे देश में कानूनों की कमी है, कोई न कोई नियम-कानून तो हर किसी मामले पर होगा, लेकिन लागू करवाने वाले कैसे हैं, यह मुद्दे की बात है. वह भी शीर्ष पर. अब यह मत कहियेगा कि जिम्मेदारी तो जनता की भी है, स्वयं ही रेग्युलेट होना चाहिये. अगर सभी लोग स्वयं ही रेग्युलेट हो जाते तो फिर किसी भी सरकारी गैर-सरकारी नियमन/विधेयन की आवश्यकता ही नहीं होती. फिर यदि लोग स्वत: अनुशासित हो जायें तब भी उद्योग जो प्रदूषण फैला रहे हैं तथा सीवेज की गन्दगी जो हमारी नदियों में मिलाई जा रही है, उसका क्या?
अंधविश्वास ने मार दिया इन्हें, ये लोग नहीं समझ पायेंगे कि एक- पाप को धोने की जुगत में ये दूसरा पाप कमा रहे हैं! पता नहीं कब समझ पायेंगे !
ReplyDeleteजी, वही तो. लोग न जाने क्यों यह नहीं समझते कि वह गंगा को दूषित कर रहे हैं.
Deleteइस विषय में तो नागरिकों की सोच ही काम कर सकती है..... ऐसी बातें हमें पश्चिमी देशों से सीखनी चाहिए.....
ReplyDeleteजी, आपने ठीक कहा, लेकिन उनकी जिम्मेदारी अधिक है जो सिर्फ इसी काम के लिये नियुक्त किये गये हैं.
Deleteहम स्वयं अनुशासित नहीं हो सकते यह मेरा अनुभव है. देखिये हम लोग जब सिंगापूर जाते हैं, मजाल है कि हम कागज़ का एक टुकड़ा भी सड़क पे फेंक दें. कारण? वहां का प्रशासन तंत्र इन मामलों में असहिष्णु है. इसलिए हम नियमों का पालन करते हैं. परन्तु अपने देश में? वास्तव में हम इतने अधिक स्वतंत्र हो गए हैं कि किसी का डर नहीं रहा. हमें अनुशासित करने वाला कोई है ही नहीं और है भी तो उसे ठेंगा बता देते हैं.
ReplyDeleteवही कि अनुशासन आये कैसे, जब तक ज़ीरो टालरेन्स नहीं होगा, यही सब कुछ होता रहेगा. और ज़ीरो टालरेन्स तभी आयेगा जब ऊपर से प्रारम्भ होगा.
Deleteसच है, प्रशासन लगभग हर फ़्रन्ट पर फ़ेल सा हो गया है।
Deleteसब मिलकर गंगा में गन्दगी ढो ढो डाल रहे हैं..
ReplyDeleteवही गंगा जो देश की लाइफलाइन और गंगा मैया कहलाती है, में गन्दगी का प्रवाह. सुनते हैं कि गंगोत्री से थोड़ा सा आगे बढ़ने से ही इसकी शुरुआत हो जाती है.
Deleteधर्म को पर्यावरण\नदियों के साथ जोड़ना ही है तो संत सींचेवाल जी से प्रेरणा ली जा सकती है। एकाधिक जगह पर इनके बारे में पहले भी कमेंट किया है। एक लिंक आप भी संभालिये :)
ReplyDeletehttp://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%88-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%88
बिल्कुल सही फरमाया आपने, लिंक के लिये आभार.
Deleteउफ़ ...पश्चिम की होड काश इस मामले में भी कर लेते हम.
ReplyDeleteजी, वाकई..
Deleteहमारे देश में पढ़े लिखे गवारों की संख्या भी कम नहीं है। ये सब उसी का परिणाम है । ऊपर से कांग्रेस जैसी धूर्त सरकार है , जिसके चलते किसी भी विभाग में अनुशासन की अपेक्षा रखना व्यर्थ ही है।
ReplyDeleteपढ़े लिखे अनपढ़ों से ही अधिक दिक्कत होती है.
