पुस्तकों में लोगों का रुझान लगभग समाप्त होता जा रहा है. पठन पाठन की स्थितियां भी आज से दस पंद्रह पूर्व जैसी थीं, वैसी नहीं रहीं. बच्चों पर उनके स्कूल बैग भारी पड़ गए. गृहिणियों को एक था कपूर के सीरियल और बाकी जो पुरुष थे उनको भी टीवी और इंटरनेट ले डूबा. वैसे ही जैसे सोशल मीडिया के प्रमुख सितारे फेसबुक और व्हाट्सएप्प ने ब्लॉग में सेंध मार दी और इन्हीं मैसेन्जर्स ने मोबाइल कम्पनियों की कॉल और एस एम एस जैसी सुविधाओं को किनारे लगा दिया.
तकनीकी अपग्रेडेशन तो होना ही है, इससे न तो बचा जा सकता है न ही बचा जाना चाहिए, लेकिन ऐसा भी न हो कि ये अपग्रेडेशन व्यक्ति पर भारी पड़ जाए. आने वाला समय कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है. वैसे तो अभी भी यह काम में आ ही रही है. आप दो चार विज्ञापन देखिये, इंटरनेट आपको आपकी रूचि के अनुसार दस विज्ञापन प्रस्तुत कर देता है. आपके द्वारा मोबाईल या लैपटॉप पर ब्राउज किये गये पृष्ठों के आंकड़े एकत्र किये जाते हैं और तदनुसार ही आपकी रूचि के अनुरूप वेब पेज या विज्ञापन सामने आ जाते हैं.
बहरहाल, इन सब तकनीकी विशेषताओं के चलते व्यक्ति का जो समय पत्र पत्रिकाओं और कहानी कविताओं के पठन पाठन में लगता था, वह समय इन सभी अप्लिकेशन ने निगल लिया. इसका एक कारण यह भी रहा कि यह सुगम हैं. व्यक्ति यदि पढ़ नहीं भी सकता या चाहता तो सुन सकता है और देख सकता है. पढ़ने की ज़हमत कौन उठाये. इसलिए सुविधा और सुगमता ने प्रिंट मीडिया, अखबार को छोड़कर, दरकिनार कर दिया.
हिंदी ब्लॉग में कतिपय कारणों से ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत जैसे एग्रीगेटर का बंद होना भी एक बड़ा कारण रहा. खैर जब वरिष्ठों के आह्वान (और आवाहन दोनों में अंतर है, क्या है मुझे इस समय बड़ा भ्रम है, कृपया बताएं) पर जब आज हिंदी ब्लॉग में लेख छापे जा रहे हैं तो यह भी निवेदन है कि ये दोनों या इन जैसे ही कोई अन्य एग्रीगेटर सक्रिय हों, जिससे कि ब्लॉग पर ब्लॉगर भी सक्रिय हो सकें.
तकनीकी अपग्रेडेशन तो होना ही है, इससे न तो बचा जा सकता है न ही बचा जाना चाहिए, लेकिन ऐसा भी न हो कि ये अपग्रेडेशन व्यक्ति पर भारी पड़ जाए. आने वाला समय कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है. वैसे तो अभी भी यह काम में आ ही रही है. आप दो चार विज्ञापन देखिये, इंटरनेट आपको आपकी रूचि के अनुसार दस विज्ञापन प्रस्तुत कर देता है. आपके द्वारा मोबाईल या लैपटॉप पर ब्राउज किये गये पृष्ठों के आंकड़े एकत्र किये जाते हैं और तदनुसार ही आपकी रूचि के अनुरूप वेब पेज या विज्ञापन सामने आ जाते हैं.
बहरहाल, इन सब तकनीकी विशेषताओं के चलते व्यक्ति का जो समय पत्र पत्रिकाओं और कहानी कविताओं के पठन पाठन में लगता था, वह समय इन सभी अप्लिकेशन ने निगल लिया. इसका एक कारण यह भी रहा कि यह सुगम हैं. व्यक्ति यदि पढ़ नहीं भी सकता या चाहता तो सुन सकता है और देख सकता है. पढ़ने की ज़हमत कौन उठाये. इसलिए सुविधा और सुगमता ने प्रिंट मीडिया, अखबार को छोड़कर, दरकिनार कर दिया.
