Tuesday, January 17, 2012

बस यूं ही.


उसकी आंखों में समंदर सा उतर आया था,
डूब जाता न भला और तो क्या करता मैं .

कोशिशें कर न सका उसको भूल पाने की
जिस्म से रूह कहीं यूं भी जुदा होती है.

याद आता रहा वो महफिल-ओ-तन्हाई मे
इश्क क्या चीज है जो दिल में उतर जाती है.

खाने को मयस्सर हुए न निवाले दो उसको
तेरी दुनिया में बसर यूँ भी खुदा होती है.

10 comments:

  1. सुन्दर भाव हैं.

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  2. बहुत अच्छे महाराज । बढिया हैं सब के सब

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  3. हे भगवान,क्या गत है इश्क वालों की।

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  4. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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  5. खुशनसीब होते हैं जिन्हे ऐसा समन्दर मिलता है डूबने उतरने को।

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  6. आप खोये रहें सुन्दर कल्पनाओं में..

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  7. उसकी आंखों में समंदर सा उतर आया था,
    डूब जाता न भला और तो क्या करता मैं .

    वाह, हर मिसरे में अनगिनत पैगाम छुपे बैठे है,

    यहाँ गुदड़ी में मीर और खैयाम छुपे बैठे है !

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  8. कोशिशें कर न सका उसको भूल पाने की
    जिस्म से रूह कहीं यूं भी जुदा होती है....

    आज कुछ अलग मूड है आपके ब्लॉग का ... लाजवाब शेर नज़र आ रहे हैं ... बहुत खूब ..

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मैंने अपनी बात कह दी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है. अग्रिम धन्यवाद.