जब बात होती थी मकबूल फिदा हुसैन की, तो हमारे यहाँ बड़े बड़े नेता, समाजसेवी, पत्रकार धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए रुदन करने लगते थे कि हुसैन का विरोध करने वाले फासिस्ट हैं, नाजी हैं. ऐसे ही कई स्वनामधन्य पत्रकार, नेता, समाजसेवी और कई बहुत पढ़े लिखे लोग तथा एकाधिक विशेष ग्रुप से सम्बन्धित व्यक्ति, हुसैन द्वारा बनाई गई देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरों का खुला समर्थन करते थे और अभी भी करते हैं तथा हुसैन द्वारा बनाई गई ऐसी पेंटिंगों का विरोध करने वाले लोगों पर हर प्रकार से वार करने पर उतारू रहते थे. उनका कहना होता था कि ये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है, संविधान में दी गई स्वतंत्रता का हनन है. लोगों को कला की समझ नहीं है, वगैरा.
किन्तु बात जब सलमान रुश्दी या तस्लीमा नसरीन की आती है तब यह लोग सामने नहीं आते. पता नहीं उस समय ये लोग वैसे ही अभिव्यक्त करने में क्यों परहेज करने लगते हैं? क्या सलमान रुश्दी के भारत आने का विरोध और भारत आने से रोकना संविधान में दी गई स्वतंत्रता पर हमला नहीं है. क्या तस्लीमा नसरीन की भारत यात्रा का विरोध और उन पर सैकड़ों लोगों के सामने किया गया हमला, भारतीय संविधान पर सीधा हमला नहीं है? क्या सलमान रुश्दी को अपनी बात कहने से बलात् रोकना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सीधा सीधा हनन नहीं है? क्या तस्लीमा नसरीन को अपने विचार व्यक्त करने से जबरन रोकने वाले फासिस्ट नहीं हैं? हर चीज के लिए यहाँ अलग पैमाने गढ़ लिए गए हैं, अपनी सुविधानुसार. और यही पैमाने एक दिन सम्पूर्ण विनाश का कारण बनते हैं, देखते है कि कितने दिनों हम इन अलग अलग पैमानों पर चलकर अपने लिए विनाश से बचा सकते हैं.
एकदम सही कहा। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सीधा सीधा हनन करने वाले ही उसके नाम पर नारेबाज़ी करते हैं। अफ़सोसजनक बात है कि रश्दी की पुस्तक पर पहला प्रतिबन्ध भारत सरकार ने ही लगाया था और अब देवबन्दी उनके अपने देश में आने का कड़ा विरोध कर रहे हैं। सच यही है कि देश में सही-ग़लत का विवेक मिटकर मेरा-तेरा की भावना ही बलवती होती जा रही है।
ReplyDeleteअपने अपने स्वार्थ
ReplyDeleteबहुत सही और सटीक!
ReplyDeleteसाधक क्या साध रहें हैं, कौन जाने...
ReplyDeleteआपकी बात से असहमति तो इन कुटिलों को भी नहीं होगी लेकिन उनकी मजबूरी है की उन्हें अपना पेट भरना है! इन टुच्चों की बात जितनी न ही करे उतना अच्छा ! भूखे-नंगों को खाना दीखता है और वे सेक्युलारी लवादा ओढ़कर दौड़ पड़ते हैं !
ReplyDeleteदेश गुलाम क्यों हुआ था, इन्ही जैंसे टुच्चों की वजह से !
यह सब पहले भी था,आगे भी रहेगा। फ़र्क़ केवल इतना है कि अब मीडिया आ गया है।
ReplyDeleteइस देश में पावर मूर्खों और उलटी खोपड़ी वालों के हाथ में हैं अतः इस प्रकार के उलूल-जुलूल प्रकरण सामने आते रहेंगे! दोहरी मानसिकता से ग्रस्त इस बीमार सरकार का इलाज बहुत जरूरी है , इससे पहले की समस्त जनता रुग्ण हो जाए !
ReplyDeleteबहोत अच्छे ।
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
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एम.एफ़.हुसैन गलत था तो रुश्दी भी गलत है, और अगर वो सही था तो ये भी सही होना चाहिये..
ReplyDeleteयही तो दुखद है ...सब कुछ अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए ही होता है.......
ReplyDeleteIsko vot ki shakti kahte hain ... jiska upyog devband jaise sansthaan baakhoobi karte hain ...
ReplyDeletesahi vichar.
ReplyDeleteइस बारे में जैसा अंदाजा था वही हो रहा हैं.अब रश्दी का विरोध करने से न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई आँच आ रही हैं और न कट्टरपंथ हावी हो रहा हैं.जबकि हुसैन के कतर चले जाने पर आज भी हाय तौबा मचाई जाती हैं जबकि उन्होने अपने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि वे टैक्स बचाने के लिए भारत से चले गए थे.
ReplyDeleteपक्का मत नहीँ बना पाया हूं। :(
ReplyDeleteएकदम सही कहा।
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