हिंदी ब्लॉग में कतिपय कारणों से ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत जैसे एग्रीगेटर का बंद होना भी एक बड़ा कारण रहा. खैर जब वरिष्ठों के आह्वान (और आवाहन दोनों में अंतर है, क्या है मुझे इस समय बड़ा भ्रम है, कृपया बताएं) पर जब आज हिंदी ब्लॉग में लेख छापे जा रहे हैं तो यह भी निवेदन है कि ये दोनों या इन जैसे ही कोई अन्य एग्रीगेटर सक्रिय हों, जिससे कि ब्लॉग पर ब्लॉगर भी सक्रिय हो सकें.
हाँ ...सक्रियता हर स्तर पर बने | आसन रास्ता तलाशना तो इंसान की आदत है पर पठन -पाठन में इसका असर बहुत तकलीफ़देह है
ReplyDelete*आसान
ReplyDeleteआपकी बात सही है. समय के साथ साथ बदलाव आना स्वाभाविक है.
ReplyDeleteएग्रीगेटर के लिये भी कुछ लोगों द्वारा कोशीश की जारही है कि एक स्तरीय एग्रीगेटर उपलब्ध हो जाये.
वक्त के साथ अंदाज भी बदल जाये हैं. पर धागों में जो बात है वो सेल्फ़ी में कहां? सेल्फ़ी वक्त बीतने के साथ कहां गुम हो जायेगी पता भी नही चलेगा पर धागे आजीवन साथ निभा सकते हैं.
#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०१७
आपका कहना बिल्कुल सही है पर जब भी कोई नई चीज ईजाद होती है और सुलभ होती है तो लोगों का ध्यान आकर्षित करती ही है। इसीलिए ऐसा हुआ भी। पर साहित्य का अपना एक अलग वजूद है जो मिट या मिटाया नहीं जा सकता। अभी भी लोग पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं। रही अखबारों की बात तो उन्हें अपनी विश्वसनीयता बनाए रखनी होगी क्योंकि फेसबुक या व्हाट्सअप पर आने वाली ख़बरों पर ज्यादातर लोग विश्वास नहीं करते, सुबह का अखबार ही तसल्ली देता है।
ReplyDeleteपुराने लोग एक दूसरे के ब्लॉग को पढ़े और कमेंट करे तो भी ब्लॉग जगत में इतना सन्नाटा न हो |
ReplyDeleteचलिए किसी न किसी बहाने शुरुआत तो हुई , अब इसे नियमित किया जाए , संकलक फ़िलहाल हमारीवाणी और ब्लॉगसेतु अच्छा काम कर रहे हैं ,|
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-07-2016) को "ब्लॉगिंग से नाता जोड़ो" (चर्चा अंक-2653) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सक्रियता कायम रहे
ReplyDeleteबहुत सार्थक लिखा
शुभकामनाएं
जय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
ReplyDeleteबहुत अंतराल के बाद आपने लिखा , सब आप तक पहुंचेंगे आप लिखना जारी रखिए, #हिन्दी_ब्लॉगिंग
ReplyDeleteजय हो...
ReplyDeleteफिलहाल शुरुआत तो हो ही गयी है
ReplyDeleteअच्छा सुझाव... गुरुजन इसपर अवश्यय विचार करेंगे!!
ReplyDeleteफेसबुक ने बहुत ब्लोगरों को ब्लॉग से दूर कर दिया ..
ReplyDeleteदेखते हैं कितने दिन यह सक्रियता बनी रहती है.hamarivani एक agregratar है जो ब्लोग्वानी की तरह लगता है ,उसपर मैं ने भी अपने ब्लॉग रखे हैं.आप भी अपने ब्लॉग वहाँ जोड़ कर देखें.
सर आपका सुझाव बिल्कुल सही है । चलिए काम से कम एक सार्थक शुरुआत तो हुई है।
ReplyDeleteशुरुआत तो हो ही गयी है
ReplyDeleteहर स्टार पर सक्रीय होना होगा और सबको ... एक अभियान हमेशा के लिए ...
ReplyDeleteआह्वान और आवाहन में अंतर: ahwan-or-avahan
ReplyDeleteThanks for discussing this topic... If you could please mention the etymology of these words (आह्वान and आवाहन) it will make the information more relevant and authentic.
ReplyDeleteAre there any examples of usage of these two words in established literature? Is the word आवाहन only a derivative of the word आह्वान -
How are the dictionaries of Sanskrit and Hindi language treating these words? Are they listed as separate entries with different meanings as you have mentioned?
Your inputs on these issues will be helpful... Thanks. Feel free to email me more details if required. Thanks again!