जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
गुलाब का फूल है हमारा पढ़ा – लिखा मैंने उसे काफी उलट-पुलट कर देखा है मुझे तो वह ऐसा ही दिखा सबसे बड़ा सबूत उसके गुलाब होने का यह है कि वह गाँव में जाकर बसने के लिए तैयार नहीं है
गाँव में उसकी प्रदर्शनी कौन कराएगा वहाँ वह अपनी शोभा की प्रशंसा किससे कराएगा वह फूलने के बाद किसी फसल में थोड़े ही बदल जाता है
मूरख किसान को फूलने के बाद फसल देने वाला ही तो भाता है
@आशुतोष जी - मुझे भी गेंहू और गुलाब याद आ गया.. @संजय जी - आनंद आ गया, शेर पूरा कीजिए.. @गोदियाल जी - क्या खूब गीत सुझाया है.. @पाण्डेय जी - कली तो खिल गई, पर अफसोस फूल का फोटो न ले पाया.. @डा० श्रीवास्तव जी, शर्मा जी और शास्त्री जी - आप सभी लोगों का आभार...
वाह! दम साध कर इंतजार करें कली के पूरा खिलने का!
ReplyDeleteसुन्दर।
मन की आह्लादित करता प्रकृति का अद्भुत सौन्दर्य ..
ReplyDeleteएक पुराना गीत याद आ गया ; ये कली जब तलक फूल बनके...........:)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteभवानीप्रसाद जी की एक कविता याद आ गयी
ReplyDeleteगुलाब का फूल है
हमारा पढ़ा – लिखा
मैंने उसे काफी
उलट-पुलट कर देखा है
मुझे तो वह ऐसा ही दिखा
सबसे बड़ा सबूत
उसके गुलाब होने का यह है
कि वह गाँव में जाकर बसने के लिए तैयार नहीं है
गाँव में उसकी प्रदर्शनी कौन कराएगा
वहाँ वह अपनी शोभा की प्रशंसा किससे कराएगा
वह फूलने के बाद किसी फसल में थोड़े ही बदल जाता है
मूरख किसान को फूलने के बाद फसल देने वाला ही तो भाता है
कि आतिश गुल को करती है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता.........................
ReplyDelete@आशुतोष जी - मुझे भी गेंहू और गुलाब याद आ गया..
ReplyDelete@संजय जी - आनंद आ गया, शेर पूरा कीजिए..
@गोदियाल जी - क्या खूब गीत सुझाया है..
@पाण्डेय जी - कली तो खिल गई, पर अफसोस फूल का फोटो न ले पाया..
@डा० श्रीवास्तव जी, शर्मा जी और शास्त्री जी - आप सभी लोगों का आभार...
खूबसूरत चित्र, स्कूल में पढी एक और कविता याद आ गयी -
ReplyDeleteअबे, सुन बे गुलाब
भूल मत जो पाई खुशबू रंगोआब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा है कैपिटलिस्ट ...
वाह..गुलाब..
ReplyDeleteसचमुच बहुत सुन्दर हैं! जैसा मुझे अच्छा लगता है कि केवल फ़ूल ही फोकस में हो और आसपास सब फोकस से बाहर हो, बिल्कुल वैसे! :)
ReplyDeleteकाँटों के बीच खिल के भी गुलाब गुलान ही है ...
ReplyDeleteलाजवाब फोटो हैं सभी ...
अदभुद
ReplyDeleteगुलाब के फ़ोटो और भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविया बहुत सुन्दर है।
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