जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
सही बात है, ये तो चुनाव आयोग के ही प्रचारक हुए न... काहे पैसा मीडिया को देकर वेस्ट किया जाए, मतदाता तक डायरेक्ट ही बात व पैसा दोनों सीधे पहुच जाएगा इस तरह
सार्थक कोशिश:)
ReplyDeleteसही है, इण्डिया अगेंस्ट करप्शन! इंडिया फ़ॉर प्रमोशन ऑफ़ डेमोक्रेसी!
ReplyDeleteवोटरों को प्रोत्साहित तो करना पड़ता है।
ReplyDeleteलोकतंत्र को प्रोत्साहन !
ReplyDeleteहम सब प्रोत्साहन प्रेमी जो ठैरे.
ReplyDeleteसही बात है, ये तो चुनाव आयोग के ही प्रचारक हुए न... काहे पैसा मीडिया को देकर वेस्ट किया जाए, मतदाता तक डायरेक्ट ही बात व पैसा दोनों सीधे पहुच जाएगा इस तरह
ReplyDeleteजबर्दस्त!!सही बात है
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