जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
सही बात है, यहाँ शांति चाहिए किसको......?
ReplyDeleteकैसे मिले भला, इतना उत्पात होने के बाद
ReplyDeleteअगर एक को दिया तो कहीं लाइन न लग जाए, शायद यही डर रहा होगा स्वीकार करने में ☺
ReplyDeleteहा-हा-हा राक्षसों से ऐसी उम्मीद, हरगिज नहीं !
ReplyDeleteशांति का आधुनिक मूल मंत्र है - खाओ और खाने दो! :)
ReplyDeleteअच्छा है कि दुनिया कांग्रेस का चरित्र देखे।
ReplyDeleteइतनी बड़ी अशांति के बाद शांति पुरस्कार की उम्मीद... इस राज में तो बिलकुल नहीं.
ReplyDelete:)
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