Deleteऐसा नहीं हैं कि लोग समझते नहीं लेकिन हर कोई ये ही सोचकर लापरवाह हो जाता हैं कि केवल मेरे सुधरने से ही क्या होगा,बाकी लोग भी तो नदियों को दूषित कर रहे हैं.पर आपका कहना सही हैं कि इसमें प्रशासन की जिम्मेदारी ज्यादा महत्तवपूर्ण हैं तभी लोग लाईन पर आएँगे.
ReplyDeleteजी, आपका धन्यवाद.
Deleteसब मिलकर गंगा में गन्दगी ढो ढो डाल रहे हैं..
ReplyDeleteयही तो अफसोस है.
Deleteजर्मनी ओर पुरे युरोप मे गंदे नालो ओर मिलो फ़ेकटरी के वेस्ट पानी को पहले फ़िलटर किया जाता हे फ़िर नदी मे डाला जाता हे, ओर हर महीने पानी की उच्चत्मता नापी जाती हे, मजाल हे आप नदी मे एक तिनका भी डाल दो, लेकिन भारत मे आप घर क्या शहर का कुडा डालो गंदे नाले डालो. अस्पताल का वेस्ट पानी बिना फ़िलटर किये डालो... अजी मोजा ही मोजा... लोगो को इतनी समझ नही कि इस पानी को पियेगा कोन?
ReplyDeleteयहां के अधिकारी यूरोप तो जा सकते हैं इसे सीखने के लिये, लेकिन लागू नहीं करा सकते.
Deleteहमें खुद तो समझने की ज़रूरत है ही, मगर वह पूरी तस्वीर का एक नन्हा सा पहलू है। प्रशासन की भी अपनी ज़िम्मेदारी है जिस पर गम्भीरता से बहुत काम करने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteजी, बिलकुल, मैं भी यही कहना चाहता हूँ कि स्व-अनुशासन का महत्त्व तो कम हो ही नहीं सकता, लेकिन जहाँ अनुशासनहीनता चरम पर हो, वहाँ शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.
Deleteमैंने इस पोस्ट पर पहले ही टिप्पणी की थी। स्पैम में गई लगती है।
ReplyDeleteस्पैम में नहीं है. शायद सेव ही नहीं हो पाई होगी वह टिपण्णी.
Deleteचित्र काफी है कहने के लिए नदियों की हालत के बारे में......शासन को औऱ ज्यादा कड़ा होना होगा..कुछ काम ऐसे होते हैं जिसके बारे में स्वअनुशासन नहीं आता आसानी से....जरुरी है कि प्रशासन को हर हाल में कड़े कदम उठाने होंगे..वरना हालत नहीं सुधरेंगे
ReplyDeleteजहां भी थोड़ा सा लाभ होता है या सुविधा होने की सम्भावना होती है, वहाँ हम लोग नियमों की धज्जियाँ उड़ाने से बाज नहीं आते. धन्यवाद.
Deleteडर है,गंगा की निर्मलता कहीं तस्वीरों में ही सिमट कर न रह जाए।
ReplyDeleteकई जगह तो बिलकुल काला हो चुका है पानी.
Deleteगन्दगी फ़ैलाने वालों के लिए कड़े कानून का डर न होना भी इसकी एक बड़ी वजह है. कानून और फाइन का डर हो तो आदमी ऐसा करने से पहले दस बार सोंचेगा. विचारनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबिलकुल, अभी तो हम लोग भय बिनु होय न प्रीत का अनुगमन करते हैं.
Deletesach mein dukhad baat hai...kanun vyavstha mein sudhar aur uska sakhti se palan ati aavashyak hai.
ReplyDeleteअब जब ऊपर से ही व्यवस्था गडबड हो तो कैसे काम चले.
Deleteअपने यहां सच में स्थिति बड़ी भयावह है।
ReplyDeleteजी, बिल्कुल सच कहा आपने.
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