जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
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ReplyDeleteतस्वीरों ने सब कह दिया !
Alas !
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(अब) दल्ले के बाप की जागीर जो है वो !
ReplyDeleteare....re.....re....re....ye kyaa kar diyaa aapne ji.......!!
ReplyDeleteझन्डा फ़हराने और रोकने की कवायत सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीति है . मुरली मनोहर जोशी ने भी फ़हराया था उसके बाद ६ साल मन्त्री रहते हुये तो कभी नही गये वहा
ReplyDeleteराजनीति के घाट पर भई --- की भीड़।
ReplyDeleteतस्वीरों ने सब कह दिया !
ReplyDeleteगम्भीर चित्रण!!
ReplyDeleteतस्वीरे बोलती हैं ... दास्ताँ ....
ReplyDeleteभाई यासीन मालिक जी सपना देख रहे होंगे........... देख लेने दो सुबह तो होगी ही.
ReplyDeleteचित्रों ने सब कुछ सीधे-सीधे बयाँ कर दिया है।इसके चलते आपका पोस्ट किसी भी टिप्पणी का मोहताज नही है। पोस्ट अच्छा लगा।धन्यवाद।
ReplyDeleteसचमुच, तस्वीरें भी बोलती हैं।
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ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेखा,टोने-टोटके।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है ?
... kyaa kahne !!
ReplyDeleteजोरदार !
ReplyDeleteकुछ कहना बाकी है क्या
ReplyDeleteआजादी, धर्मनिर्पेक्षता, मानवाधिकार, स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति, अलाना, फ़लाना सब इनके समर्थन में जो हैं।
ReplyDeleteइम्फ्लेमेबल्स अलाउड नहीं! जो वहां पहले से हैं, उन्हे फ्लश आउट कौन करेगा?! :(
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