जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत जरुरत है सभी जगह इस मैडम ने अपने टटपूंजे पाले रखे है !
ReplyDeleteप्रयास जारी आहे..
ReplyDeleteजब बात गांधी परिवार की हो, तो सब कुछ जायज है। वे कानून से ऊपर हैं, शायद फीनिक्स की राख से जी उठी दुर्लभ संतति हैं।
ReplyDeleteबस, जल्दी ही होगा - सभी दल चाहते हैं यह पर कतरना! :-)
ReplyDeleteकुछ तो करना ही होगा.
ReplyDeleteअभी भी चुनाव सुधार की आवश्कता है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,अच्छी प्रस्तुति,.....
पोस्ट पर आने के लिए बहुत२ आभार
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
लोकपाल की तो देखी जायेगी, पहले चुनाव आयोग को ही देखा जायेगा..
ReplyDeleteहां अब लागू कर सकते हैं चुनाव सुधार आयोग। :)
ReplyDelete