जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
बढ़िया , आखिरी चित्र में पहाडी सीढ़ी नुमा खेत से लग रहे है
ReplyDeleteपहाड़ पर बहुत मेहनत करनी पड़ती है खेती करने के लिये...
Deleteमुझे हमेशा से सीढ़ीदार खेत बहुत अच्छे लगते हैं.
Deleteसुन्दर चित्र!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर नहीं आ सका, जिसके लिये क्षमा...
Deleteकरिश्मा कुदरत का...
ReplyDeleteदुःख, हम लोग कुदरत से दूर होते जा रहे हैं...
Deleteदेखा, देखता रहा...
ReplyDeleteजी,आपका बहुत धन्यवाद.
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.
Deleteआहा कितना सुन्दर. प्रकृति की लीला अतुलनीय है.
ReplyDeleteजी, सहमत.
Deleteविस्तृत समुद्र सा..
ReplyDeleteबिलकुल वही..
Deleteहवा और रेत की आँखमिचौली - सुन्दर कलाकृतियाँ!
ReplyDeleteरेत के अपरदन से हवा चित्र उकेर ही देती है.
Deleteकरिश्मा समुद्र सा..अतुलनीय,सुन्दर
ReplyDeleteवाकई समुद्र सा ही लग रहा था.
Deleteखूबसूरत छायांकन.... वाह!!
ReplyDeleteसादर.
जी, धन्यवाद.
Deleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteशुक्रिया... संजय जी.
Deleteनयनाभिराम नजारा..
ReplyDeleteधन्यवाद.
Deleteरेतीले मन पर उभरते चित्र , कुछ कहते हुए, कुछ समझाते हुए, कुछ याद दिलाते हुए....
ReplyDeleteजी, बिल्कुल, प्रकृति की कूंची है ही ऐसी.
Deleteबहुत सुन्दर चित्र!
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद.
Deleteवाह - बहुत ही सुन्दर चित्र | एक कविता की पंक्तियाँ याद आ गयीं - जिसमे कहा गया था - पीछे जाती लहरें रेत पर साँपों (सी धारियां ) छोड़ जाती हैं |
ReplyDeleteयहाँ इस रेत पर दिखती यह धारियां, जाने पानी की लहरियों ने खीची, या के हवा के झोंकों ने ?
चित्रकारी किसी की ही क्यों न हो, चित्र बड़े सुन्दर बन पड़े हैं |
धन्यवाद, महान चित्रकार है वह अनन्त.
Deleteरेट के ऐसे सामुन्दर तो हमारे दुबई में खूब नज़र आते हैं ... लाजवाब फोटो हैं सभी ...
ReplyDeleteशायद दुबई में तो हरियाली भी खूब हो गयी है. धन्यवाद.
Deleteक्या कलाकारी है रेत पर प्रकृति की।
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