उसकी आंखों में समंदर सा उतर आया था,
डूब जाता न भला और तो क्या करता मैं .
कोशिशें कर न सका उसको भूल पाने की
जिस्म से रूह कहीं यूं भी जुदा होती है.
याद आता रहा वो महफिल-ओ-तन्हाई मे
इश्क क्या चीज है जो दिल में उतर जाती है.
खाने को मयस्सर हुए न निवाले दो उसको
तेरी दुनिया में बसर यूँ भी खुदा होती है.
सुन्दर भाव हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छे महाराज । बढिया हैं सब के सब
ReplyDeleteहे भगवान,क्या गत है इश्क वालों की।
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteखुशनसीब होते हैं जिन्हे ऐसा समन्दर मिलता है डूबने उतरने को।
ReplyDeleteआप खोये रहें सुन्दर कल्पनाओं में..
ReplyDeleteउसकी आंखों में समंदर सा उतर आया था,
ReplyDeleteडूब जाता न भला और तो क्या करता मैं .
वाह, हर मिसरे में अनगिनत पैगाम छुपे बैठे है,
यहाँ गुदड़ी में मीर और खैयाम छुपे बैठे है !
कोशिशें कर न सका उसको भूल पाने की
ReplyDeleteजिस्म से रूह कहीं यूं भी जुदा होती है....
आज कुछ अलग मूड है आपके ब्लॉग का ... लाजवाब शेर नज़र आ रहे हैं ... बहुत खूब ..
यूं ही में भी इतना !!!
ReplyDelete☺
bahut achchhi anubhuti hai.
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