जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
क्षमासहित बयान..
ReplyDeleteअजी शेषण के दिन गए!
ReplyDeleteऔर क्या..ठीक तो है.
ReplyDelete☺
ReplyDeleteबस यही हो सकता है.....
ReplyDeleteसच है, देश को एक और सेशन की ज़रुरत है.
ReplyDelete@ smart indian-आज आपका कमेन्ट स्पैम में नहीं गया, यह देखकर अच्छा लगा, वर्ना हर बार स्पैम में पहुँच रहा था...
ReplyDeleteआख़िरकार कुरेशी साहब ने भी अपना कर्ज अदा कर दिया !:)
ReplyDeleteखेदीपरसाद जी कल यह चिठ्ठी भेजेंगे आयोग को!
ReplyDeleteगुंडों की सरकार के पास हथियार अनेक हैं और जनता निहत्थी है बेचारी...
ReplyDeleteहा हा हा ... मजेदार ...
ReplyDeleteये तो अग्रिम जमानत लेकर अपराध करने जैसा हुआ। :)
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